विवाह और वैवाहिक जीवन सभी के लिए बहुत अहम स्थान रखते हैं. लेकिन वैवाहिक संबंध की नियति को पहले से समझना किसी के लिए भी संभव नहीं है. ऐसे में अगर विवाह के पश्चात पति-पत्नी एक साथ खुश ना रह पाएं, उन दोनों में हर समय मनमुटाव की परिस्थितियां बनीं रहें तो ऐसे में जाहिर है संबंध का निर्वाह करना अत्याधिक दूभर और जटिल बन जाता है. उनके पास एक साथ दुखी रहने या फिर तलाक लेकर अलग हो जाने के अलावा अन्य कोई रास्ता शेष नहीं रहता. लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि दोनों ही विकल्प व्यक्ति को मानसिक तौर पर आहत करते हैं.
एक नए अध्ययन की मानें तो अधिकांश युवा तलाक जैसे हालातों से बचने के लिए शादी करने में ही दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. उन्हें डर है कि कहीं विवाह के पश्चात उन दोनों के बीच समस्याएं और झगड़े ना बढ़ जाएं इसीलिए वे लिव इन जैसे संबंधों को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं जिससे अगर वे दोनों अलग होना भी चाहें तो उन्हें सामाजिक तौर पर किसी समस्या से ना जूझना पड़े.
अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल ओकलाहोमा के साझे अध्ययन में यह बात निकलकर सामने आई है कि लिव इन में रहने वाले ज्यादातर जोड़े तलाक के बाद सामाजिक, मानसिक, आर्थिक और कानूनी दुर्गति से खुद को दूर रखने के लिए विवाह नहीं करना चाहते. अनुमानित तौर पर लगभग 67 प्रतिशत जोड़ों ने विवाह ना करने की पैरवी की है.
लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि शोध में शामिल मध्यम वर्गीय लोगों ने तो फिर भी अपने जीवन में विवाह को एक अहम स्थान दिया है लेकिन वे लोग जो आर्थिक तौर पर आत्म-निर्भर और थोड़े खुले विचारों वाले हैं वह तलाक की संभावना के चलते विवाह के विषय में सोचना भी नहीं चाहते.
कम आय वर्ग वाली महिलाएं तलाक को लेकर ज्यादा चिंतित रहती हैं. उनका मानना है कि अगर विवाह के बाद समस्याएं बढ़ने लगीं या कुछ भी उनके मुताबिक ना चला तो संबंध से बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो जाएगा. विवाह के बाद थोड़े बहुत फायदे तो मिलते हैं लेकिन उससे कहीं ज्यादा जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं.
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि विवाह से पहले ही एक-दूसरे के साथ रहने वाले जोड़े विवाह और अपने लिव इन संबंध में ज्यादा फर्क नहीं समझते. वह विवाह से इसीलिए ज्यादा डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि विवाह के बाद जिन खर्चों को वह आज साझा कर रहे हैं उनकी पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर आ जाएगी.
अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विवाह सलाहकारों को संबंध जुड़ने से पहले लोगों को तलाक के भय से मुक्त करने के लिए फायदेमंद हो सकती है. इसके साथ अलग-अलग वर्ग के लोगों की सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को भी समझा जा सकेगा.
इस अध्ययन और लोगों की मानसिकता को अगर हम भारतीय परिवेश के अनुसार देखें तो हम इस बात को कतई नजर अंदाज नहीं कर सकते कि भारत में भी लिव-इन संस्कृति जोर पकड़ रही है. आज भारतीय युवा भी विवाह जैसे संबंध को ज्यादा अहमियत नहीं देते. उनके लिए उनका कॅरियर और व्यक्तिगत आजादी सबसे ज्यादा महत्व रखती है. हो सकता है उनकी इस बदलती मानसिकता का कारण विवाह के बाद का जीवन और तलाक का डर हो. क्योंकि भारतीय समाज में स्वाभाविक रूप से विवाह को आजीवन संबंध माना जाता है. फिर संबंध चाहे कितना ही नकारात्मक क्यों ना हो लेकिन हमारी मान्यताओं के अनुसार हर हाल में उसका निर्वाह करना ही पड़ता है. बुरे संबंध से बाहर निकलने को कानून भले ही मान्यता दे चुका हो लेकिन समाज इसे कभी भी मानकीकृत नहीं कर सकता.
तलाकशुदा पुरुष को तो फिर भी किसी खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन पति से अलग रहने वाली महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से बहुत नुकसान उठाना पड़ता है. हमारा समाज तलाक ले चुकी महिला को कभी भी सम्मान नहीं देता. क्योंकि हमारी परंपराओं के अनुसार वैवाहिक संबंध की खुशहाली का जिम्मा महिलाओं को ही दिया गया है. हम यह मानते हैं क़ि महिलाओं की सहनशक्ति और परिपक्वता ही खुशहाल विवाहित संबंध के लिए जरूरी होती है. इसीलिए अगर तलाक के हालात पैदा होते हैं तो उसके लिए महिलाओं को ही गलत ठहराया जाता है. उसे निंदनीय और घृणित बातों का सामना तो करना ही पड़ता है इसके अलावा आर्थिक तौर भी एक तलाकशुदा महिला के हालात बदतर बन जाते हैं.
यही कारण है कि अब लिव-इन जैसे संबंध प्रमुखता से अपनाए जा रहे हैं ताकि अगर संबंध टूट भी गया तो कम से कम तलाक के दुष्परिणामों से तो बचा जा सके. लेकिन फिर भी हम भारत की संस्कृति और मान्यताओं के विरुद्ध जाकर लिव-इन संबंधों को सामाजिक स्वीकार्यता नहीं दे सकते.
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