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तनाव के कारण उच्च रक्तचाप की चपेट में आते युवा

stressful youthवर्तमान परिदृश्य के मद्देनजर हम इस बात को कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते कि आज हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न प्रकार की मानसिक और शारीरिक बीमारियों की चपेट में आ गया है. हालांकि उम्र का एक पड़ाव ऐसा होता है जिसमें स्वाभाविक रूप से व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता तो कम हो ही जाती है साथ ही वह मानसिक रूप से भी अधिक दबाव महसूस करने लगता है. लेकिन बदलती जीवनशैली के परिणामस्वरूप उम्र से पहले ही व्यक्ति कई ऐसी बीमारियों का घर बनता जा रहा है जो उसे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर बनाती जा रही है. गलत खान-पान, शारीरिक व्यायाम का अभाव आदि ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जो स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.


मोटापा, उच्च रक्त-चाप, मधुमेह आदि ऐसी बीमारियां है जो परिवर्तित जीवनशैली के परिणामस्वरूप दिनोंदिन बड़ी मात्रा युवाओं को अपनी चपेट में लेती जा रही हैं. अकेले भारत में भी युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा ऐसी बीमारियों से जूझ रहा है. इसका सबसे प्रमुख कारण खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन आना है. फास्ट-फूड, जंक-फूड जैसे खान-पान युवाओं को बहुत आकर्षित करते हैं, लेकिन वह इस ओर ध्यान नहीं देते कि जरूरत से ज्यादा इनका सेवन उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है.


उल्लेखनीय है कि जहां गलत खान-पान के कारण युवा मोटापे और मधुमेह का शिकार होते जा रहे हैं, वहीं प्रतिस्पर्धा प्रधान वातावरण से जूझते हुए वह उम्र से पहले ही उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों की चपेट में भी जल्दी आ जाते हैं.


युवाओं में उच्च रक्तचाप के कारण

आमतौर पर हम यह मानते हैं कि युवावस्था में कुछ भी खाया और पचाया जा सकता है. लेकिन यह मानसिकता वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर सही नहीं कहीं जा सकती. निश्चित रूप से युवाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता और पाचन तंत्र अपेक्षाकृत अधिक कार्यशील होते हैं लेकिन उनकी तनावग्रस्त दिनचर्या इस विशेषता पर भी हावी होती दिखाई दे रही है. काम का दबाव, पढ़ाई का दबाव आदि कुछ ऐसे कारण हैं जो व्यक्ति को भीतरी तौर पर कमजोर बना देते हैं. तनाव में रहने के कारण वह जल्दी और छोटी-छोटी बातों पर भी क्रोधित होने लगते हैं. परिवारों में भी प्राय: बच्चे को शुरू से ही प्रतिस्पर्धा का पाठ पढ़ाया जाता है. उन्हें दूसरे व्यक्ति से आगे निकलने की सीख दी जाती है. किसी वजह से वह अगर वह पीछे रह जाता है तो उसे डांटा और फटकारा जाता है. अन्य बच्चों से उसकी तुलना कर उसे कमतर आंका जाता है. जिसके परिणामस्वरूप या तो वह बच्चा स्वयं को निम्न समझना शुरू कर देता है या फिर खुद पर आगे बढ़ने के लिए दबाव महसूस करने लगता है. दोनों ही अवस्था में तनाव पैदा होना लाजमी है. पुरानी कहावत है अति सर्वत्र वर्जयते अर्थात किसी भी चीज की अधिकता बुरी होती है. यही कारण है कि जहां शारीरिक श्रम ना करना स्वास्थ्य को प्रभावित करता है वहीं जरूरत से ज्यादा मानसिक और शारीरिक श्रम युवाओं के भीतर तनाव और दबाव विकसित करने का कार्य करता है जिसके कारण उन्हें रक्त-चाप से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है.


इसके अलावा ज्यादा नमक और तली-भूनी चीजें खाना भी स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. विशेषकर अत्याधिक नमक का सेवन रक्त-चाप को बहुत अधिक प्रभावित करता है.


उच्च-रक्तचाप के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण

आमतौर पर उच्च-रक्तचाप से संबंधित लक्षणों को पहचानना मुश्किल नहीं है. यह एक ऐसी बीमारी है जो शुरूआती चरण में ही पहचानी जा सकती है. अगर आपको यह लगे कि आप अपनी पढ़ाई या काम पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहे हैं या आप पहले की अपेक्षा अपने कार्यों को सफलतापूर्वक नहीं निपटा पा रहे हैं तो यह लक्षण नजरअंदाज नहीं किए जाने चाहिए. इसके अलावा आए दिन होने वाला सिर-दर्द, चिड़चिडापन और असहजता भी रक्त-चाप के लक्षण हो सकते हैं. उच्च रक्त-चाप स्वयं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता लेकिन यह शरीर के विभिन्न अंगों को क्षति जरूर पहुंचाता है. हृदय की कार्यप्रणाली को प्रभावित करने के अलावा यह मस्तिष्क और गुर्दे पर भी गहरा आघात करता है.


रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए कुछ सुझाव

हालांकि भारत के ज्यादातर युवा उच्च रक्त-चाप की चपेट में कहे जा सकते हैं, लेकिन फिर भी यह अभी अनियंत्रित अवस्था में नहीं कहा जा सकता. थाइरायड ग्रंथि में आने वाले बदलावों के कारण भी रक्तचाप प्रभावित होता है. लेकिन अगर रक्तचाप में बढ़ोत्तरी को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो रहा है तो आपको सबसे पहले अपने खान-पान और दिनचर्या में महत्वपूर्ण फेरबदल की जरूरत है. सबसे पहले तो आप जितना ज्यादा हो सके अपने खाने में फाइबर की मात्रा को शामिल करें. फाइबर पाचन तंत्र और अंदरूनी क्रियाओं को संचारित करता है. जरूरी शारीरिक श्रम करना और वजन को नियंत्रित रखना भी रक्तचाप को बढ़ने से रोक सकता है. इसके अलावा डॉक्टरी सलाह और दवाइयों का सेवन भी बहुत जरूरी हैं.


हो सकता है कुछ लोग इस तथ्य से प्रभावित ना हों लेकिन रक्तचाप नियंत्रित करना युवाओं के लिए भी बहुत जरूरी है. वर्तमान दौर में युवा इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं. युवा सबसे ज्यादा तनाव में रहते हैं और गलत खाना खाते हैं इसीलिए उनके लिए अपने रक्तचाप को नियंत्रित रखना सबसे ज्यादा जरूरी होता है. अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों पर काम और पढ़ाई का ज्यादा दबाव ना डालें. हां, ऐसा करते हुए उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ ना करें. अर्थात उन्हें पढ़ाई का महत्व समझाते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें. लेकिन उनके साथ तुलनात्मक व्यवहार करना नासमझी से ज्यादा और कुछ नहीं है. उन्हें डांटने से अच्छा है परिपक्वता से काम लेते हुए बच्चों को उनकी गलती का अहसास करवाएं.


भले ही आप जो चाहे वह खाएं लेकिन अपने आहार में ताजे फल, सब्जियों और फाइबर को ज्यादा मात्रा में स्थान दें. आप फिल्म के नायक जैसी काया पाने के लिए नहीं स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए कसरत करें. सबसे महत्वपूर्ण बात शराब और धूम्रपान से बिलकुल दूर रहें.


स्वस्थ युवा ही स्वस्थ भारत के उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं. अगर वह स्वयं बीमारियों के साये में घिरे रहेंगे तो निश्चित रूप से यह भारत के विकास और प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. इसीलिए आज से ही अपनी दिनचर्या और खान-पान की आदतों को सुधारने का प्रयास शुरू कर दें.


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