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वैवाहिक संबंधों को मजबूती प्रदान करता है आर्थिक संकट

emotional bonding in familyमंदी का दौर खुशहाली की राह में ग्रहण से कम नहीं है. परिवार की सुख-समृद्धि आर्थिक हालातों पर बहुत हद तक निर्भर करती है. जब तक व्यक्ति वित्तीय रूप से संतुष्ट नहीं होगा वह अपने परिवार को भी खुशियां नहीं दे पाएगा. यही कारण है कि जब बाजार पर मंदी की मार पड़ती है वैवाहिक जीवन में भी उथल-पुथल मच जाती है.


जिन लोगों की मासिक आय पहले ही कम होती है उन्हें मंदी का दौर और अधिक प्रभावित करता है. प्राय: हमने मंदी या आर्थिक संकट से जूझ रहे व्यक्तियों को आत्महत्या करते सुना है. कई बार तो पूरा परिवार ही इसकी चपेट में आ जाता है. लेकिन एक नए सर्वेक्षण के अनुसार मंदी का दौर ना सिर्फ संबंधित पुरुष को मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है बल्कि इस दौरान वह अपनी पत्नी के साथ बेवफाई करने से भी नहीं हिचकता. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वित्तीय संकट से जूझ रहा पुरुष अपनी जीवन साथी के साथ विश्वासघात करने में कोई बुराई नहीं समझता और अन्य महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर लेता है.


स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि वैवाहिक जीवन के प्रति पुरुष की प्रतिबद्धता उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है. जब तक उसकी वित्तीय समृद्धि बरकरार है तब तक उसके बहकने की संभावना कम है. लेकिन जब उसे यह लगने लगता है कि अब उसका भविष्य सुरक्षित नहीं है, वह जीवन साथी की भावनाओं की परवाह किए बगैर स्वयं को संतुष्ट करने के लिए कोई भी सीमा लांघ सकता है.


इस शोध के मुख्य शोधकर्ता और मनोवैज्ञानिक ओमरी गिल्लथ का कहना है कि पुरुष भावनात्मक रूप से अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं. चुनौतीपूर्ण वातावरण में वह सहज व्यवहार नहीं कर पाते.


ओमरी का मानना है कि सुरक्षित वातावरण और जीवन यापन करने के लिए उत्तम सुविधाओं की परिस्थितियों में पुरुष अपने खुशहाल वैवाहिक जीवन से बाहर नहीं जाते, लेकिन जब यह सब समाप्ति की कगार पर होता है, वह अपनी प्रतिबद्धता से भटकने लगते हैं.

महिलाओं को भोग की वस्तु समझते हैं पुरुष !!

वर्तमान हालात के मद्देनजर जब प्रतिस्पर्धा पूरी तरह हावी हो चुकी है ऐसे में यूनिवर्सिटी ऑफ कंसास द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट के अनुसार जब यह वित्तीय संकट अत्याधिक बढ़ जाते हैं और पुरुषों के पास स्थिति को नियंत्रित करने का कोई विकल्प मौजूद नहीं होता तब वह शारीरिक संबंधों के प्रति ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं. संबंधित पुरुष को अपने जीवन का अंत होता दिखाई पड़ता है और वह अपनी पत्नी के अतिरिक्त दूसरी महिलाओं के साथ संबंध स्थापित करने लगता है.


यह सब ऐसा ही है जैसे आपके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है और आपके आसपास के जानवर भूखे हैं.


इस शोध के बाद एक हैरान करने वाली बात सामने आई है कि पुरुष की ऐसी प्रवृत्ति के पीछे अपने वंश को आगे बढ़ाने की लालसा है. वह जितनी अधिक महिलाओं के साथ संबंध बनाएंगे उतनी संतानोत्पत्ति की संभावना भी बढ़ेगी. जब उन्हें लगने लगता है कि वह जल्द ही मरने वाले हैं तब उनमें संतान की चाह भी विस्तृत होने लगती है.


भारतीय परिवेश में पुरुषों की यह प्रवृत्ति थोड़ी भिन्न दिखाई देती है. प्राय: देखा जाता है कि वे पुरुष जो धन-वैभव के साथ अपना समय व्यतीत कर रहे हैं, जिनके पास अच्छी जॉब या फलता-फूलता व्यवसाय है, विवाहेत्तर संबंधों में अपेक्षाकृत अधिक संलिप्त होते हैं. इसके पीछे जहां उनकी कमजोर प्रतिबद्धता उत्तरदायी है, वहीं संबंधित महिला की भौतिक जरूरतों की पूर्ति एक बड़ी भूमिका निभाती है. ऐसे पुरुष अपनी पत्नी को मात्र घर की शोभा मानते हैं और विवाह के बाद भी अपनी आदतों से पीछा नहीं छुड़ाते. वहीं दूसरी ओर निम्न आय वाले परिवार जो आर्थिक रूप से स्थिर नहीं हैं, जिनके पास जीवन यापन करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है, वह विवाहेत्तर संबंध तो वहन नहीं कर पाते लेकिन अधिक संतानों की चाह अवश्य रखते हैं. इसके पीछे उनकी यह धारणा रहती है कि परिवार में जितने ज्यादा बच्चे होंगे कमाई करने वाले हाथ भी बढ़ेंगे. बच्चे को पढ़ाना-लिखाना उनकी प्राथमिकता नहीं होती, बल्कि उसे जल्दी से जल्दी काम पर लगाना उनकी चाहत होती है.

पैसे की बलि चढ़ते वैवाहिक संबंध

भारतीय परिदृश्य में पारिवारिक संबंध बेहद मजबूत होते हैं. व्यक्ति की पहचान उसके परिवार पर आधारित होती है. पारिवारिक सदस्य एक-दूसरे के साथ आर्थिक नहीं भावनात्मक डोर से बंधे हुए होते हैं. यही वजह है कि जहां एक ओर आर्थिक संकट वैवाहिक जीवन में तनाव और मुश्किलें पैदा करते हैं वहीं पति-पत्नी के धैर्य के परिचायक भी होते हैं. दोनों में कितना प्रेम और भावनात्मक लगाव है वह ऐसे समय में ही प्रमाणित होता है. पत्नी अपने पति के साथ हर संभव सहयोग करती है. अपनी इच्छाओं को दरकिनार कर वह अपनी जरूरतों में भी कटौती कर देती है. वह अपने पति को आर्थिक समर्थन ना भी दे पाए लेकिन अपनी भावनाओं में कोई कमी नहीं आने देती. ना सिर्फ पत्नी बल्कि बच्चे भी पिता की विवशता समझते हैं और उनसे जितना हो सकता है वह अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं. पुरुष अपनी पत्नी के त्याग और बच्चों की जरूरतों के मोल को समझता है. ऐसे में उसके अपने परिवार के साथ विश्वासघात करना थोड़ा निरर्थक प्रतीत होता है. ऐसे हालातों में भले ही पुरुष अपनी आर्थिक जिम्मेदारियां निभाने में सफल ना रह पाए लेकिन परिवार के साथ उसके भावनात्मक संबंध पहले की अपेक्षा सुदृढ़ हो जाते हैं. परिवार का प्यार उसे हारने नहीं देता बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.


विदेशों में मंदी के दौर में पुरुष संतान की चाह में विवाह के बाहर का रुख करते हैं, लेकिन भारत जैसे परंपरावादी समाज में विवाह बेहद पवित्र माना जाता है. विवाहेत्तर संबंधों से उत्पन्न हुई संतान किसी भी हाल में स्वीकार नहीं की जाती. इसीलिए ऐसी विदेशी मानसिकता भारतीय परिप्रेक्ष्य में कारगर नहीं है.


उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि भारत में वैवाहिक और पारिवारिक संबंध आज भी अपने महत्व को संभाले हुए हैं. पति-पत्नी के बीच का संबंध कोई ऐसा विषय नहीं है जिसे अपनी सहूलियत के हिसाब से उपयोग में लाया जाए. यह एक सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था है जिसका निर्वाह करना सामाजिक और नैतिक रूप से व्यक्ति का दायित्व और कानूनी रूप से उसके लिए बाध्यता है.

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