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बुजुर्गों को भी भा रही है लिव-इन रिलेशनशिप

old age coupleआजकल लिव-इन रिलेशनशिप जैसे संबंध युवाओं के बीच बहुत प्रचलित और लोकप्रिय होने लगे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि युवा किसी प्रतिबद्ध संबंध में बंधने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते इसीलिए लिव-इन जैसे अल्पकालिक संबंध को वरीयता देने लगते हैं. अगर वह किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षित होते हैं तो वह उसके साथ बिना विवाह किए रहना मंजूर कर लेते हैं. साथ रहने के बाद अगर उन्हें लगता है कि वे एक-दूसरे के साथ अपना सारा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, बिना किसी समस्या के अपने संबंध को निभा सकते हैं तो वे विवाह करने का निर्णय कर लेते हैं अन्यथा लिव-इन के बाद संबंध विच्छेद होना भी कोई नई बात नहीं है. इक्का-दुक्का ही कोई जोड़ा एक साथ रहने के बाद वैवाहिक संबंध को स्वीकारता है. शारीरिक और आर्थिक सभी जरूरतें पूरी होने के बाद एक-दूसरे से मुंह फेर लेना उनके लिए लाभकारी होता है.


यही वजह है कि हमारे समाज में लिव-इन रिलेशनशिप जैसे संबंधों को कभी भी सम्मानपूर्वक नहीं देखा जाता. इतना ही नहीं वे युवा जो बिना विवाह के साथ रह रहे हैं उन्हें समाज व परिवार के भीतर भी मान नहीं दिया जाता.


युवा तो फिर भी थोड़े लापरवाह और अपरिपक्व होते हैं, वे अगर लिव-इन को अपनाते हैं तो इसे उम्र का दोष कहकर संतोष कर लिया जाता है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि युवाओं के विवाह पूर्व संबंध बनाने पर विरोध जताने वाले बुजुर्ग ही लिव-इन को स्वीकार करने लगें तो?


यह कोई कपोल कल्पना नहीं बल्कि आज के भारत की हकीकत है. अहमदाबाद, गुजरात स्थित एक गैर सरकारी संगठन ने वृद्धों के जीवन के खालीपन को भरने का मार्ग ढूंढ़ निकाला है. “बिना मूल्य अमूल्य सेवा” नामक एक एनजीओ आगामी 20 नवंबर, 2011 को एक ऐसा अनोखा सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है जिसमें केवल 50 वर्ष या उससे अधिक के बुजुर्ग, जो या तो अपने जीवन साथी को खो चुके हैं या फिर किसी कारणवश विवाह बंधन में नहीं बंध पाए हैं,, ही भाग ले सकते हैं.


संगठन चलाने वाले नातू पटेल का कहना है कि इस आयोजन का उद्देश्य शादी की चाह रखने वाले बुजुर्गों को सही जीवन साथी उपलब्ध करवाना है. विवाह से पहले एक-दूसरे को समझ लेंगे तो तालमेल संबंधी कोई समस्या विकसित नहीं होगी.


पटेल का यह भी कहना है कि जब बुजुर्ग लोग विवाह करते हैं तो इससे उनके परिवार के बीच बहुत परेशानियां आती हैं. इन्हीं परेशानियों और मतभेदों को समाप्त करने के लिए लिव-इन जैसा आयोजन लाभकारी सिद्ध हो सकता है.


अभी तक इस सम्मेलन में 300 पुरुष और 50 महिलाओं के भाग लेने की पुष्टि हुई है. एक-साथ रहते हुए कहीं पुरुषों द्वारा महिलाओं का शारीरिक शोषण ना हो सके इसके लिए भी संगठन द्वारा कड़े नियम लागू किए गए हैं. इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए पुरुष का न्यूनतम मासिक वेतन 15,000 रुपए होना चाहिए.


अब इस अनोखी पहल को परिवर्तित और मॉडर्न होते भारत का सबसे बड़ा उदाहरण कहें जो बुजुर्गों की परेशानियों को भी समझने का प्रयास कर रहा है या फिर सामाजिक संस्कृति और मान्यताओं का हवाला देकर घृणित और निंदनीय कदम, दो दृष्टिकोणों से इस सम्मेलन का औचित्य समझा जा सकता है.


बुजुर्गों को भी होती है साथी की दरकार

वृद्धावस्था उम्र एक ऐसा पड़ाव होता है जिसमें जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं. आपकी संतान चाहे आपसे कितना ही प्रेम और लगाव क्यों ना रखती हो, लेकिन जब उनका अपना परिवार बस जाता है तो कहीं ना कहीं वह अपने बच्चों और साथी की जरूरतों को अपने अभिभावकों से ज्यादा महत्व देने लगते हैं. ऐसा भी नहीं है कि अब आपके बच्चों के जीवन में आपकी पहले जैसी आवश्यकता नहीं है लेकिन समय के साथ-साथ मनुष्य की प्राथमिकताएं भी बदल ही जाती हैं. ऐसी परिस्थितियों में आपको अपने जीवनसाथी के साथ की उपयोगिता का अहसास होने लगता है. आप एक-दूसरे से कितना ही लड़ते-झगड़ते क्यों ना हों, उसकी फिजूल की आदतों से परेशान क्यों ना हो जाते हों, लेकिन आप उसके बिना या अकेले रहने के लिए भी खुद को तैयार नहीं कर पाते.


लेकिन अगर दुर्भाग्यवश जब आपको अपने जीवनसाथी की जरूरत हो और उस दौरान आप तन्हां जीवन व्यतीत कर रहे हों तो निश्चित रूप से यह आपको भावनात्मक क्षति तो पहुंचाता ही है साथ ही भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद आपको अकेलेपन का अहसास होने लगता है.


आज कई ऐसे बच्चे हैं जो कॅरियर की तलाश में माता-पिता से बहुत दूर विदेशों में जाकर बस गए हैं. वहीं रहते हुए वह अपना परिवार बसा लेते हैं. ऐसे में अगर अभिभावकों में से किसी एक का निधन हो जाए तो दूसरा साथी पूरी तरह निराश और अकेला हो जाता है. लेकिन उम्र की इस अवस्था में अगर वह अकेलेपन की शिकायत किसी से करते हैं तो उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता. इतना ही नहीं उनकी परेशानी का मखौल भी उड़ाया जाता है. अपने जीवनसाथी से अलग होने का गम भुलाने के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं रहता. आलम यह हो जाता है कि अकेलेपन से आहत होकर और अपनी जरूरत को समाप्त होता देख वृद्ध अपने जीवन के समाप्त होने का ही इंतजार करते रहते हैं. अगर ऐसे में उन्हें एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाएगा तो इसमें किसी को क्या परेशानी हो सकती है.


इसके विपरीत दूसरा दृष्टिकोण जो उपरोक्त जितना उदार नहीं हैं निश्चित रूप से उसके अनुसार इस पहल को घोर निंदनीय और संस्कृति विरोधी कहा जाएगा. उल्लेखनीय है कि एक खास वर्ग के लोगों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश लोग इसे घृणा भाव से ही देखेंगे. ऐसे बुजुर्गों पर न जाने कितने ही आरोप और लांछ्न लगा देंगे. उनके साथ गलत व्यवहार करेंगे, अपशब्द कहेंगे. जिनके ऊपर परिवार को सही राह दिखाने का उत्तरदायित्व है वही अगर ऐसे अनैतिक संबंधों को अपनाएंगे तो निश्चित रूप से हम ऐसी परिस्थितियों में एक उज्जवल समाज की कल्पना नहीं कर सकते.


कानूनन किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को सशर्त दूसरा विवाह करने की पूरी स्वतंत्रता है, लेकिन बुजुर्ग विवाह से पहले लिव-इन रिलेशनशिप की शरण में जाएंगे यह बात शायद ही इससे पहले किसी ने सोची होगी. अभी तक भारत में तो ऐसे हालात नहीं बने थे इसीलिए इसका प्रभाव और परिणाम क्या होगा यह देखने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है.


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