भारतीय पुरुषों के विषय में यह माना जाता है कि वे विदेशी पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील और भावुक होते हैं. भले ही विवाह के पहले वह बेपरवाह और आक्रामक व्यवहार करते हों, लेकिन विवाह के पश्चात उन्हें स्वत: ही अपने उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों का बोध हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह बेहद संतुलित और व्यवहार कुशल हो जाते हैं. इतना ही नहीं विवाह के पश्चात यह धारणा भी बदल जाती है कि पुरुष केवल शारीरिक संबंधों को ही अपनी प्राथमिकता में रखते हैं. इसके विपरीत हम यह सोचकर आश्वस्त और संतुष्ट हो जाते हैं कि विवाह के बाद वह अपनी इच्छाओं को भूल परिवार के प्रति समर्पित हो जाते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को निभाना उनके लिए ज्यादा जरूरी बन जाता है.
वहीं दूसरी ओर हमारी यही मानसिकता विदेशी पुरुषों को भोगी और विलासी ठहराती है. जो अपनी पत्नी और प्रेमिका से प्रेम नहीं बल्कि शारीरिक आकर्षण रखते हैं और उनके साथ सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ही रहते हैं. वह ना तो प्रेम की अहमियत समझते हैं और ना ही विवाह जैसे संवेदनशील संबंध की मर्यादा उनके लिए कोई मायने रखती है.
लेकिन क्या हमारी इस मानसिकता का कोई आधार है या फिर अन्य भ्रांतियों की ही तरह यह भी एक भ्रामक तथ्य कहा जाएगा? क्या वाकयी अन्य पुरुषों की अपेक्षा भारतीय पुरुष नियंत्रित और संतुलित होते हैं? पत्नी के साथ वह कभी भी आक्रामक व्यवहार नहीं करते, विशेषकर शारीरिक संबंधों के विषय में क्या वह सच में संवेदनशीलता बरतते हैं?
सेंटर ऑफ रिसर्च ऑन वूमेन (अमेरिका) और इंस्टिट्यूटो प्रोमुंडन (ब्राजील) के संयुक्त अध्ययन ने यह तथ्य उजागर किया है कि भारतीय पुरुष अन्य देशों की तुलना में ज्यादा आक्रामक होते हैं. अगर उनका साथी शारीरिक संबंध स्थापित करने से इंकार करता है तो वह हिंसक और क्रोधित भी हो जाते हैं.
इस अध्ययन से जुड़े आंकड़ों की मानें तो 24 प्रतिशत भारतीय पुरुषों ने यह बात स्वीकार की है कि वह कभी-कभार शारीरिक संबंध को लेकर अपने साथी के साथ हिंसक हो जाते हैं. वहीं 20 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने अपने साथी के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए हैं. मात्र 17 प्रतिशत पुरुष इस विषय में संवेदनशीलता बरतते दिखाई दिए. इस सर्वेक्षण में मेक्सिको, ब्राजील, चिली, रवांडा, क्रोएशिया जैसे देशों के पुरुष भी शामिल थे. लेकिन इन सभी की तुलना में भारतीय पुरुष ज्यादा आक्रामक प्रमाणित हुए हैं.
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पारिवारिक वातावरण और पालन-पोषण का ढंग, पुरुषों के ऐसे स्वभाव के लिए उत्तरदायी है. इसके अलावा आज भारत में विवाहेत्तर संबंध कोई बड़ी बात नहीं रह गए हैं. गौर किया जाए तो अधिकांश पुरुष इसमें संलिप्त होते हैं या फिर बस एक मौके की तलाश रखते हैं. जब वैवाहिक संबंधों के बाहर जाकर वह शारीरिक संबंध बनाते हैं तो घर में भी वह उसी सहयोग की उम्मीद रखते हैं और जब किसी कारण यह नहीं मिलता तो वह आक्रामक हो जाते हैं. इसके अलावा पोर्न साइटों के प्रति बढ़ता रुझान भी ऐसे स्वभाव का एक बड़ा कारण है.
हो सकता है भारतीय होने के कारण हम इस अध्ययन के परिणामों को बेबुनियाद बताकर हकीकत से मुंह मोड़ने की कोशिश करें, लेकिन अगर एक बार निष्पक्ष होकर नतीजों का विश्लेषण किया जाए तो हम यह बात नजरअंदाज भी नहीं कर सकते कि भले ही सबसे अधिक ना सही लेकिन भारतीय पुरुष यौन आक्रामक होते हैं. इतना ही नहीं उनका ऐसा व्यवहार पूर्ण रूप से हमारे समाज और उनके अपने परिवार की देन कहा जा सकता है.
प्राय: देखा जाता है कि परिवार के बड़े और स्वयं माता-पिता जाने-अनजाने ही सही यह अहसास करवाते रहते हैं कि लड़कियों की अपेक्षा लड़के ज्यादा शक्तिशाली हैं और उनका महत्व ज्यादा है. उन्हें यही सीख दी जाती है कि महिलाओं का कर्तव्य मात्र उनकी आज्ञा का पालन करना और उनकी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना होता है. जहां एक तरफ लड़कियों को पति की आज्ञा मानना और अपनी इच्छाओं को भूल जाना सिखाया जाता है वहीं दूसरी ओर लड़कों को परिवार का भावी मुखिया ठहराया जाता है और उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता है.
यही पारिवारिक सीख उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं और वे वही करते हैं जो ऐसी संकुचित मानसिकता वाले पुरुष से अपेक्षित होता है. महिलाओं के साथ गलत व्यवहार करना, अभद्र और अश्लील टिप्पणियां करना उनकी आदत बन जाती है. यही व्यवहार आगे चलकर बलात्कार जैसे घृणित और अमानवीय अपराध का कारण बनता है.
अब ऐसे में जो पुरुष एक राह चलती महिला के साथ ऐसा कर सकता है, वह अपनी पत्नी, जो विवाह करने के बाद उसकी अपनी निजी संपत्ति में शुमार हो गई है, के साथ कैसे संवेदनशील और विनम्र रह सकता है. उसके लिए पत्नी भी सिर्फ एक भोग की वस्तु बनकर रह जाती है. अन्य उपयोग की वस्तुओं की तरह महिलाओं को भी पुरुष वस्तु ही समझते हैं जिनका कोई पृथक अस्तित्व नहीं है. इसीलिए जरूरत के अनुसार उसका प्रयोग किया जाता है.
आमतौर पर यही देखा जाता है कि विवाह के पश्चात पत्नी पर हाथ उठाना, उसके साथ झगड़ा करना पुरुषों को अपना अधिकार लगता है, और वे इस अधिकार का अनुसरण बिना किसी रोक-टोक के करते हैं.
ऐसे हालात हमें यह सोचने के लिए विवश कर देते हैं कि हम खुद को कितना ही आधुनिक और खुले विचारों वाला कह लें लेकिन क्या हमारी मानसिकता और विचार बदले हैं? क्या आज हम महिलाओं को सम्मान और आदर देने के लिए तैयार हैं? वर्तमान परिदृश्य के मद्देनजर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता और आचरण अभी भी पहले जैसा ही है. पति द्वारा महिलाओं के शोषण और दमन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं आई है. इसके विपरीत घरेलू हिंसा और बलात्कार की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं. लेकिन इन सब की वजह क्या है?
हम हमेशा पुलिस और कानून को दोष देते हैं लेकिन परिवार की भूमिका को नजरअंदाज कर देते हैं जिसके तहत ही बच्चे के चरित्र का निर्माण होता है. अगर परिवार के बड़े विशेषकर माता-पिता अपने पुत्र को संवेदनशील बनाने की पहल करेंगे, उसकी गलतियों पर पर्दा डालकर उन्हें बढ़ावा नहीं देंगे तभी बदतर होते हालातों पर काबू पाया जा सकता है, अन्यथा नहीं. कानून सिर्फ सजा देता है उनकी मानसिकता बदल नहीं सकता. यह काम सिर्फ समाज और परिवार का ही होता है.
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