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मातृत्व से वंचित रख सकता है लिव-इन रिलेशनशिप!!

बदलती जीवनशैली और आधुनिक होती मानसिकता के मद्देनजर आज व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और प्रमुखताओं में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा जा सकता है. आज बिना किसी भेदभाव के महिला और पुरुष समान रूप से कॅरियर निर्धारण और आत्मनिर्भरता को जीवन की अनिवार्यता मानने लगे हैं, जिसके परिणामस्वरूप भावनात्मक जुड़ाव और संबंधों में आत्मीयता का अभाव साफ प्रदर्शित होने लगा है. पारिवारिक संबंधों में आती दूरी भारतीय समाज का एक सामान्य लक्षण बन गया है जिसका सबसे बड़ा कारण अच्छे अवसरों की तलाश में व्यक्ति का अपने घर-परिवार को छोड़ कर दूसरे शहर पलायन करना है.


live in relationshipलेकिन इन बदलती प्राथमिकताओं का सबसे नकारात्मक प्रभाव है वैवाहिक संबंधों की घटती जरूरत. उल्लेखनीय है कि विवाह संबंध में बंधने के बाद दो लोग एक-दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाते हैं. जहां उन्हें पारस्परिक अधिकारों की प्राप्ति होती है वहीं दूसरी ओर उन्हें कुछ महत्वपूर्ण कर्तव्य और उत्तरदायित्वों का निर्वाह भी करना पड़ता है जो निश्चित रूप से हमारी युवा पीढ़ी और उनके कॅरियर की राह में एक बाधा बनता है. यही कारण है कि आज हमारे युवा विवाह संबंध से जितना हो सके दूरी रखना चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप जैसे रास्ते को ढूंढ़ निकाला है. दिल्ली सहित अन्य मेट्रो शहरों में बढ़ते लिव-इन संबंधों के अंतर्गत उन्हें एक-दूसरे के साथ शारीरिक और मानसिक संबंध रखने का अवसर तो मिलता ही है साथ ही घर से दूर रहने के कारण होने वाले खर्च भी साझा हो जाते हैं. हालांकि भारत में ऐसे संबंधों को आज भी निंदनीय और अनैतिक ही समझा जाता है लेकिन हमारे युवाओं को यह संबंध खूब आकर्षित कर रहे हैं. एक ही घर में साथ रहकर वह अपनी हर जरूरत की पूर्ति करते हैं और वह भी बिना किसी दीर्घकालीन समर्पण या प्रतिबद्धता के. अर्थात लिव-इन में रहने वाले जोड़े विवाहित नहीं होते इसीलिए वह कभी भी अपने संबंध को तोड़कर एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं. ऐसे संबंधों में होने वाली संतान कभी भी सम्मान का पात्र नहीं बन सकती साथ ही हमारे परंपरागत समाज में जहां विवाह को एक धार्मिक संस्था का दर्जा दिया जाता है वहां ऐसी महिला हमेशा घृणित नजरों से ही देखी जाएगी जो बिना विवाह किए संतान को जन्म देती है. इसीलिए इन संबंधों में गर्भपात का सिलसिला भी बढ़ता जाता है.


लेकिन अगर डॉक्टरों की मानें तो लिव-इन संबंधों में रहने वाली महिलाओं विशेषकर कम उम्र की लड़कियों में इन्फर्टिलिटी की संभावना सबसे अधिक होती है जिसका सबसे प्रमुख कारण है असुरक्षित गर्भपात. लंबे समय तक लिव-इन में रहने वाली महिलाओं का साथी के साथ संबंध स्थापित होना स्वाभाविक है. ऐसे में उनका बार-बार गर्भपात करवाना भी एक सामाजिक अनिवार्यता बनता जा रहा है. लेकिन इससे पेल्विक इंफ्लेमेट्री डिजीज (पीआईडी) यानि गर्भाशय और अंडाशय में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है.

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पीआईडी रोग की संभावना उन महिलाओं को रहती है जो या तो एक से अधिक पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध बनाती हैं या असुरक्षित गर्भपात करवाती हैं. पीआईडी से ग्रसित महिलाओं में लगभग 20 प्रतिशत महिलाएं हमेशा के लिए मातृत्व से वंचित रह जाती हैं.


sad womanमहिलाओं में इंफर्टिलिटी या बांझपन के कारण

विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार गर्भपात करवाने से शरीर में बैक्टीरिया का प्रवेश हो जाता है. जिसकी वजह से प्रजनन अंगों के सामान्य टिशू चिपचिपे हो जाते हैं और प्रजनन अंगों से जुड़ी नलियां ब्लॉक होने लगती हैं. परिणामस्वरूप गर्भधारण करना बहुत मुश्किल हो जाता है.


इंफर्टिलिटी के लक्षण

डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का कोई मुख्य लक्षण नहीं है. प्रजनन अंगों में दर्द, असमय ब्लीडिंग और लंबा बुखार बना रहना इसके कुछ लक्षण हो सकते हैं. ऐसे लक्षणों को आमतौर पर नजर अंदाज ही किया जाता है लेकिन आगे चलकर यह गंभीर हालात पैदा कर सकते हैं.


उपरोक्त विवेचन और लिव-इन के गंभीर परिणामों को जानते हुए यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि सुखद भविष्य व्यक्ति के अपने हाथ में होता है. आधुनिक होते परिवेश में लिव-इन को स्वीकार करना या ना करना व्यक्ति का अपना निजी निर्णय कहा जा सकता है. लेकिन यह बात भी निश्चित है कि हमारा समाज ऐसे संबंधों को कभी सम्मान नहीं दे पाएगा. जहां लिव-इन रिलेशशिप जैसे संबंध समान की नजरों में निंदनीय हैं वहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह कितने घातक हैं यह बात इस लेख द्वारा प्रमाणित की जा चुकी है.

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