इंडियन पीनल कोड की धारा 376 की तहत किसी महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में रखा जाता है. अगर कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह इस कानून की नजर में दोषी है और उस पर कार्यवाही करने का प्रावधान है. जब किसी महिला-पुरुष का पारस्परिक मसला कोर्ट के दायरे में आ जाता है तो समाज की सांत्वना तो महिला के साथ रहती ही है लेकिन न्यायालय और भारतीय दंड संहिता की धाराएं भी उस महिला के पक्ष में ही दिखाई देती हैं. दहेज, छेड़छाड़, बलात्कार आदि कुछ ऐसे ही अपराध हैं जिनके खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने पर अधिक संभावना इसी बात की रहती है कि निर्णय महिला के ही पक्ष में होगा.
निश्चित तौर पर भारतीय पुरुष प्रधान समाज को कानून के संरक्षण की सख्त आवश्यकता है लेकिन कई बार ऐसे हालात भी उजागर होते हैं जिनमें महिलाएं ही पुरुषों पर हावी नजर आती हैं जिसका इसका सीधा और शायद एकमात्र कारण बनता है भारतीय कानून.
हाल ही में एक ऐसा ही मसला सामने आया जिसमें एक महिला ने अपने प्रेमी पर यह आरोप लगाया कि शादी का झांसा देकर वह एक लंबे समय तक उसके साथ बलात्कार करता रहा. लेकिन जब विवाह की बात आई तो उसने किसी और को अपनी जीवनसंगिनी बना लिया. इन सब से आहत पीड़ित महिला ने अपने पूर्व प्रेमी पर आइपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार और धारा 420 (धोखाधड़ी) का आरोप लगाया.
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लेकिन जब यह मामला बॉम्बे हाइकोर्ट पहुंचा तो न्यायाधीश ने यह कहते हुए उस आरोपी पुरुष को जमानत दे दी कि धारा 420 संपत्ति, कागजात और पैसों से जुड़ी धोखाधड़ी पर केन्द्रित है और किसी महिला का कौमार्य उसकी संपत्ति नहीं कही जा सकती. हालांकि एक अन्य हाइकोर्ट ने महिला के कौमार्य को उसकी संपत्ति का दर्जा दिया था लेकिन बॉम्बे हाइकोर्ट इस बात से सहमत नहीं है. वहीं दूसरी ओर आरोपी पुरुष पर लगाई गई बलात्कार की धारा भी वापस ले ली गई है क्योंकि न्यायालय के निर्णय के अनुसार विवाह से पहले दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए थे, इसीलिए अगर विवाह नहीं भी हुआ तो इसके लिए किसी भी रूप में पुरुष अकेला दोषी नहीं कहा जा सकता. महिला को इस बात की जानकारी थी कि वह अविवाहित है और भारतीय समाज में विवाह से पहले शारीरिक संबंध बनाना अनैतिक है.
उपरोक्त मसले और न्यायालय के निर्णय पर गंभीरता से विचार किया जाए तो कुछ नारीवादी लोग भले ही इस मुद्दे को महिला के साथ होता अन्याय समझेंगे लेकिन क्या जानबूझ कर और पूरे होश में बनाए गए आपसी संबंध पुरुष को ही दोषी ठहराते हैं? क्या इसमें महिला की कोई गलती नहीं है जो उसने विवाह से पहले केवल विश्वास के आधार पर अपने प्रेमी के साथ संबंध बनाए. लिव इन संबंधों में भी रहने वाले जोड़े कानून के संरक्षण में दायरे में नहीं आते तो ऐसे में विवाह पूर्व अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध स्थापित करने वाले जोड़े में पुरुष को दोषी क्यों कहा जाए, क्या महिला इसके लिए समान रूप से दोषी नहीं है?
भारतीय कानून व्यवस्था हमेशा महिलाओं की पक्षधर रही है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि बहुत सी महिलाएं कानून को अपने फायदे के लिए भी प्रयोग करती हैं. पति और ससुराल वालों पर दहेज का झूठा आरोप लगाना, किसी पुरुष को सजा दिलवाने के लिए उस पर छेड़छाड और बलात्कार का आरोप लगाना आदि कुछ ऐसे ही मसले हैं जिन पर विचार होता नितांत आवश्यक है.
भले ही महिला द्वारा लगाए गए आरोप झूठे और बेमानी हों लेकिन समाज में महिला आज भी एक पीड़िता के रूप में ही देखी जाती है. ऐसा भी नहीं है कि सब महिलाएं झूठी और पुरुष शोषक की भूमिका में ही रहती हैं लेकिन अगर परिस्थितियों का निष्पक्ष रूप से विश्लेषण किया जाए तो यह समाज के हित के लिए ही सहायक होगा.
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