समाज और देश चाहे कोई भी हो लेकिन सभी में जो बात समान रूप से देखी जा सकती है वो है स्त्रियों के प्रति होता अत्याचार. आए दिन घरेलू हिंसा, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ जैसी वारदातें अकसर सुनने और देखने को मिलती रहती हैं. पुरुषों के स्वामित्व के तले महिलाओं का जीवन एक ऐसे डर के साये में बीतता है जिसका कोई अंत ही नहीं है. रात का घना अंधेरा हो या फिर दिन का उजाला वह कहीं भी अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं रह सकतीं. दिनों-दिन बदतर होते हालातों में तो घर के भीतर भी उनके सुरक्षा की गारंटी नहीं ली जा सकती. महिलाओं को सुरक्षित वातावरण मुहैया करवाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के कानून बनाए गए हैं, लेकिन अगर हम हालिया रिपोर्ट पर गौर करें तो सरकार बलात्कार से संबंधित कानून में फेरबदल के साथ कुछ संशोधन करने पर विचार कर रही है और यह फेरबदल कुछ ऐसे होंगे जो महिलाओं को ही बलात्कार का दोषी ठहराने के लिए काफी हैं.
जी हां, केंद्रीय कैबिनेट के सामने जो प्रस्ताव पेश किया गया है उसके अनुसार बलात्कार के मामले में औरतों को भी दोषी ठहराए जाने जैसे कानूनी प्रावधान पर विचार किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि भारत सरकार अब बलात्कार की परिभाषा में बदलाव करने जा रही है. ऐसी परिभाषा जो पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी कठघरे में ला कर खड़ा कर सकती है. भारतीय कानून के अंतर्गत अभी तक रेप को फोर्सिबल पेनेट्रेशन की संज्ञा दी गई है परंतु प्रस्तावित फेरबदल के अनुसार इसे सेक्सुअल असॉल्ट माना जा सकता है. जिसके परिणामस्वरूप यह कानून केवल पुरुषों पर ही नहीं महिलाओं पर भी लागू हो जाएगा.
कैबिनेट के सामने जो प्रस्ताव रखा गया है उसके अनुसार रेप से संबंधित कानून केवल पुरुषों के विरुद्ध ही मुकद्दमा दर्ज करने की बात नहीं करेगा बल्कि इसमें महिलाओं को भी समान रूप से दोषी ठहराया जा सकता है.
बलात्कार के कानून में संशोधन करने के साथ-साथ अन्य प्रस्तावों पर भी विचार किया जाएगा जिनमें पीछा करने और तेजाब डालने जैसे मामले मुख्य रूप से शामिल किए जाएंगे. सिरफिरे आशिक या किसी मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति के महिलाओं पर तेजाब फेंकने की बढ़ती वारदातों के कारण ऐसे कृत्यों को एक निश्चित अपराध की श्रेणी में रखकर कड़ी सजा देने पर विचार किया जाएगा.
यूं तो महिलाओं के हितों को सुरक्षित रखने और उनके साथ होते अत्याचारों पर लगाम लगाने के लिए कई तरह के कानून बनाए गए हैं लेकिन उनका पालन कितना और किस कदर होता है यह बात हम सभी जानते हैं. लेकिन अब पुरुषों को भी पीड़ित की श्रेणी में रखे जाने जैसे प्रस्ताव कम से कम भारतीय समाज में तो सही नहीं ठहराए जा सकते. हालांकि आधुनिक होती परिस्थितियों के अनुसार महिलाएं भी अपनी इच्छाओं और यौन आकांक्षाओं को लेकर जागरुक हुई हैं लेकिन उनके भीतर आए यह बदलाव उस मुकाम तक नहीं पहुंच सकते जिसके अनुसार उन्हें रेप के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके.
हां, हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपने फायदे के लिए पुरुषों पर बलात्कार का आरोप लगाने से नहीं हिचकिचातीं या संबंधित पुरुष को शारीरिक संबंध बनाने के लिए उकसाती हैं. लेकिन इन कुछेक महिलाओं को उदाहरण मानकर अगर हम अन्य महिलाओं के चरित्र पर संदेह करते हुए उनके साथ हुए ऐसे जघन्य अपराधों को गंभीरता से नहीं लेंगे तो इससे हमारे समाज में उनके ऊपर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ेगा.
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