विवाह रूपी संबंध प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत ज्यादा महत्व रखते हैं. यह दो व्यक्तियों को जीवन भर के लिए एक ऐसे भावनात्मक डोर में बांध देता है जो उन्हें हर सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ बांधे रखती है. परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, पति-पत्नी हर हाल में अपने साथी को खुश रखने की पूरी कोशिश करते हैं. वे लोग जो विवाह से पहले लापरवाह और पूर्ण रूप से स्वतंत्र जीवन जीते हैं वह भी वैवाहिक संबंध में बंधने के पश्चात जिम्मेदार और संजीदा हो जाते हैं. उन्हें स्वत: अपने उत्तरदायित्वों का बोध हो जाता है. विवाहित दंपत्ति किसी दबाव के कारण नहीं बल्कि पूरी आत्मीयता के साथ एक-दूसरे के प्रति समर्पित और उत्तरदायी हो जाते हैं.
एक अच्छा जीवनसाथी मिलने के पश्चात जब वैवाहिक दंपत्ति के जीवन में संतान की उत्पत्ति होती है तो यह उनके लगाव और आपसी प्रेम को और अधिक मजबूती प्रदान करता है. वैसे तो संतान का आगमन पति-पत्नी दोनों के लिए विशेष महत्व रखता है, लेकिन महिलाएं जो अधिक भावुक और कोमल होती हैं उनके लिए मां बनना एक ईश्वरीय वरदान से कम नहीं माना जाता. मां बनना उनके जीवन का सबसे अनमोल और सुखद क्षण माना जाता है.
जब वैवाहिक जीवन में संतान का प्रवेश होता है तो स्वाभाविक तौर पर पति-पत्नी एक-दूसरे से ज्यादा अपने बच्चे के प्रति उत्तरदायी हो जाते हैं. उससे संबंधित कार्यों में दिन कब निकल जाता है यह उन्हें पता ही नहीं चलता. पुरुष घर के बाहर कार्य करने जाते हैं इसीलिए वह बस कुछ समय ही अपने बच्चे को दे पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप महिलाएं अपने बच्चे के अच्छे पालन–पोषण के प्रति ज्यादा उत्तरदायी हो जाती हैं. परिवार की भलाई और उनकी देख-रेख ही पति-पत्नी का ध्येय बन जाता है. अगर ऐसे में वे एक-दूसरे को समय ना भी दे पाएं तो यह उनके संबंध को ज्यादा प्रभावित नहीं करता, बल्कि एक-दूसरे को समझने का एक बहुत महत्वपूर्ण अवसर देता है.
लेकिन शायद यह परिस्थितियां केवल भारत जैसे भावना और संबंध प्रधान देश में ही देखी जा सकती हैं. पाश्चात्य देश जो भोग-विलास और भौतिकवाद से पूरी तरह ग्रस्त हो चुके हैं, वहां जीवन भर और हर परिस्थिति में अपने जीवन साथी से प्रतिबद्धिता और समर्पित प्रेम संबंध निभाने जैसी चीज कोई मायने नहीं रखती.
एक नए अध्ययन की मानें तो भले ही मां बनना विदेशी महिलाओं के जीवन का भी बहुत खूबसूरत अहसास हो लेकिन यह उनके विवाहित संबंध को निरस बना देता है, क्योंकि मां बनने के बाद उनके पति उनमें दिलचस्पी लेना बंद कर देते हैं.
लंदन में हुए इस सर्वे में 18 से लेकर 50 वर्ष की महिलाओं को शामिल किया गया. जिनमें हर तीन में से एक ने यह स्वीकार किया है कि मातृत्व ग्रहण करने के पश्चात उनके दांपत्य जीवन में शारीरिक आकर्षण विलुप्त हो गया है. अब उन्हें पत्नी या प्रेमिका की भूमिका में नहीं केवल मां की भूमिका में ही देखा जाने लगा है, जिसके परिणामस्वरूप उनके पति भी उनसे ऊबने लगे हैं.
Netmums नामक वेबसाइट द्वारा हुए इस अध्ययन में महिलाओं से यह पूछा गया कि उनके पति उनका वर्णन करते हुए किस शब्द का प्रयोग सबसे अधिक करते हैं तो ज्यादातर ने इसका उत्तर उबाऊ या थकी हुई दिया. मात्र 12 प्रतिशत महिलाओं ने ही अपने जवाब में कोमल शब्द कहा.
डेली मेल में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार संतान के आगमन के पश्चात ज्यादातर पति अपनी पत्नियों के साथ समय बिताना पसंद नहीं करते, वह अपनी पत्नी से शारीरिक आकर्षण नहीं रखते. अपने प्रति पति के ऐसे व्यवहार के कारण युवा महिलाएं जो अभी-अभी मां बनी हैं, अपना आत्म विश्वास भी खोती जा रही हैं.
40% प्रतिशत महिलाओं ने तो यह भी कहा है कि वह मां बनने से पहले कैसी थीं, पति के साथ उनके संबंध कैसे थे, वो यह भी भूल गई हैं.
उल्लेखनीय है कि पत्नी का मां बनना पति को ही प्रभावित नहीं करता बल्कि महिलाओं को भी यह बहुत अजीब लगता है क्योंकि संतान को जन्म देने के बाद उन्हें वजन के बढ़ने जैसे अन्य शारीरिक परिवर्तन का सामना करना पड़ता है जो उन्हें कतई नहीं सुहाता.
इस सर्वेक्षण के पश्चात हम यह कह सकते हैं कि विदेशी महिलाओं के जीवन में संतान का आगमन कुछ समय के लिए सुखद हो सकता है लेकिन व्यवहारिक रूप में यह उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित ही करता है. जिसका सबसे बड़ा कारण है पति की अनदेखी और अपने शारीरिक आकर्षण को खोना.
विदेशी पृष्ठभूमि कितनी ही खुले विचारों वाली और स्वार्थ से लैस क्यों ना हो लेकिन अंधाधुंध स्वीकार किया जाने वाला मॉडर्न लाइफस्टाइल भी मातृत्व पर प्रभाव नहीं डाल पाया. भारतीय महिलाएं जो अपेक्षाकृत अधिक भावुक होती हैं, वह चाहे कितनी ही मॉडर्न या बोल्ड क्यों ना हों अपने बच्चे के आगमन को लेकर बहुत उत्साहित रहती हैं. कुछेक को छोड़ दिया जाए तो पुरुष भी इतने कठोर या नासमझ नहीं कहे जा सकते जो अपने बच्चे के जन्म को वैवाहिक जीवन पर हावी होने दें. पिता बनने और उसके बाद की जिम्मेदारियां निभाने के लिए वह भी समर्पित और प्रतिबद्ध ही रहते हैं.
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