‘हिंसा का फैलाव तो देखिए और सरकार की अनदेखी को देखिए, शरणार्थी को सुरक्षा और अपनों को सिर्फ सुरक्षा देना का वादा है’
असम की हिंसा आज भारत के हर कोने में फैल रही है. मुंबई से लेकर बेंगलुरू तक नॉर्थ-ईस्ट के लोग डरे हुए हैं. सवाल यह है कि अपने ही देश में डर के साथ क्यों जिया जाए. आखिकार नॉर्थ-ईस्ट के लोग शरणार्थी तो हैं नहीं. हैरानी वाली बात तो यह है कि डर इस हद तक बढ़ चुका है कि अब नार्थ-ईस्ट के लोगों को पलायन जैसा कदम भी उठाना पड़ रहा है. केंद्र सरकार ने ऐलान किया है कि नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को देश में कहीं भी किसी तरह का खतरा नहीं है. इस ऐलान के बावजूद गुरुवार को असम में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है. ताजा हिंसा असम के बक्शा और कामरूप जिलों में हुई है और हैरानी वाली बात तो यह है कि सिर्फ नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को ही इस हिंसा से बड़ी मात्रा में प्रभावित होना पड़ रहा है.
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असम दंगा – बांग्लादेशियों की है करतूत……………..
खासकर बोड़ो आदिवासियों की अस्मिता और उनके जीने के संसाधनों पर मजहबी जेहाद चिंताजनक है. असम दंगे के लिए मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन ही दोषी माना गया है. मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन की मजहबी मानसिकता के पोषक तत्व विदेशी शक्तियां हैं. असम के लोग यह जानते हैं कि मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन की गतिविधियां क्या हैं और इनका असली मकसद क्या है? बांग्लादेशी घुसपैठियों का यह संगठन है. बांग्लादेश से घुसपैठ कर आयी आबादी ने अपनी राजनीतिक सुरक्षा और शक्ति के संवर्द्धन के लिए मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन सहित कई राजनीतिक व मजहबी शाखाएं गठित की हैं.
मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन का काम शिक्षा का प्रचार-प्रसार या शिक्षा से जुड़ी हुई समस्याएं उठाने का ही नहीं रहा है. उनका असली मकसद मजहबी मानसिकता का पोषण और प्रचार-प्रसार रहा है. इसके अलावा बांग्लादेश से आने वाली मुस्लिम आबादी को बोडोलैंड सहित अन्य क्षेत्रों में बसाना और उन्हें सुरक्षा कवच उपलब्ध कराना है. बोड़ोलैंड क्षेत्र की मूल आबादी के खिलाफ जेहाद जैसी मानसिकता भी एक उल्लेखनीय प्रसंग है. जिसके कारण बोड़ोलैंड की मूल आबादी और मुस्लिम संवर्ग के बीच तलवार खिंची हुई है. बांग्लादेश से आने वाली आबादी के कारण बोडोलैंड का आबादी अनुपात तो प्रभावित हुआ है और सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि बोडोलैंड का पारंपरिक रीति-रिवाज और अन्य संस्कृतियां खतरे में खड़ी हैं.
राजनीति होती रहेगी बस….
सरकार का काम है राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान कराना जिसमें सरकार असफल नजर आ रही है. सरकार को यह तो याद है कि शरणार्थियों के लिए क्या कानून और क्या सुरक्षा की व्यवस्थाएं होनी चाहिए पर सरकार यह भूल गई है कि पहला कार्य देश के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना है. बहुत हैरानी वाली बात है कि आप के अपने ही देश के लोगों की जमीन पर कब्जा किया जा रहा है और सरकार सिर्फ सुरक्षा का हवाला दे रही है. पर सरकार को यह समझने की जरूरत है कि सुरक्षा का हवाला देना और सुरक्षा की जिम्मेदारियां लेने में बहुत अंतर है
आखिरकार अब सरकार को राजनीति करने की जरूरत नहीं है. जरूरत यह है कि हिंसा को रोके और नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को सुरक्षा के साथ-साथ उनका हक भी उन्हें दिलाए. याद करना होगा वो समय जब आजादी से पहले अंग्रेजों को अपने देश भारत में उम्मीद से ज्यादा हक दिया गया था और वो हक कब्जा बन गया कि आजादी के लिए फिर हजारों लोगों के खून की कुर्बानी देनी पड़ी. असम की हिंसा आज मुंबई और बेंगलुरू में भी फैल गई है. अब ना जाने कितने और राज्यों को यह हिंसा अपना शिकार बनाएगी.
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