What dating actually means in Indian scenario
आजकल की युवा-पीढी काफी समझदार हो चुकी है. उसका मानना है कि अगर शादी से पहले डेटिंग जैसे प्रयोग को अपना लिया जाए तो आप यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि संबंधों के प्रति आपकी क्या प्राथमिकताएं और अपेक्षाएं हैं. इसके अलावा यह बात भी स्पष्ट हो जाएगी कि आप कैसे स्वभाव और व्यक्तित्व के साथी के साथ अपना जीवन व्ययतीत कर सकते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि आपको भविष्य में अपने लिए एक उपयुक्त जीवन साथी चुनने में आसानी होगी.
डेटिंग के प्राचीन स्वरूप तो भारत की कई आदिम जनजातियों में पहले से ही प्रचलित रहे हैं किंतु हमारा भारतीय समाज पश्चिमी तौर-तरीकों को अपनाने में हमेशा दिलचस्पी लेता रहा है. आधुनिक तौर-तरीकों के रूप में डेटिंग का भारत में आगमन भी पाश्चात्य देशों की ही देन है. वर्तमान में इसका अनुसरण हमारी युवा पीढी द्वारा एक परंपरा के रूप में किया जाने लगा है लेकिन इसका उद्भव कब और कैसे हुआ इस पर गंभीरता से कभी विचार नहीं किया गया. साथ ही भारतीय समाज जो मौलिक रूप से अपने नियमों और कानूनों का पक्का है ऐसे समाज में डेटिंग की आधुनिक अवधारणा का प्रवेश किन परिस्थितियों में हुआ इस विषय में जानना भी जरूरी है.
डेटिंग की मूल अवधारणा
सामान्य भाषा में डेटिंग एक प्रकार का पारस्परिक मेल-जोल है जो दो लोगों को अस्थायी तौर पर करीबी रिश्ते में जोड़ कर रखता है. संबंधित युवक और युवती सामाजिक दृष्टिकोण में अविवाहित युगल के रूप में देखे जाते हैं. डेटिंग का स्वरूप हर समाज में भिन्न होता हैं. पाश्चात्य संस्कृति खुले विचारों वाली है इसीलिए वहां डेटिंग और युगल पर कोई सामाजिक बंदिशें नहीं होतीं. लेकिन भारतीय समाज परंपरावादी और मर्यादाओं के बंधनों में बंधा हुआ समाज है. परिणामस्वरूप यहां स्वच्छंद और फूहड़ आचरण को घृणित दृष्टि से देखा जाता है. प्रेमी-जोड़ा कई सामाजिक मर्यादाओं में रहकर ही अपने रिश्ते का निर्वाह करता है. आमतौर पर डेटिंग को युवक और युवती के मध्य ऐसा संबंध माना जाता है, जो उन्हें विवाह से पहले करीब लाने में सहायक होता है, ताकि वे दोनों एक-दूसरे को भली प्रकार जान लें. परिणामस्वरूप उनके वैवाहिक जीवन में कोई समस्या उत्पन्न ना हो. हालांकि ऐसा कम ही होता है कि डेटिंग के बाद अर्थात एक-दूसरे को जानने और समझने के बाद युवक और युवती अपना पूरा जीवन साथ बिताने में खुद को सहज महसूस करें.
डेटिंग का इतिहास
डेटिंग कोई आधुनिक विचारधारा ना होकर प्राचीन समय से चली आ रही परपंरा है. मध्य युग के यूरोप में, जहां विवाह को पारिवारिक व्यवसाय के रूप में देखा जाता था, वहॉ डेटिंग या प्रेम-संबंधों को बड़ी बुद्धिमत्ता और विवेकशीलता के साथ विवाह तक नहीं पहुंचने दिया जाता था. छुप-छुप कर मिलना डेटिंग प्रक्रिया का एक हिस्सा हुआ करता था. यद्यपि उस काल में डेटिंग पर पुरुष का एकाधिकार हुआ करता था. वह जब चाहे किसी भी महिला के साथ संबंध जोड़ सकता था. महिला के विरोध को सहन नहीं किया जाता था. सोलहवीं शताब्दी में वैयक्तिक तौर पर अधिकार देने के लिए आंदोलन किया गया, जिसके अंतर्गत महिलाओं और पुरुषों को समान राजनैतिक और सामाजिक अधिकार देने की मांग की गई. इसी के साथ उन्हें अपने जीवन-साथी का चुनाव करने की भी आजादी देने की पैरवी की गई.
डेटिंग और उससी जुड़े गतिविधियों का सार्वजनिक प्रदर्शन सबसे पहले मध्यम और निम्न मध्यम वर्गों के युगलों द्वारा किया गया था. क्योंकि उनके घर या आस-पास कोई ऐसी जगह नहीं थी, जहां वे एक-दूसरे के साथ एकांत में समय बिताएं. परंपरागत डेटिंग पद्वति में किशोरवय और तीस के दशक के आरंभ तक विवाह से पहले एक-साथ समय बिताना, भोजन करना या कहीं घूमने जाना शामिल था. लेकिन समय के साथ-साथ डेटिंग के स्वरूप में बेहद महत्वपूर्ण परिवर्तन आए जिसने इसके स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया.
भारत में प्रचलन
Relation between men and women
वर्षों से भारत में यह परंपरा रही है कि परिवार के बड़े-बुजुर्ग ही आपसी समझ से विवाह निर्धारित कर दिया करते थे. विवाह से पहले युवक और युवतियों को एक-दूसरे से मिलने की भी इजाजत नहीं थी. ऐसे में किसी गैर-पुरुष से महिलाओं का मेल-जोल संभव ही नहीं था. लेकिन डेटिंग का भारत में प्रचलन कोई नया घटनाक्रम नहीं बल्कि कुछ भारतीय समुदायों की बहुत पुरानी परंपरा है. पूर्वोत्तर राज्यों की जनजातियों में सदियों से युवागृह की परंपरा चलती आ रही है, जिसके अंतर्गत किशोरवय लड़का और लड़की निर्धारित समय तक एक-दूसरे के साथ रहते हुए कला, शिल्प और वैवाहिक जीवन के तौर तरीके सीखते हैं. और विवाह के समय इन्हीं किशोरवय युवक-युवतियों में से वर-वधू का चुनाव कर लिया जाता है. यद्यपि आय के साधनों का फैलाव और दूसरे क्षेत्रों में पलायन के कारण इनकी संख्या में कुछ हद तक कमी आई है. लेकिन आज भी भारतीय समाज में इनकी उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता. हां, आधुनिक डेटिंग और इस परंपरागत मेल-मिलाप के स्वरूप में काफी हद तक असमानताएं मौजूद हैं लेकिन फिर भी भारत के संदर्भ में डेटिंग का जिक्र करते हुए युवागृह जैसी प्राचीन और सामाजिक परंपराओं का उल्लेख करना जरूरी है.
इसके अलावा प्राचीन काल के राजा-महाराजा भी अपनी पसंद की युवती के समक्ष प्रेम-प्रस्ताव रख देते थे. लेकिन वे केवल विवाह होने के बाद ही एक-दूसरे के साथ समय बिताने के लिए स्वतंत्र थे. धीरे-धीरे यह मानसिकता बदलती गई. विवाह से पहले लड़के और लड़की के मिलने को मान्यता मिल गई. लेकिन उनकी मुलाकात कब और कहां होगी इसका निर्णय परिवार वाले ही लेते थे. आधुनिकता के इस दौर में स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है अब प्रेम-विवाह की स्वतंत्रता के चलते युवक-युवतियां डेटिंग के माध्यम से एक-दूसरे को जानने समझने के बाद विवाह के निर्णय तक पहुंचते हैं. अस्थायी और प्रतिबद्धता विहीन अपने इस संबंध में वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं कि वे सहज ना होने पर इसे तोड़ दें.
वर्तमान समय में डेटिंग का औचित्य
वर्तमान समय के हालात और परिस्थितियां पहले जैसी जटिल और रूढ़ नहीं रहीं. जिसके चलते आज व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव अपनी प्राथमिकताओं और अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर करने के लिए स्वतंत्र है. पहले की तरह मनुष्य आज अपने परिवार पर उतना निर्भर नहीं है, साथ ही माता-पिता की मानसिकता भी कुछ हद तक विस्तृत हुई है. वे अपने बच्चों को स्वयं के साथी चुनने देने में कोई आपत्ति नहीं रखते जिसमें कोई बुराई भी नहीं है. लेकिन उनकी यह स्वतंत्रता उनकी व्यक्तिगत स्वच्छंदता बनती जा रही है. डेटिंग के नाम पर किसी दूसरे की भावनाओं को आहत करना मनुष्य का स्वभाव बनता जा रहा है. डेटिंग शब्द जिसे कुछ समय पहले तक समाज में गलत समझा जाता था, आज खासतौर पर युवाओं में बेहद प्रचलित हो गया है. प्रतिबद्धता और उत्तरदायित्वों से बचने के लिए डेटिंग को एक सामान्य और अगंभीर संबंध के रूप में अपनाया गया है. डेटिंग की आड़ में संबंधों और भावनाओं से खिलवाड़ एक आम बात बन गई है.
डेटिंग के मौलिक स्वरूप और अर्थ पर गौर करें तो यह दो लोगों को करीब लाने वाला एक अनूठा संबंध है. ताकि उन दोनों में पारस्परिक समझ और निर्भरता के भाव का विकास हो सके. लेकिन अगर इसका अनुसरण केवल अपने फायदे और स्वार्थ के लिए किया जाएगा तो यह एक बड़ी और चिंतनीय समस्या को पैदा कर सकता है. डेटिंग का मूल मंत्र यही होना चाहिए कि संबंधित युवक-युवतियों के मंतव्य बिल्कुल स्पष्ट और परिष्कृत हों. संबंध का चलना या ना चलना परिस्थितियों पर निर्भर होता है. व्यक्ति केवल यही कोशिश कर सकता है कि संबंध-विच्छेद के बाद भी दोनों में किसी भी प्रकार का मनमुटाव ना रहे.
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