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मैं बोलूं तो मेरी आवाज तुम्हारे कानों में गूंजने लगे

दूसरे की बेटी को धन के समान तौल दिया और अपने ही बेटे को बेच दिया, वाह रे समाज तूने क्या नहीं किया


मुझे इतना बेबस मत करो कि जब मैं बोलूं तो मेरा शोर तुम्हारे कानों में गूंजने लगे. मुझे तौला जाता है धन से, मैं कोई सामान नहीं हूं जिसकी तुलना धन से की जाती है. समाज शादी जैसे पवित्र रिश्ते को दहेज जैसे शब्द से जोड़ देता है. क्यों भूल जाते हैं वो माता-पिता जो अपने लड़के के लिए दहेज की मांग करते हैं कि वो अपने ही बेटे को बेचने के लिए आते हैं.



girl dअब एक ऐसा फैसला जिसने दहेज की मांग करने वालों के लिए कई और नए रास्ते खोल दिए. थाना चंदपा के गांव तुरसेन की एक विवाहित युवती ने दहेज उत्पीड़न करने के साथ-साथ मारपीट करने और दूसरी शादी कर लेने का आरोप अपने पति पर लगाया था. विवाहिता की शिकायत पर पुलिस ने पति के खिलाफ मामला दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी थी. पर अदालत ने महिला के पति और उसके ससुराल वालों को दोषी करार नहीं दिया बल्कि एक ऐसी टिप्पणी की जिसने हैरानी के साथ-साथ दहेज की मांग करने वालों के लिए नए रास्ते खोल दिए. अदालत ने कहा कि अदालत को दहेज प्रताड़ना के मामले में अपना फैसला भावनाओं केआधार पर नहीं, तथ्यों और सबूतों के आधार पर सुनाना चाहिए.




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यह सत्य है कि तथ्य किसी भी फैसले का आधार होते हैं पर क्या सारे ही फैसले तथ्यों के आधार पर किए जा सकते हैं और ना जाने कितनी घटनाएं ऐसी होती हैं जहां तथ्यों को मिटा दिया जाता है. ऐसे में किस आधार पर फैसला किया जाएगा यह भी एक बड़ा सवाल है. मुम्बई में निशा प्रधान नाम की एक महिला रहती थी जिसने अरेंज्ड मैरिज की थी. शुरू-शुरू में निशा प्रधान के ससुराल वाले निशा के माता-पिता से पैसे की मांग करते थे फिर शादी के बाद उनकी मांगें और बढ़ने लगीं. निशा के ऊपर अत्याचार किया जाता था और अत्याचार करने की हद इतनी बढ़ने लगी कि जब निशा गर्भवती हुई तो उसके ससुराल वाले निशा के माता-पिता से नए मेहमान के आने के बाद के खर्चे बताकर पैसे और उपहारों की मांग करने लगे.


एक दिन ऐसा आया जब निशा के ससुराल वालों ने मांगें पूरी ना होने पर गर्भवती निशा को सीढ़ियों से धक्का दे दिया. ना निशा इस दुनिया में रही ना उसका होने वाला बच्चा इस दुनिया में अपनी सांसें ले सका. अब अदालत ऐसी घटनाओं पर सही फैसला सुनाने के बदले यह कहे कि ‘अदालत को दहेज प्रताड़ना के मामले में अपना फैसला भावनाओं केआधार पर नहीं, तथ्यों और सबूतों के आधार पर सुनाना चाहिए’सोचने पर मजबूर करता है.शायद इस देश में महिलाएं ऐसे ही मरती रहेंगी और अगर मारी ना गईं तो अपनी तमाम जिन्दगी अत्याचार सहन करती रहेंगी.



dowry‘मेरे ऊपर समाज क्या अत्याचार करेगा जो यह भूल जाता है कि वो दूसरों की बेटी पर अत्याचार कर रहा है. आखिरकार उसने भी तो एक बेटी को जन्म दिया है. एक लड़के की मां जो बड़े हक से कहती है कि मैंने तो बेटे को जन्म दिया है, अच्छा-खासा दहेज मिलेगा पर वो यह भूल जाती है कि वो दहेज नहीं समाज के बाजार में अपने बेटे की कीमत लगा रही है और एक लड़की के माता-पिता जो यह बोलते हैं कि मेरी तो बेटी है जितना दहेज मांगा जाएगा उतना दहेज देने की कोशिश करूंगा. शायद वो यह भूल जाते हैं कि उनके इस कदम से अन्य लाखों बेटियों की प्रताड़ना के रास्ते खुल जाते हैं.



फिर कैसे वो ही पिता अपनी बेटी को आग में जलते हुए देख सकता है फिर कैसे वो ही पिता अपनी बेटी को ऐसे हाथों में सौंप देता है जो उस बेटी के हाथ पर ऐसे जख्मों के निशान देता है जो तमाम जिन्दगी नहीं भर पाते हैं…..



लेकिन क्या सिर्फ ससुराल वाले ही दहेज के नाम पर हो रहे महिलाओं पर अत्याचारों के लिए दोषी हैं? नहीं, लड़की के माता-पिता भी बराबर के दोषी हैं जो शादी से पहले दहेज की मांग को यह कहकर नजरअंदाज कर देते हैं कि “‘सिर्फ उपहार ही तो मांग रहे हैं इसमें गलत क्या है आखिरकार बिना उपहार के भी क्या बेटी की शादी होती है.” और साथ ही दहेज को उपहार कहने वाले लड़की के माता-पिता यह भूल जाते हैं कि उनके अपनी इच्छा से उपहार देने से ना जाने कितने अन्य माता-पिता को भी अपनी बेटियों के लिए ऐसे उपहारों का प्रबंध करना पड़ता है और यदि वो प्रबंध ना कर पाए तो या तो बेटी जला दी जाती है या फिर बेटी ही अत्याचारों से दुखी हो मौत को गले लगा लेती है.


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Please post your comments on: आपको क्या लगता है कि दहेज लेने और देने के लिए उपहारों जैसे शब्दों का प्रयोग करना सही है ? क्या आप भी ऐसी किसी महिला को जानते है जिस पर दहेज ना देने के कारण अत्याचार किया गया ?


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