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किसी को हक नहीं है कि मुझे आकर्षण के पैमाने पर तौले

एक आकर्षक स्त्री में मां बनने की काबीलियत ज्यादा होती है यह एक भ्रामक तथ्य प्रतीत होता है पर आकर्षक शब्द को महिलाओं के साथ इतनी बार जोड़ा जाता है कि महिलाएं आकर्षक शब्द की आदी हो जाती हैं या फिर आकर्षक दिखने की होड़ में शामिल हो जाती हैं.


women like‘आकर्षक’ शब्द एक ऐसा शब्द है जो हमेशा ही दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींच लेता है पर हैरानी की बात तो यह है कि समाज में अधिकांश लोग महिलाओं के साथ ही आकर्षक शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं और वो भी ऐसे तरीके से जिसमें आकर्षक शब्द को महिलाओं के साथ जोड़ कर उनकी स्थिति को कमजोर दिखाया जाता है.


जर्मनी में गोटिनगेन यूनिवर्सिटी में किए गए अध्ययन के अनुसार जो महिलाएं कम आकर्षक दिखती हैं वो मां बनने की क्षमता कम रखती हैं. यह कैसा अध्ययन है जिसमें महिला के मां बनने को आकर्षक शब्द से जोड़ा गया है और मां बनने की क्षमता का पैमाना आकर्षित दिखने के ऊपर छोड़ दिया गया है.


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कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनके जवाब पाना बेहद ही कठिन है. आकर्षक शब्द को महिलाओं के नाम के साथ इतनी बार जोड़ा जाता है कि महिलाएं आकर्षक शब्द की आदी हो जाती हैं या फिर आकर्षक दिखने की होड़ में शामिल हो जाती हैं. महिलाओं के साथ आकर्षक शब्द के जुड़ाव को कुछ स्तरों पर समझने की जरूरत है:


सामाजिक स्तर: सामाजिक स्तर पर यदि जर्मनी में होने वाली रिसर्च को देखा जाए तो महिलाओं की स्थिति पर कई सवाल खड़े होते हैं. इसमें महिलाओं के आकर्षक दिखने को उनके मां बनने की क्षमता से जोड़ा गया है. यानि यदि महिलाएं कम आकर्षक हैं तो वो मां बनने की क्षमता कम रखती हैं तो फिर सवाल यह है कि पुरुषों को इस रिसर्च के दायरे से दूर क्यों रखा गया है. यदि पुरुष भी कम आकर्षक हों तो उसका यही अर्थ है कि उनमें पिता बनने की क्षमता कम है और वो भी महिला को मां बनने का सुख नहीं दे सकते हैं.


आकर्षक दिखने की होड़ का स्तर: आकर्षक शब्द का प्रयोग महिलाओं की जिन्दगी में इतनी बार किया जाता है कि महिलाएं आकर्षक लगने की होड़ मे शामिल हो जाती हैं. बचपन से ही एक लड़की का परिवार उसे यही कहता है कि ‘सुन्दर दिखोगी तो अच्छे से लड़के से शादी होगी, नहीं तो फिर मिल जाएगा कोई ना कोई’. बचपन से ही महिलाओं को यह सिखाया जाता है कि उनके लिए आकर्षक लगना उतना ही जरूरी है जितना कि उनके लिए जीवन-साथी ढूंढ़ना जरूरी है. हालांकि यही बात पुरुषों के मामले में बिलकुल उलट है. समाज मानता है कि पुरुष के आकर्षक दिखने का कोई अर्थ नहीं और उसके लिए केवल समाज में सम्मान, धन अर्जित करने की क्षमता वाला होना जरूरी हैं.


आखिर ‘आकर्षण’ को लेकर इतना भेदभाव क्यों

अधिकांशतः यह देखा जाता है कि महिलाओं के लिए आकर्षक दिखने को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. ये एक प्रकार का जेंडर बायसनेस है जहां स्त्री-पुरुष में साफ-साफ भेदभाव किया जाता है. मर्दवादी दुनिया अपने लिए ऐसे पैमाने गढ़ लेती है जिससे पार पाना स्त्रियों के लिए एक बड़ी चुनौती है. वे बस इस चक्रव्यूह में उलझ कर एक अनचाही होड़ में शामिल हो जाती हैं और पुरुषों की सत्ता द्वारा शासित होने लगती हैं.


सही मायने में महिलाओं के लिए आकर्षक दिखने की बाध्यता खड़ी कर पुरुषवादी वर्चस्व को कायम रखा जा सकता है. इससे महिलाओं की अधिकांश ऊर्जा आपसी होड़ में जाया हो जाती है और वे वास्तविकता को समझ पाने में नाकाम रहती हैं.    अच्छा यह होगा कि महिलाओं के लिए आकर्षक शब्द को इस तरीके से ना प्रयोग किया जाए कि उनके लिए यह एक गाली बनकर रह जाए. सच तो यह है कि आकर्षक लगना कोई पैमाना नहीं है जिसके अनुसार यह तय किया जाए कि महिलाएं मां बनने की क्षमता रखती हैं या नहीं और यदि यह पैमाना महिलाओं के लिए है तो फिर यह पैमाना समाज के उन सभी व्यक्तियों और वर्गों के लिए भी होना चाहिए जो आकर्षण को पैमाना मानते हैं और महिलाओं की स्थिति पर सवाल उठाते हैं.


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आपके लिए हमारा सवाल: केवल महिलाओं के लिए ही आकर्षण का पैमाना क्यों हैं और क्या आप इस बात से सहमत है कि समाज में महिलाओं को ही आकर्षण के पैमाने पर तौला जाता हैं.

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