वर्तमान परिदृश्य के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि एक समय में पिछड़ी और शोषित मानी जाने वाली महिलाएं, आज स्वयं अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के बल पर सामाजिक मुख्यधारा का एक अभिन्न अंग बन गई हैं. यही कारण है कि जिन महिलाओं को पहले दोयम दर्जे का स्थान प्राप्त था आज वही महिलाएं पुरुष प्रधान इस समाज में अपने लिए एक सम्मानजनक और सराहनीय स्थान निर्धारित करने में सफल हुई हैं.
घर की चारदीवारी को ही अपनी दुनियां समझने वाली महिलाओं ने ना सिर्फ घर से बाहर निकलकर पुरुषों के समान पढ़ना-लिखना शुरू किया बल्कि अध्यापिका बन उन्होंने शिक्षा के प्रसार-प्रचार में भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई. लेकिन आज उनकी प्रतिभा केवल अध्यापन कार्य तक ही सीमित नहीं है. आज वह हर उस क्षेत्र में भी शोहरत हासिल कर रही हैं, जहां पहले, या यूं कहें आज भी पुरुषों का ही आधिपत्य समझा जाता है. व्यवसाय से लेकर अंतरिक्ष में उड़ान भरने तक, शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र शेष रह गया हो जहां महिलाओं ने अपनी प्रभावपूर्ण मौजूदगी दर्ज ना की हो. आज वह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाने के साथ-साथ अपने कॅरियर और शोहरत को भी प्राथमिकता दे रही हैं. बौद्धिक क्षमता हो या तार्किकता महिलाएं किसी भी रूप में पुरुषों से पीछे नहीं हैं.
महिलाओं की इस उपलब्धि को केवल सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना हमें सांत्वना और संतुष्टि अवश्य प्रदान करता है लेकिन पूरी हकीकत से हमें अंजान ही रखता है.
उल्लेखनीय है कि महिलाओं का कॅरियर के प्रति ज्यादा सचेत होना जहां एक तरफ उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में खलल पैदा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वह उन्हें एक ऐसी दुनियां की ओर भी ढकेल रहा है जहां नाम और शोहरत भले ही बहुत है लेकिन इसके अलावा उनके पास और कुछ नहीं बचता.
एक नए अध्ययन ने अनुसार जिन महिलाओं का आईक्यू स्तर ज्यादा होता हैं उनके नशा करने जैसी अनैतिक क्रियाकलापों में लिप्त रहने और रुचि लेने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक रहती है.
लंदन में हुए इस नए और हैरान कर देने वाले शोध के नतीजों के आधार पर यह भी स्थापित किया गया है कि ऐसी महिलाएं कोकीन जैसे गैरकानूनी मादक पदार्थों के सेवन के प्रति अत्याधिक झुकाव रखती हैं.
कार्डिक यूनिवर्सिटी द्वारा संपन्न इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि समझदार और बुद्धिजीवी महिलाएं, नए-नए अनुभव प्राप्त करने के लिए कभी-कभार नशा करने में कोई खतरा नहीं समझतीं.
मुख्य शोधकर्ता डा. जेम्स का कहना है कि नशा करने की प्रवृत्ति उन महिलाओं में ज्यादा देखी जा सकती हैं, जिन्होंने तीस की आयु पार कर ली है. मानसिक परिपक्वता के इस पायदान पर पहुंचने वाली महिलाएं हानिकारक और मादक पदार्थों के सेवन का खतरा बिना किसी परेशानी के उठाती हैं.
इस सर्वेक्षण में 1970 में जन्में उन लोगों को शामिल किया गया, जिनका पांच या दस वर्ष की आयु में आईक्यू टेस्ट हुआ था. इन महिलाओं से पूछा गया कि क्या उन्होंने 16 या फिर 30 वर्ष की आयु के बाद मादक पदार्थों का सेवन किया था या नहीं?
जर्नल आफ एपीडिमोलोजी एंड कम्यूनिटी हेल्थ में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट पर गौर करें तो वैज्ञानिकों ने यह पाया कि जिन महिलाओं का आईक्यू स्तर 107-150 के बीच है उन्होंने कई बार मादक पदार्थों के सेवन करने का खतरा उठाया है.
हालांकि अधिक आईक्यू वाले पुरुषों में भी मादक पदार्थों के सेवन करने की संभावना पाई गई थी, लेकिन महिलाओं से संबंधित आंकड़े ज्यादा चिंताजनक हैं.
भारतीय परिदृश्य के आधार पर अगर हम इस शोध को देखें तो भले ही मध्यम वर्गीय या सामान्य व्यवसाय में लिप्त महिलाओं में ड्रग्स और नशा करने जैसी प्रवृत्ति ना के बराबर हो, लेकिन वे महिलाएं जो तथाकथित हाई-सोसाइटी से संबंध रखती हैं, उनमें नशा करना कोई बड़ी बात नहीं हैं. पुरुषों के साम्राज्य में अपने लिए स्थान बनाने की होड़ उन्हें इस कदर भटका देती है कि उन्हें अनैतिक और नैतिक जैसी चीजों में अंतर दिखना या समझ आना ही बंद हो जाता है.
जब भी चारित्रिक या आचरण के भटकाव की बात आती है तो हम हमेशा युवाओं को ही इससे जोड़कर देखते हैं. आम धारणा के अनुसार युवावस्था ही उम्र का एक ऐसा पड़ाव होता है जिसमें व्यक्ति को खुद अपने भटकाव का पता नहीं चलता. यद्यपि यह तथ्य भी गलत नहीं है, क्योंकि प्राय: युवा इस कथन का अनुसरण करते ही देखे जाते हैं. धूम्रपान, शराब का सेवन, शारीरिक संबंध आदि उनकी प्रमुखता में शामिल रहते हैं.
लेकिन यह नया अध्ययन यह स्पष्ट प्रमाणित करता है कि अनैतिक क्रियाकलाप किसी उम्र के मोहताज नहीं होते. भारतीय महिलाओं से हमेशा से ही शालीनता और सहजता बरतने की उपेक्षा की जाती रही है. परंतु स्वयं को मॉडर्न और खुले विचारों वाली दर्शाने के चक्कर में महिलाएं परिवार और विवाह संबंधी अपनी मूलभूत जिम्मेदारियों से भी मुंह मोड़ना प्रारंभ कर चुकी हैं.
समय के साथ चलना और परिवर्तनशील प्रवृत्ति रखना एक सकारात्मक स्वभाव है, लेकिन इसे कितना और कहां तक स्वीकार करना है यह व्यक्ति का अपना निजी फैसला ही कहा जा सकता है. नशा कब एक आदत और फिर मजबूरी बन जाए पता नहीं चलता. फिर चाहे वह महिला हो या कोई पुरुष, दोनों के स्वास्थ्य, यहां तक की सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है. साथ ही जिस सफलता को हासिल करने के बाद या करने के लिए नशा किया गया वह भी कब साथ छोड़ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. ऐसे में परिवार और दोस्त ही एकमात्र सहारा रह जाते हैं, लेकिन सिर्फ तब तक जब आप उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को निभाते हैं. जिसके लिए आपको मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ और दृढ़ रहना बहुत जरूरी है. विदेशी संस्कृति की अपेक्षा भारतीय परंपराएं थोड़ी ज्यादा जटिल और रुढ़िवादी अवश्य हैं लेकिन इनका अपना एक अलग अस्तित्व और प्रमुखता है, जिसे बरकरार रखना हम सभी का एक महत्वपूर्ण दायित्व है.
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