पाश्चात्य देशों की तुलना में एशियाई देशों को हमेशा से ही एक ऐसे समाज का दर्जा दिया जाता रहा है जो अपनी परंपराओं के विषय में तो हमेशा से संवेदनशील है ही, साथ ही जो विश्वपटल पर अपनी शालीन छवि को बरकरार रखने के लिए भी हमेशा प्रयासरत रहता है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य के अनुरूप शायद यह धारणाएं फिजूल और निराधार साबित होती जा रही हैं क्योंकि अब भारत, चीन जैसे परंपरागत देशों में भी पश्चिमी सभ्यताओं के अंधानुकरण की शुरुआत हो चुकी है. इसके परिणामस्वरूप आज एशियाई नागरिकों के व्यवहार और जीवनशैली में व्याप्त शालीनता कहीं खो सी गई है.
पाश्चात्य देशों में विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाना या विवाहेत्तर संबंधों में रुचि लेना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन अब यह अवधारणा धीरे-धीरे एशियाई देशों में भी अपनी पकड़ बनाने लगी है. भारत तो पहले ही इस फूहड़ संस्कृति का शिकार बन चुका था लेकिन अब एक सर्वेक्षण में यह बात भी साबित कर दी गई है कि चीनी लोग भी अब विवाह से पहले शारीरिक संबंधों के अनुसरण करने में कोई बुराई नहीं समझते.
हाल ही में हुए इस शोध में लगभग 70 प्रतिशत चीनी लोगों ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने विवाह से पहले भी किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे.
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समाचार पत्र ‘पीपुल्स डेली’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सेक्सोलॉजिस्ट ली यिंहे द्वारा संपन्न एक अध्ययन में यह कहा गया है कि वर्ष 1989 में मात्र 15 प्रतिशत लोग ही विवाह पूर्व शारीरिक संबंधों में लिप्त थे लेकिन 1994 में ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई थी.
रिपोर्ट ऑन द हेल्थ ऑफ चाइनीज पीपुल्स सेक्स लाइफ के नाम से जारी इस रिपोर्ट को मीडिया सर्वे लैब और इनसाइट चाइना नामक पत्रिकाओं ने संयुक्त रूप से जारी किया है. रिपोर्ट की सबसे प्रमुख स्थापना यह भी है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष काफी हद तक शारीरिक संबंध बनाने के लिए इच्छुक रहते हैं.
सर्वेक्षण के अंतर्गत चीन के 31 प्रांतों में रहने वाले 1,013 लोगों का इंटरनेट पर साक्षात्कार लिया गया वहीं मार्च में लगभग 20,000 लोग इस अध्ययन में शामिल हुए जिन्होंने इंटरनेट के माध्यम से विवाह पूर्व अपने शारीरिक संबंधों की बात स्वीकार की. इस सर्वेक्षण में शामिल लगभग 70 प्रतिशत लोग 20 से 39 वर्ष के बीच के थे, जो पढ़े-लिखे और समझदार थे.
ली का यह भी कहना है चीनी लोग इन संबंधों को एक अनुभव के तौर पर लेते हैं यही कारण है कि विवाह से पहले ही वह इन संबंधों को स्वीकार कर लेते हैं.सर्वेक्षण में एक बेहद जरूरी और चिंताजनक बात जो सामने आई है वो यह है कि शारीरिक संबंध बनाने वाले लोगों की संख्या तो बहुत बड़ी है लेकिन इनमें से अधिकांश लोगों ने संबंध बनाने से पहले किसी भी प्रकार की सावधानी नहीं बरती और ना ही उन्होंने इससे संबंधित कोई शिक्षा ली थी.
नौ प्रतिशत से कम लोगों का कहना था कि उन्हें स्कूल में यौन शिक्षा के बारे में बताया गया था जबकि 1.5 प्रतिशत प्रतिभागी ही ऐसे थे जिन्हें उनके अभिभावकों ने यौन शिक्षा दी थी.
यद्यपि भारतीय परिवेश में दिनोंदिन बढ़ते खुलेपन और बोल्डनेस के अनुसार यह अध्ययन बहुत ज्यादा हैरानी पैदा नहीं करता क्योंकि भारतीय युवाओं का इस ओर रुझान अब बहुत हद तक बढ़ चुका है. उनके लिए शारीरिक संबंधों के लिए प्रेम या विवाह जैसे मानदंड मायने नहीं रखते. कैजुअल सेक्स या वन नाइट स्टैंड की अवधारणा भी उनके लिए बहुत सामान्य हो चुकी है. यही हालात अब चीन जैसे अन्य एशियाई देश में देखे जा रहे हैं. निश्चय ही यह परिणाम गिरते नैतिक मूल्यों की ओर इशारा करते हैं लेकिन इसके साथ ही एशियाई देशों में बढ़ते पाश्चात्य देशों के प्रभाव को भी इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता है.
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