विदेशी समाज के खुलेपन और आधुनिक जीवनशैली से वशीभूत होकर हम हमेशा पुरुष प्रधान भारतीय समाज को महिलाओं के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार करने वाले एक रुढ़िवादी समाज की संज्ञा देते हैं. हालांकि यह कथन पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि आजादी के पश्चात जब सभी मनुष्यों को समान राजनैतिक अधिकारों से नवाजा जा चुका है, फिर भी सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से महिलाओं की स्थिति कैसी है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. आज की महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर तो हैं, लेकिन वहीं जब परिवार और समाज की बात करें तो इनकी स्थिति एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं है. जिनका उपयोग अपनी इच्छा और स्वार्थ पूर्ति के लिए किया जाता है. जहां एक ओर महिलाएं इस डर से अकेले घर से बाहर जाने के कतराती हैं कि कहीं वह किसी विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति की कुदृष्टि का शिकार ना हो जाएं, वहीं घर के भीतर भी उसे हम सुरक्षित नहीं कह सकते. हज़ारों ऐसे मामले हमारे सामने हैं जो पति द्वारा पत्नी के बलात्कार या उसके शारीरिक शोषण जैसी कड़वी सच्चाई बयां करते हैं.
इन हालातों और संकुचित मानसिकता से त्रस्त होकर आज महिलाएं पाश्चात्य जीवनशैली को एक आदर्श रूप में देखने लगी हैं. उनका मानना है कि अगर वहां लोगों की मानसिकता खुली और बोल्ड है तो यह एक सकारात्मक पक्ष ही है, क्योंकि ऐसे हालातों में शोषण और दमन जैसी चीजें कोई स्थान नहीं रखतीं. जिस समाज में महिलाएं भी बराबर महत्व और अधिकार रखती हैं वहां पुरुषों द्वारा शोषण किए जाने की बात नहीं की जा सकती.
अगर आप भी उन्हीं महिलाओं में से हैं जो विदेश में जाकर बसने के सपने देखती हैं या किसी विदेशी व्यक्ति से विवाह करने की योजना बनाती हैं तो हाल ही में हुआ एक अध्ययन आपको अपने इस निर्णय पर दोबारा सोचने के लिए विवश कर सकता है.
अमेरिका को हम अत्याधुनिक और मौज-मस्ती में डूबा देश मानते हैं. यह शहर आर्थिक रूप से इतना संपन्न है कि यहां रहने वाले व्यक्तियों को परेशानियां और मुश्किलें छू भी नहीं सकतीं. लेकिन इस शहर की घरेलू और सामाजिक हकीकत बहुत घिनौनी और अमानवीय है. यहां रहने वाली महिलाएं किसी भी रूप में सुरक्षित नहीं हैं.
सेंटर फॉर डीजीज कंट्रोल द्वारा संपन्न एक सर्वे में यह तथ्य प्रमाणित हुआ है कि खुद को आधुनिक कहलाने वाले अमरीकी पुरुष कितनी अमानवीय और संकुचित मानसिकता रखते हैं.
शोधकर्ताओं की मानें तो अमेरिका की लगभग 20 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन में कभी न कभी बलात्कार की शिकार हुई हैं या उनके साथ रेप की कोशिश की गई है. इतना ही नहीं 25 प्रतिशत महिलाओं ने यह बात भी स्वीकार की है कि उनका शारीरिक शोषण किसी और व्यक्ति ने नहीं बल्कि उनके पति या प्रेमी ने ही किया है.
सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में दर्ज हुए 1 करोड़ 20 लाख मामलों में हर पल 24 महिलाओं ने बलात्कार, हिंसा या अपना पीछा किए जाने की शिकायत दर्ज करवायी है.
सेंटर फॉर डीजीज कंट्रोल के आंकड़ों के अनुसार बीते 12 महीनों में 10 लाख से अधिक महिलाओं ने अपने साथ बलात्कार की शिकायत दर्ज करवायी है. 60 लाख से अधिक महिलाएं ऐसी हैं जिनका किसी अनजान व्यक्ति द्वारा देर रात पीछा किया गया. पिछले एक साल में 120 लाख से अधिक महिलाओं ने किसी नजदीकी मित्र या पति द्वारा बलात्कार, शारीरिक हिंसा की शिकायत की है.
महिलाओं के वास्तविक हालातों से जुड़े यह मामले किसी को भी हैरान कर सकते हैं. एक ओर जहां यह आंकड़ें यह साफ बयां करते हैं कि अगर हम विदेशी लोगों को भोग-विलासी या भौतिकवादी कहते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. वहीं दूसरी ओर यह तथ्य हमें यह सोचने को भी मजबूर कर सकता है कि क्या महिलाओं के साथ शोषण होना हर समाज की एक मौलिक पहचान है. क्या शिक्षा और आधुनिकता इन अमानवीय हालातों में कोई परिवर्तन नहीं ला सकते.
भारत जैसे परंपरागत समाज में महिलाओं को हमेशा अन्याय सहन करने की शिक्षा दी जाती है. पति की सेवा और उसकी हर इच्छा को पूरा करना महिलाओं का एकमात्र धर्म माना जाता है. जो समाज आज भी महिलाओं को पुराने रीति-रिवाजों की भेंट चढ़ा देता हैं, वहां महिलाओं के साथ ऐसी वारदातें हमारे समाज की इस मौलिक पहचान को मजबूत आधार देता है. समय परिवर्तन के बावजूद आज भी महिलाएं खुद को स्वतंत्र और सुरक्षित नहीं मान सकतीं. वह कभी भी इस बात से आश्वस्त नहीं रह सकतीं कि घर और बाहर के वातावरण में वे सुरक्षित हैं.
फिर भी हम यह मानकर चलते हैं कि शिक्षा और आधुनिक मानसिकता विकसित होने के बाद पुरुषों के ऐसे स्वभाव पर नियंत्रण पाया जा सकता है, लेकिन पाश्चात्य पुरुष तो अत्याधुनिक और शिक्षित होते हैं तो उनका ऐसा करने का क्या कारण हो सकता है?
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