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युवाओं को सेक्स के प्रति आकर्षित करते आधुनिक संचार माध्यम

use of smartphonesआधुनिक परिदृश्य के मद्देनजर यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि एक ओर जहां आधुनिक तकनीकें मानव जीवन को सहज बनाने के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर युवा, जिन्हें हम राष्ट्र के भविष्य के रूप में देखते हैं, उनके आचरण और मस्तिष्क को भ्रमित करने में भी यह नई तकनीकें पूरा योगदान दे रही हैं.


विशेषकर इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाएं युवाओं के चरित्र को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करने के साथ उनकी जिज्ञासाओं के क्षेत्र में भी गैर जरूरी विस्तार ला रही हैं.


शारीरिक संबंधों के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह संबंधित महिला और पुरुष का आपसी मसला होता है, जिसका सार्वजनिक बखान करना पूर्णत: निषेध माना जाता है. लेकिन आज जब इंटरनेट की सुविधा हर घर में मौजूद है तो सेक्स संबंधी जानकारी से अवगत होना कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है. इतना ही नहीं अब तो वैसे भी स्मार्ट फोन जैसी आधुनिक तकनीकों का जमाना है जिनकी सहायता से व्यक्ति चलते-फिरते भी विभिन्न जानकारियों से अवगत हो सकता है.


आंकड़ों की मानें तो अधिकांश युवा सेक्स से जुड़े विषयों को जानने के लिए ही इंटरनेट का उपयोग करते हैं. लेकिन ऐसी परिस्थितियों में हम टेलीविजन, जिसे मनुष्य के लिए जरूरी सूचनाओं और मनोरंजन का एक उत्तम साधन माना जाता है, की वर्तमान कार्यप्रणाली और प्रक्षेपित विषय वस्तु को नजरअंदाज नहीं कर सकते.


मनोरंजन के नाम पर टेलीविजन पर फूहड़ता प्रदर्शित करना एक आम बात बन गई है. विज्ञापन हो या फिर कोई अन्य सामग्री, टीआरपी बढ़ाने और लोकप्रिय बनाने के लिए निर्माता और निर्देशक विभिन्न हथकंडे अपनाने लग गए हैं. युवाओं को लुभाना उनका पहला लक्ष्य होता है, इसीलिए वह ऐसी विषय वस्तु को संचारित करने का अधिकतम प्रयास करते हैं जो युवाओं को आकर्षित करने की गारंटी लेती हैं. टी.वी. पर आने वाले भद्दे और अश्लील विज्ञापन इन्हीं हथकंडों का एक मुख्य उदाहरण हैं.


एक नए सर्वेक्षण के अनुसार युवा वर्ग इंटरनेट और टेलीविजन पर आने वाले अश्लील सामग्रियों के प्रति इतना अधिक आकर्षित होने लगे हैं कि वे इनसे जुड़ी सामग्रियों को, चाहे वे तस्वीर हो या फिर कोई मैसेज, मोबाइल पर एमएमएस या एसएमएस के जरिये अपने दोस्तों को भेजते रहते हैं. युवाओं की भाषा में इसे सेक्सटिंग कहा जाता है.


भले ही कुछ लोगों के लिए सेक्सटिंग जैसा शब्द थोड़ा नया हो, लेकिन युवा वर्ग के बीच यह काफी पहले ही लोकप्रिय हो गया था. आजकल लगभग सभी मोबाइल फोनों में एमएमएस जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं जिसकी सहायता से अब कंप्यूटर चलाना भी जरूरी नहीं रह गया है. मोबाइल पर एमएमएस भेजकर वह सूचनाओं और तस्वीरों का आदान-प्रदान कर लेते हैं.


मेलबोर्न की प्राइमरी रिसर्च यूनिवर्सिटी द्वारा हुए इस अध्ययन में 15-20 आयु वर्ग के युवक और युवतियों को शामिल किया गया जिनमें से अधिकांश ने यह बात स्वीकार की है कि वह अपने दोस्तों को मोबाइल या फिर ई-मेल की सहायता से सेक्सुअल तस्वीरें और मैसेज भेजते हैं. हालांकि ऐसे युवकों में यह प्रवृत्ति अधिक देखी गई है लेकिन युवतियां भी कुछ हद तक ऐसी सामग्रियों में दिलचस्पी रखती हैं.


इस शोध की मुख्य शोधकर्ता शैली वार्कर का कहना है कि सेक्सुवाइज्ड मीडिया संस्कृति के कारण युवाओं में सेक्सटिंग का क्रेज बढ़ता जा रहा है.


भारतीय युवाओं की मानसिकता के आधार पर अगर हम इस शोध को देखें तो यह बात प्रमाणित हो जाती है कि सेक्सटिंग जैसी संस्कृति ना सिर्फ विदेशी पृष्ठभूमि में बल्कि भारतीय परिवेश में भी अपनी जड़ें जमा चुकी है.


प्राय: हमारे युवाओं में भी दोस्तों के साथ अश्लील सामग्री बांटने और एक-दूसरे के साथ भद्दे मजाक करने जैसी प्रवृत्ति देखी जा सकती है. हमारे युवा संचार के सभी मौजूद साधनों का उपयोग अपनी सेक्स संबंधी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए ही करते हैं. टी.वी. पर आने वाली अश्लील सामग्री उन्हें इस ओर अत्याधिक प्रेरित करती है. विज्ञापन और फिल्मों में आने वाले भद्दे दृश्य निर्माता और निर्देशक की अपनी समझ पर आधारित होते हैं. अधिक धन कमाने की लालसा में वह इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि इसका युवाओं के मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ सकता है.


युवा अपनी जिज्ञासाओं को विस्तार देने के लिए वह इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न साइटों की ओर रुख करते हैं जो निश्चित रूप से उनके चरित्र और आचरण को गलत ढंग से प्रभावित करती हैं. अपने दोस्तों की देखा-देखी अन्य युवा भी इसमें ज्यादा रुचि लेने लगते हैं. धीरे-धीरे वह पूरी तरह ऐसी अश्लील सामग्रियों की चपेट में आ जाते हैं.


युवावस्था आयु का एक ऐसा पड़ाव होता है जिसमें सभी चीजें जरूरी और आकर्षक लगती हैं. युवाओं के लिए यह अंतर करना मुश्किल हो जाता है कि उनके लिए सही और गलत क्या है. उनके समक्ष जो बार-बार परोसा जाता है वह उसी ओर आकर्षित होने लगते हैं.


कहते हैं पढ़ने या सुनने से कहीं अधिक दिखाई गई चीजें प्रभावित करती हैं. ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दायित्व और अधिक अधिक बढ़ जाता है. युवा जो देखते हैं उनसे प्रभावित होने लगते हैं. टी.वी. पर वो क्या देखते हैं यह उनके हाथ में नहीं है. टी.वी. पर देखने के बाद उसे वह इंटरनेट पर तलाशते हैं और यह पूर्णत: टेलीविजन पर दिखाए गए दृश्यों का ही परिणाम होता है.


युवा मस्तिष्क बहुत जल्दी चीजों को ग्रहण कर लेता है. उन्हें सही राह पर लाना जितना परिवार का कर्तव्य है उतना समाज का भी है. पैसे के लिए उनके भविष्य के साथ खेलना किसी भी रूप में हितकर नहीं है. इसीलिए अधिक धन कमाने के लक्ष्य को पाने के अतिरिक्त मीडिया हस्तियों और विज्ञापन निर्माताओं को अपनी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी का मोल भी समझना चाहिए.


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