फिल्म को लोकप्रिय बनाने और दर्शकों के बीच उसके प्रति उत्साह और जिज्ञासा विकसित करने के लिए फिल्म के गाने बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. 70 के दशक की अगर बात की जाए तो इस समय जितनी भी फिल्में सुनहरे पर्दे पर प्रदर्शित हुई उनमें से अधिकांश की कामयाबी में उनके गानों और संगीत का बहुत ही अहम योगदान रहा है. ठहराव और सहजता शब्दों की आत्मा हुआ करती थी. उस समय के गाने आज भी अगर सुने जाएं तो शायद वही प्रभाव छोड़ेंगे जो उस समय होता होगा.
वैसे तो फिल्में आज भी धड़ल्ले से बन रही हैं. तकनीक के विकास के कारण इफेक्ट्स भी पहले से कहीं अधिक प्रभावपूर्ण होते हैं. लेकिन उस समय जो फिल्में बना करती थीं उनका स्वरूप वर्तमान प्रदर्शित हो रही फिल्मों से पूरी तरह भिन्न था. पहले अभिनय और निर्देशन बेजोड़ हुआ करता था वहीं आज अश्लीलता की सारे हदें पार की जा रही हैं. इक्की-दुक्की फिल्मों को छोड़कर लगभग सारी फिल्में ही ऐसे दृश्य लिए होती हैं जिन्हें आप परिवार के साथ सहज होकर नहीं देख सकते.
हैरानी तो तब होती है जब युवाओं को आकर्षित करने और उनके बीच फिल्म को प्रचारित करने के लिए निर्माता और निर्देशक फिल्मी गानों में मौखिक अभद्रता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं. प्राय: फिल्में युवा मस्तिष्क को केन्द्र में रखकर ही बनायी जाती हैं. जिनमें से कुछेक, जिन्हें आर्ट फिल्मों की श्रेणी में डाल दिया जाता है, भले ही निर्देशन और पटकथा के मामले में आदर्श कही जाती हों, लेकिन हम इस बात को नकार नहीं सकते कि ज्यादातर फिल्में युवाओं के मनोरंजन और अधिकाधिक पैसे कमाने के उद्देश्य से ही पर्दे पर लाई जाती हैं. मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता प्रदर्शित करना भी कोई अपराध नहीं माना जाता इसीलिए या तो फिल्म की कहानी या फिर उनके गाने, कुछ ना कुछ ऐसा जरूर होता है जो दर्शकों के मस्तिष्क और उनके चरित्र पर हानिकारक प्रभाव डालता है.
आपने कई ऐसे गाने सुने होंगे जिन्हें भले ही आप अकेले में गुनगुनाते हों लेकिन जब परिवार का कोई बड़ा आपके सामने होता है तो आप उन शब्दों को गुनगुनाने की सोच भी नहीं सकते. गानों के दृश्यों में अश्लीलता का प्रदर्शन होना कोई नई बात नहीं है लेकिन पिछले कुछ समय से शब्दों को भी इस ढंग से पिरोया जाने लगा है कि उसमें शर्म और नैतिकता जैसी चीजों के लिए थोड़ा सा भी स्थान सुनिश्चित नहीं किया गया है. बात अब गाली-गलौज तक ही सीमित नहीं रही. प्राय: देखा जाता है कि गानों में अश्लील शब्दों का प्रयोग भी बिना किसी रोक-टोक के हो रहा है. गीतकारों और निर्माताओं को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि उनके द्वारा पेश किए जा रहे गानों में सम्मिलित शब्दों का श्रोताओं के मस्तिष्क, आचरण और मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. अगर हम युवाओं की बात करें तो निःसंदेह वह ऐसे फूहड़ शब्दों से जल्द प्रभावित हो जाते हैं. उनके बीच ऐसे गाने अपेक्षाकृत जल्दी लोकप्रिय हो जाते हैं, लेकिन यहां भी इसी सिद्धांत का अनुसरण किया जाता है कि मानव मस्तिष्क उसी चीज के प्रति आकर्षित होता है जो उन्हें बार-बार दिखाई या सुनाई जाएं.
एक नए अध्ययन के अनुसार यह बात सामने आई है कि अश्लीलता भरे गीत-संगीत को सुनकर युवाओं के आचरण और उनके चरित्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं युवाओं की सेक्स संबंधी जिज्ञासा और रुझान भी ऐसे गीतों द्वारा बढ़ने लगता है.
अमेरिका के शोधकर्ताओं ने अपने एक सर्वेक्षण द्वारा यह तथ्य प्रमाणित किया है कि वे युवा जो ऐसे अभद्र गीत ज्यादा सुनते हैं उनमें शारीरिक संबंधों से जुड़े विषयों को जानने की उत्सुकता बढ़ जाती हैं. अन्य लोगों की अपेक्षा वह काफी जल्दी इन सब बातों को जानने के लिए कोशिश करते हैं जिसका सीधा प्रभाव उनके आचरण पर पड़ने लगता है.
इस स्टडी के मुख्यशोधकर्ता कूगर हॉल का कहना है कि अपने इस अध्ययन से वह स्वयं बहुत हैरान हैं.
इससे पहले हुए सर्वेक्षणों द्वारा यह प्रमाणित किया गया था कि वे युवा जो अश्लील सामग्री देखते या पढ़ते हैं वह सेक्स की प्रति आकर्षित होते हैं. लेकिन इस अध्ययन के बाद तो मनोरंजक संचार माध्यम भी खतरे की एक बड़ी घंटी बन गए हैं.
उल्लेखनीय है कि जहां इन गीतों को देखने और सुनने के बाद युवक शारीरिक संबंधों और अश्लीलता का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं. वहीं युवतियों को यह अश्लील और अभद्र भाषा नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है.
आमतौर पर ऐसे गानों में स्त्री के सम्मान को ही निशाना बनाया जाता है. पुरुषों को भले ही यह सब मनोरंजक लगता हो, लेकिन ऐसे गानों में महिलाओं के लिए जिस भाषा का उपयोग किया जाता है वह शायद ही किसी महिला को पसंद आती हों.
अध्ययन के अनुसार ऐसे गानों को सुनने और देखने के बाद युवतियों को यही लगता है कि पुरुषों के लिए वह एक भोग की वस्तु से अधिक और कुछ नहीं हैं. उनका अपना कोई मान-सम्मान नहीं है, पुरुष जैसे चाहे उनके साथ बात और व्यवहार कर सकते हैं. यह मानसिकता धीरे-धीरे उन्हें अवसाद की ओर ले जाती है. वह स्वयं को निम्न समझने लगती हैं.
विदेशी परिदृश्य को दर्शाता यह अध्ययन भारतीय युवाओं की मानसिकता और आचरण को प्रमुख रूप से वर्णित करता है.
भले ही विदेशी संस्कृति थोड़ी ज्यादा खुले विचारों वाली हो इसीलिए वहां ऐसे गाने प्रचलित हो जाते हों, लेकिन भारत जो हर क्षेत्र में कुछ नियमों और कानूनों से बंधा हुआ है, वहां भी ऐसे गानों का निर्माण जोर-शोर से होने लगा है. बिना यह सोचे-समझे कि शब्द सुनने लायक हैं या नहीं, निर्माता इन्हें अपनी फिल्मों में शामिल करने लगे हैं. आज के युवाओं की मांग और खुली मानसिकता की दुहाई देते हुए वह बस अपने मंतव्य साधने का प्रयत्न करते हैं.
हालांकि इससे पहले भी कई बार इन गानों और दृश्यों को लेकर विरोध और विवाद होते रहे हैं लेकिन अभी तक ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया जिससे यह सब नियंत्रित किया जा सके. कहने को सेंसर बोर्ड जैसी संस्था भी है जो बॉलिवुड उत्पाद पर नजर रखती है लेकिन उसकी कार्यप्रणाली भी संदेह के घेरे में घिरी हुई है.
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