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Sex education in India : Advantages and Disadvantages

sex education in schoolsभारतीय परिदृश्य में जहां बुजुर्गों को परिवार और समाज की नींव माना जाता है वहीं युवाओं के मजबूत कंधों पर समाज के उज्जवल भविष्य का भार और जिम्मेदारी सौंपी गई है. हम यह मानकर चलते हैं कि युवावर्ग अपनी जिम्मेदारियों के महत्व को समझेंगे और समाज को सुरक्षित वातावरण प्रदान करेंगे. लेकिन व्यावहारिक रूप में देखें तो हालात पूरी तरह भिन्न प्रतीत होते हैं. जिन युवाओं को हम अपने देश का भविष्य समझते हैं, प्राय: देखा जाता है कि वे स्वयं अपने भविष्य को लेकर प्रयत्नशील और संजीदा नहीं रहते. वह अपना अधिकांश समय दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने में ही बिता देते हैं. उन्हें ना तो अपने कॅरियर की परवाह होती है और ना परिवार के सम्मान की.


Need of sex education


यही वजह है कि आजकल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे शराब पीना, डिस्को जाना शुरू कर देते हैं. इसी आयु में उनके प्रेम प्रसंग भी शुरू हो जाते हैं. परिणामस्वरूप वे बच्चे जो अभी तक अनैतिक शारीरिक संबंधों और उनके परिणामों से अवगत नहीं हैं वे भी मात्र अपनी जिज्ञासा और उत्सुकता शांत करने के लिए इनका अनुसरण करने लगते हैं. अपनी नासमझी में कभी-कभार वो ऐसी गलती कर बैठते हैं, जो सामाजिक और पारिवारिक तौर पर क्षमा योग्य नहीं होती. किशोरावस्था में की गई भूल उनके उज्जवल भविष्य के सारे सपनों को तोड़ हर समय उस भूल का अहसास करवाती रहती है.


स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने मार्ग से ना भटकें और गलत संबंधों में ना संलिप्त हों इसीलिए सरकार छ्ठीं कक्षा से ही सेक्स शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहती है. लेकिन हमारा समाज अपने मूल्यों और मान्यताओं को लेकर थोड़ा सा परिवर्तन भी सहन नहीं कर सकता. यहां शारीरिक संबंध और इनसे जुड़े विषयों का सार्वजनिक रूप से बखान या वर्णन निषेध माना जाता है. हमारे समाज में महिला और पुरुष के बीच शारीरिक संबंध और इनसे संबंधित चर्चा विवाह के पश्चात ही स्वीकार्य है, इससे पूर्व अगर कोई प्रेमी जोड़ा संबंध स्थापित करता है तो उसे कोप का भागी बनना पड़ता है. यही वजह है कि स्कूली बच्चों के लिए सेक्स एजुकेशन जैसी शिक्षा के विषय पर कोई भी हामी नहीं भरता.

Relevance of sex education in Indian scenario


हमारी सरकार इसके पीछे यह तर्क देती है कि बच्चों को अगर सेक्स के बारे में पूर्व जानकारी होती है तो वे असुरिक्षत यौन संबंधों से खुद को बचा सकते हैं. लेकिन इसके विपरीत परंपरावादी समाज इस बात को सिरे से नकारता है क्योंकि हमारे समाज में किसी भी रूप में विवाह पूर्व संबंधों का प्रावधान नहीं है. यह बहस दिनोंदिन तेज होती जा रही है. हालांकि दोनों ही पक्ष इसमें अपनी-अपनी जगह सही हैं लेकिन फिर भी इस बहस का कोई अंत नही है. जब कभी बदलाव की ओर कदम बढ़ाए जाते हैं उस राह में रुकावट जरूर आती है. कभी-कभार यह परिवर्तन सही दिशा में होता है तो कभी इसके दुष्परिणामों को सहन करना पड़ता है. सेक्स एजुकेशन भी एक ऐसा ही मुद्दा है. इसीलिए कोई भी राय बनाने से पहले इससे संबंधित नकारात्मक और सकारात्मक पहलू पर गौर करना एक बेहतर विकल्प है.


Positive impacts of sex education : सेक्स एजुकेशन के सकारात्मक पहलू

  • स्कूली बच्चों को सेक्स की शिक्षा प्रदान करने के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य यौन संक्रमण से उनका बचाव करना है. अकसर युवावस्था या किशोरावस्था के बच्चे बिना किसी सुरक्षा के संबंध स्थापित कर लेते हैं. परिणामस्वरूप उनके लिए यौन संक्रमित बीमारियों का खतरा बना रहता है. अगर वह पहले से ही इस विषय में जागरुक होंगे तो इससे बचाव मुमकिन है.

  • शारीरिक संबंध हमेशा से ही मानव जिज्ञासा का केन्द्र रहे हैं. विवाह पूर्व और असुरक्षित शारीरिक संबंध स्थापित करने के दुष्परिणामों को जाने बिना किशोर अपनी नासमझी में इसे अपना लेते हैं. लेकिन अगर उन्हें सेक्स एजुकेशन प्रदान की जाएगी तो निश्चित रूप से उनके इस प्रवृत्ति में परिवर्तन आएगा. वह बिना सोचे-समझे कोई भी बड़ा कदम नहीं उठाएंगे.

  • आंकड़ों की मानें तो वर्तमान में 27 से 30 फीसदी होने वाले एबॉर्शन किशोरी लड़कियां करवाती हैं. यदि उन्हें सही रूप में यौन शिक्षा दी जाएगी तो वे गर्भपात के जंजाल से आसानी से बच सकती हैं.

  • बढ़ती उम्र में बच्चे भिन्न-भिन्न चीजों को जानने की इच्छा रखते हैं. आजकल जब इंटरनेट का चलन जोरों पर है तो जानकारी एकत्र कोई मुश्किल भी नहीं रह गया. इंटरनेट जहां जानकारी देता है, वहीं किशोरों की उत्सुकता को भी बढ़ावा देता है. किसी गलत माध्यम से वह अपनी इस जिज्ञासा को शांत करें इससे बेहतर है कि उन्हें एक संतुलित जानकारी प्रदान की जाए. फिर वो चाहे सेक्स जैसी निषेधात्मक शब्दावली ही क्यों ना हो.

How sex education threatened to our social norms : सेक्स एजुकेशन के सामाजिक और व्यक्तिगत दुष्परिणाम


जो लोग सेक्स एजुकेशन को लेकर विरोध जताते हैं उनका तर्क है कि सार्वजनिक तौर पर शारीरिक संबंधों का वर्णन करना निश्चित रूप से हमारी संस्कृति और परंपरा पर गहरा आघात करेगा. बच्चे जो अपने सही-गलत के विषय में नहीं जानते वे सेक्स एजुकेश को किस रूप में उपयोग में लाते हैं यह पहले से ही निर्धारित करना असंभव है. हो सकता है इससे बच्चों की प्रवृत्ति में कुछ परिवर्तन आए लेकिन इससे ज्यादा संभावनाएं उनके भीतर भटकाव विकसित होने की है. अगर बच्चे सेक्स के विषय में ज्यादा जानकारी रखनी शुरू कर देंगे तो हो सकता है वह इसमें ज्यादा दिलचस्पी लेना शुरू कर दें. वह इस बात को लेकर आशवस्त रहेंगे कि हमारे स्वास्थ्य और सम्मान पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ने वाला तो संभवत: वह इसमें कोई बुराई नहीं समझेंगे. उनका ऐसा स्वभाव जहां सामाजिक पहलू पर चोट करेगा वहीं उनके अपने चरित्र को भी निंदनीय बना देगा.


इसीलिए सेक्स एजुकेशन को जब तक नैतिक शिक्षा से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक वह किसी भी रूप में फायदेमंद नहीं हो सकती. समय के साथ-साथ इस विषय पर जानकारी मिल ही जाती है इसीलिए बच्चों को गलत मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना किसी के लिए भी लाभकारी नहीं है.


उपरोक्त चर्चा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सेक्स जैसे विषय पर छठी कक्षा के बच्चों का ध्यान आकर्षित करना थोड़ा अटपटा प्रतीत होता है. निःसंदेह किशोर इसके प्रति जिज्ञासा रखते हैं. उनकी इस जिज्ञासा को सेक्स एजुकेशन के माध्यम से प्रबल भी किया जा सकता है और नियंत्रित भी. ऐसे में जब तक उन्हें सामाजिक और नैतिक मूल्यों से अवगत नहीं करवाया जाएगा तब तक इस बहस का कोई हल नहीं निकाला जा सकता.

Nowadays it is very exclusive topic to debate about sex education. Its launching in India can be very harmful to our Indian society. But some thinkers believe that sex education would be launch in our education policy and recommended that sex education should be taught to every single child. Due to sex education everybody will come to know about causes and harms of unsafe sex.


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