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एक ज्वलंत मुद्दा: रेप, बलात्कार, एड्स क्या यही है इनकी सजा ?

बच्चे देश का भविष्य होते हैं. अभी कुछ दो-चार दिन पहले विश्व बाल-उत्पीड़न निषेध दिवस था जिसका मकसद बच्चों के प्रति हो रहे हिंसा को रोकना था. लेकिन जिस तरह से अभी हाल ही में “अपना घर” नामक एक स्वंयसेवी संगठन के बाल-गृह में बच्चों के प्रति हो रहे अन्याय सबके सामने आया है उसने इस देश को हिला दिया है. यकीनन इस समय देश का मीडिया जगत इस समाचार को हाईलाइट नहीं कर रहा है क्यूंकि इस समय देश का राष्ट्रपति चुना जाना है और टीआरपी की दौड़ में इस खबर को सबसे आगे रखा ही जाएगा. एक दो मीडिया समूह बच्चों के अन्याय की कहानी को दिखा भी रहे हैं तो वह बस इसे मसाला न्यूज बनाकर पेश कर रहे है. आज के इस ब्लॉग का मकसद जागरण जंक्शन के पाठकों में बच्चों के प्रति हो रहे अन्याय के विरुद्ध जागरुकता फैलाना है.


सरकार के पास करोड़ों-अरबों रुपए एक खेल आयोजन कराने के लिए होते हैं लेकिन उसी सरकार के पास अपने देश का भविष्य सुधारने और उसे बचाने के लिए कोई राशि-कोष नहीं होता. मजबूर बेसहारा बच्चों और मजबूर बच्चियों को जिन्हें उनके माता-पिता सर का बोझ समझकर सड़क पर फेंक देते हैं उनके लिए सरकार से तो कोई सहारा मिलता नहीं इसलिए वह शरण लेते हैं स्वंयसेवी संगठनों के आश्रम में. लेकिन यहां भी उन्हें क्या मिलता है जिल्लत, बेइज्जती, खाने के बदले रेप और बलात्कार का तोहफा और एड्स.


हाल ही “अपना घर” नामक एक स्वयंसेवी संगठन के आश्रम में मासूम बच्चों के यौन उत्पीड़न की दर्दनाक खबरें सामने आईं. यहां कम उम्र की लड़कियों के साथ यौन शोषण होता था, उन्हें जबरदस्ती शराब पिलाई जाती थी और बड़े रसूखदार लोगों के सामने पेश किया जाता था. कुछ महिलाओं के छोटे-छोटे बच्चों को जबरन अन्य लोगों को बेचा जाता था. छोटी-मोटी गलतियां  होने पर भी लड़कियों को कई दिनों तक कपड़े नहीं पहनने दिए जाते थे और इस दौरान उनके अश्लील वीडियो बनाए जाते थे.


यहां सवाल है कि अब इसमें सरकार की गलती है या इन मासूम बच्चों की? यह बच्चे चाहे तो सड़कों पर अपनी जिंदगी बिता सकते हैं. सड़क पर भी यह जिंदा रह सकते हैं. हो सकता है जितने घिनौने काम इनके साथ अपना घर की चारदीवारी में हुआ उतना सड़क पर नहीं होता. सड़क पर इनका कोई रेप करके फेंक सकता था लेकिन अन्य यातनाओं से वह बच जाते. लेकिन सर की छत और खाने को रोटी शायद सड़क नहीं दे पाती.


अपना घर में इतनी परेशानियां झेलने के बाद भी यह बच्चे और लडकियां यहां इसलिए रहते थे क्यूंकि उन्हें सर ढंकने के लिए छत और खाने के लिए रोटी मिलती थी फिर चाहे यह रोटी इनकी बोटी की कीमत पर मिले. लेकिन अगर इंसान को भूख के लाले पड़े हों और बात जीने पर आ पड़े तो कहां की इज्जत? इज्जत का क्या आचार डालना है? शायद यही सवाल इन छोटी बच्चियों के मन में होगा.


पर सवाल यह है कि क्या सरकार सो रही थी. यह स्वयंसेवी संगठन सरकार द्वारा पंजीकृत हैं और ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि इसकी कार्यप्रणाली की यह समय-समय पर जांच करे. जांच हुई भी लेकिन यह जांच बहुत देर बाद हुई तब तक इस अपना घर से एक लड़की और एक युवती को एड्स और कई सौ बच्चों के ब्लू फिल्म और अश्लील तस्वीरें कुकर्मियों के मोबाइल की शोभा बढ़ा रहे थे.


सरकार को यह सुनिश्चित करना ही होगा कि यह हादसा दुबारा ना हो. सरकार के साथ समाज को भी जिम्मेदार बनना होगा. अपना घर के पास कई लोग रहते थे उन्होंने यह तो कहा कि यहां से बच्चों की रोने की आवाज आती है लेकिन इस बात को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. अगर किसी ने सही समय पर आवाज उठाई होती तो आज शायद हालात दूसरे होते.


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