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सपनों के राजकुमार का एहसास

teenager coupleबदलते समय के साथ-साथ शिक्षा और कॅरियर विकल्पों के प्रसार-प्रचार में भी महत्वपूर्ण विस्तार और सुधार देखा जा सकता है. अभिभावक अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें अपने से दूर रखना भी स्वीकार कर लेते हैं. यही वजह है कि आज छोटे-छोटे शहरों के बच्चे उज्जवल भविष्य के सपने संजोए बड़े शहरों में पढ़ने और काम करने आते हैं. लेकिन जिस परिवार और अभिभावकों के साथ उन्होंने अपना बचपन गुजारा है उनसे दूर रहना उनके लिए बहुत दुखदायी बन जाता है. नए महौल के साथ सामंजस्य बैठा पाना उनके लिए कठिन हो जाता है.


फिल्मों में भी अकसर आपने यह देखा होगा कि जब भी कोई बच्चा अपने अभिभावकों से दूर रहने या पढ़ने जाता है तो उसे अपने घर की बहुत याद सताती है. कुछ दिनों तक वह ना तो ठीक से खा पाता है ना ही दोस्तों से घुल-मिल पाता है. इतना ही नहीं अगर घर लौटने के उसके सारे प्रयास विफल हो जाएं तो वह निराश और अवसादग्रस्त हो जाता है.


वर्तमान परिदृश्य के मद्देनजर हो सकता है बेपरवाह स्वभाव वाले युवकों की व्यावहारिक मानसिकता को देखते हुए, जो परिवार को एक बंधन से अधिक कुछ नहीं समझते और इससे दूर रहकर ही अपनी स्वतंत्रता का वास्तविक आनंद उठाते हैं, आपको परिवार से दूर रहकर उनका परेशान और निराश होना मात्र एक फिल्मी कहानी लगती हो, लेकिन एक नए अध्ययन ने यह प्रमाणित किया है कि वे लड़के जो परिवार से दूर रहते हैं उन्हें भावनात्मक समझी जाने वाली लड़कियों की अपेक्षा कहीं ज्यादा अपने परिवार की याद सताती है. विशेषकर मां के बिना रहना उनके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. वहीं दूसरी ओर वे युवतियां जो बाहर पढ़ने जाती हैं वह नई-नई मिली आजादी का पूरा फायदा उठाती हैं. अपनी मर्जी के अनुसार जीवन जीती हैं और दोस्तों के साथ घूमती-फिरती है.


ब्रिटेन की नेशनल एक्सप्रेस द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह प्रमाणित हुआ है कि घर से दूर रहने वाले लड़के अपनी मां और परिवार को लड़कियों की अपेक्षा कहीं ज्यादा याद करते हैं. अध्ययन में शामिल एक-तिहाई लड़कों का कहना है कि वह दूर रहकर अपनी मां के हाथ का बना खाना और उनका सानिध्य बहुत याद करते हैं. वह सिर्फ अपनी मां के साथ ही रहना चाहते हैं लेकिन लड़कियां जैसे ही नए महौल में खुद को ढाल लेती हैं वह वापस घर जाना नहीं चाहतीं.

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इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता कार्ली ऑडोनल का कहना है कि होस्टल में रहना सभी युवाओं को भाता है लेकिन फिर भी उन्हें घर में मौजूद सुख-सुविधाओं और पारिवारिक सदस्यों की बहुत याद आती है.


ब्रिटेन में हुए इस अध्ययन को अगर थोड़ा और विस्तारित किया जाए तो युवावस्था से गुजर रहे लड़कों और लड़कियों की मानसिकता और प्राथमिकताओं के बीच के मौलिक अंतर का आंकलन भी आसानी से किया जा सकता है.


युवावस्था आयु का सबसे कोमल पड़ाव होता है. इस आयुवर्ग के बच्चे गलत और सही में भेद नहीं कर पाते और कहीं जल्दी अपने मार्ग से भटक जाते हैं. भारतीय परिदृश्य में अकसर आपने देखा होगा कि युवकों को तो फिर भी कुछ हद तक अपने इच्छानुसार आने-जाने की स्वतंत्रता मिल जाती है लेकिन परिवार चाहे कितना ही आधुनिक और खुले विचारों वाला क्यों ना हो, बेटियों को ज्यादा स्वतंत्रता देने से बचता ही है. युवकों की अपेक्षा युवतियों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं.


एक निर्धारित आयु तक पहुंचने के बाद युवतियां अपने सपनों के राजकुमार के विषय में सोचने लगती हैं. उनकी आंखों में साथी के साथ एक सुखद भविष्य से जुड़े सपने घर करने लगते हैं. किसी फिल्म के नायक के साथ वह अपने राजकुमार की तुलना करने लगती हैं. उनका ड्रीम ब्वॉय कैसा होगा, क्या करता होगा, वह बस इन्हीं ख्यालों में खोई रहती हैं. ऐसे में अगर उन्हें परिवार और घर के बंधनों से बाहर रहने का अवसर मिले तो वह इस ओर ज्यादा आकर्षित होती हैं. परिवार के साथ रहते हुए जहां उन्हें अपनी स्वतंत्रता और आकांक्षाओं का दमन करना पड़ता था, वहीं अब वह स्वच्छंद जीवन व्यतीत कर सकती हैं. वह जब चाहे किसी से मिल सकती हैं और अपने सपनों के राजकुमार की तलाश कर सकती हैं. युवतियों के लिए जीवन में एक विशेष व्यक्ति का आगमन सबसे ज्यादा अहम होता है. अभिभावकों के साथ रहते हुए उन्हें मनचाही स्वतंत्रता नहीं मिल पाती इसीलिए परिवार से दूर रहने के दौरान वह उपलब्ध समय का पूरा आनंद उठाती हैं.

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लेकिन युवकों पर घर में रहते हुए भी ज्यादा निगरानी नहीं रखी जाती इसलिए उनके लिए घर से दूर रहना बहुत भारी पड़ जाता है. उनके परिवार वाले कितने ही सख्त या कठोर क्यों ना हों वह उन्हें बहुत याद करते हैं. बाहर का खाना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आता. भले ही वह स्वयं को कितना ही लापरवाह दर्शाते हों लेकिन वे कभी भी अपनी मां के लाड़-प्यार से दूर नहीं रह सकते.


उल्लेखनीय है कि युवकों के लिए सपनों की राजकुमारी जैसी धारणा कुछ ज्यादा महत्व नहीं रखती. वह युवतियों के प्रति चाहे कितनी ही आकर्षित क्यों ना हों वह उन्हें सिर्फ गर्ल-फ्रेंड तक ही रखते हैं. परिपक्वता के पायदान पर पहुंचने के बाद ही उन्हें एक सुयोग्य और मनपसंद साथी की ख्वाहिश रहती है. लेकिन युवतियां प्रायः अल्प-कालिक संबंधों को प्रमुखता नहीं देतीं, वह अपने जीवन में आने वाले पहले पुरुष के साथ ही खुशहाल स्थायी जीवन बसर करना चाहती हैं. घर पर ज्यादा रोक-टोक और अपेक्षित स्वतंत्रता ना मिलने के कारण वह अपने साथी की तलाश नहीं कर पातीं, लेकिन जब उन्हें अकेले रहने का अवसर मिलता है तो वह अपनी दमित इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करती हैं.

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