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क्या मुस्लिम वाकई अल्पसंख्यक हैं?

India’s Muslim population

अल्पसंख्यक शब्द का अर्थ होता है कम संख्या में लेकिन क्या भारतीय समाज के धार्मिक ताने-बाने में मुस्लिम समुदाय के लिए यह शब्द सटीक बैठता है? क्या वाकई हिंदुस्तान में जहां मुस्लिमों और अन्य धर्म के लोगों को अल्पसंख्यक माना जाता है, उन्हें अल्पसंख्यक कहना सही है?


हाल ही में असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने अपने एक बयान में कहा कि राज्य में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में अधिक है, क्योंकि मुस्लिम अधिक बच्चे पैदा करते हैं. हालांकि, इसका कारण उन्होंने मुस्लिमों के बीच फैली अशिक्षा को बताया.

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समाज की अनछुई सच्चाई

तरुण गोगोई ने जाने-अनजाने में भारतीय समाज की ऐसी सच्चाई को बयां कर दिया जो सबके सामने होते हुए भी अनदेखी रह जाती है. इस देश में धर्म के नाम पर गिने जाने वाले अल्पसंख्यकों के लिए सरकारें अनेक विकास कार्यक्रम चलाती हैं, उन्हें आरक्षण और संरक्षण देती हैं जैसे उदाहरण के तौर पर आप मुस्लिमों को ले लीजिए. एक मुस्लिम बच्चे को शुक्रवार की नमाज पढ़ने के लिए विद्यालय से छुट्टी लेने का हक होता है, मुस्लिमों को लगभग हर नौकरी, कार्यस्थल अथवा शैक्षिक संस्थान में अलग से आरक्षण दिया जाता है. मुस्लिमों को अपने धर्म को बढ़ाने और अपनी संस्कृति को विकसित करने के लिए सभी सहूलियतें मुहैया कराई जाती हैं.


Muslim in IndiaMUSLIM POPULATION IN INDIA – क्या वाकई मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं?

लेकिन क्या देश में वाकई मुस्लिम अल्पसंख्यक माने जा सकते हैं. अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो आजादी के बाद से हिंदुओं की जनसंख्या में गिरावट और मुस्लिमों की आबादी में बढोत्तरी हुई है. जनगणना के अनुसार सन 1951 के बाद हिंदुओं की  जनसंख्या तो 9 प्रतिशत घटी है पर मुस्लिमों की जनसंख्या 3 प्रतिशत बढ़ गई है.  1951 में देश में जहां 85 प्रतिशत हिन्दू थे वहीं साल 2001 में यह घटकर 80 प्रतिशत से भी कम रह गए. वहीं दूसरी ओर मुस्लिम जनसंख्या 1951 में 10 प्रतिशत थी जो 2001 की जनगणना के समय बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई थी. देश की राजधानी दिल्ली में तो मुस्लिमों ने रिकॉर्ड तोड़ जनसंख्या वृद्धि की. दिल्ली के अंदर 1951 में मुस्लिम जनसंख्या 5.71 प्रतिशत थी जो साल 2001 में 11.72 प्रतिशत हो गई थी.


अल्पसंख्यक कौन होते हैं?

अब बात करते हैं अल्पसंख्यकों की. संविधान के अनुसार देश की कुल जनसंख्या के 5 प्रतिशत से अधिक वाले समुदाय या वर्ग को अल्पसंख्यक नहीं कहा जा सकता. तो किस आधार पर हमारी सरकारें मुस्लिमों को अल्पसंख्यक मान उन्हें विशेष रियायत देती हैं? यह मुद्दा सिर्फ मुस्लिम के साथ ही नहीं ईसाई और अन्य धर्मों पर भी लागू होता है जिन्हें सरकार अल्पसंख्यक मानती है.


दरअसल मुस्लिमों को अल्पसंख्यक मानना खुद मुस्लिमों के प्रति बुरा बर्ताव माना जाता है. कई जानकार मानते हैं कि अल्पसंख्यक वर्ग को यदि कोई संरक्षण दिया जाता है तो वो हमेशा के लिए बहुसंख्यकों से कट जाएगा और उनके साथ न चलकर एक अलग ही दिशा में चलेगा.


उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में निम्नलिखित सवालों पर आपकी राय जरूरी है:

1. हाल ही में देश में असम दंगों ने एक बार फिर सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या अल्पसंख्यकों को संरक्षण देना उन्हें समाज से काटने की वजह बन गया है?

2. क्या इस देश में अब “अल्पसंख्यक” शब्दावली को बदलने की जरूरत है?


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