Literacy rate and Condition in India
भारत विश्व का एक उभरता और तेजी से विकसित होने वाला देश है. आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भारत ने हमेशा ही विश्व को प्रभावित किया है. आज हम अपनी तुलना अमेरिका,चीन और अन्य देशों से करते नहीं थकते लेकिन जब हम भारत की सड़कों पर चाय की दुकानों पर काम करने वाले छोटे बच्चों और पढ़े-लिखे नौजवानों को बेरोजगार देखते हैं तो हमारे मन में सवाल उठता है कि वाकई हम साक्षर तो हो गए हैं पर शिक्षित नहीं हैं?
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What is Literacy?
बड़ा ही अटपटा सवाल है यह कि हम साक्षर होते हुए भी शिक्षित कैसे नहीं. शिक्षा का मतलब केवल पढ़ना लिखना और बाहरवीं कक्षा पास करना नहीं होता. शिक्षा का अर्थ होता है ज्ञान अर्जित करना. रट्टा लगाने से तोता भी बोलने लगता है लेकिन तोता किसी को ज्ञान नहीं दे सकता. पढ़ लिखकर हम साक्षर तो बन जाते हैं लेकिन ज्ञान अर्जित नहीं कर पाते. स्थिति ऐसी हो जाती है कि पढ़ने-लिखने के बाद भी हमें नौकरी नहीं मिलती.
Education system in India: कछुए से बैलगाड़ी चलाने का काम लेती पद्धति
भारत की शिक्षा पद्धति की यह एक बहुत बड़ी कमी है कि वह साक्षरता तो देती है लेकिन व्यवहारिक शिक्षा के मामले में कहीं ना कहीं हम पीछे रह जाते हैं. हमारे देश में हर साल कई लाख बच्चे स्नातक की डिग्री प्राप्त करते हैं लेकिन उनमें से कई बेरोजगारी की भीड़ में खो जाते हैं.
“साक्षर होने का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान या पढ़ाई-लिखाई जानना नहीं होता बल्कि इसका अर्थ है इंसान को अपने कर्तव्यों और अधिकारों का बोध हो ताकि उसका शोषण ना हो सके.”
Literacy Rate in India
अगर हम बात भारत की साक्षरता दर की करें तो साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर वर्ष 2011 में बढ़कर 74.4 फीसदी तक पहुंच गई है लेकिन यह अभी भी विश्व की औसत साक्षरता दर 84 फीसदी से काफी कम है. वर्ष 2011 में भारत में पुरुषों की साक्षरता दर जहां 82.16 फीसदी रही, वहीं महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 फीसदी ही दर्ज की गई.
Education Programs in India
सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गांधी साक्षरता मिशन आदि न जानें कितने अभियान चलाये गए, मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली. इनमें से मिड डे मील ही एक ऐसी योजना है जिसने देश में साक्षरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. इसकी शुऋआत तमिलनाडु से हुई जहां 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन ने 15 साल से कम उम्र के स्कूली बच्चों को प्रति दिन निःशुल्क भोजन देने की योजना शुरू की थी.
National Education Program for India
इसके अलावा देश में 1998 में 15 से 35 आयु वर्ग के लोगों के लिए ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ और 2001 में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ शुरू किया गया. इसके अलावा संसद ने चार अगस्त, 2009 को बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून को स्वीकृति दे दी. एक अप्रैल, 2010 से लागू हुए इस कानून के तहत छह से 14 आयु वर्ग के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना हर राज्य की जिम्मेदारी होगी और हर बच्चे का मूल अधिकार होगा. इस कानून को साक्षरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है.
लेकिन इन सब के बावजूद “दिल्ली अभी दूर” ही दिख रही है. अगर युवाओं को शिक्षा के साथ रोजगार के संबंधित कुछ सीखने को नहीं मिलेगा तब तक हमें साक्षरता के बावजूद बेरोजगारी का सामना करना ही पड़ेगा. आज विश्व आगे बढ़ता जा रहा है और अगर भारत को भी प्रगति की राह पर कदम से कदम मिलाकर चलना है तो साक्षरता दर में वृद्धि करनी ही होगी.
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