हिंदू धर्म शास्त्रों में मनुष्य जीवन में विभिन्न संस्कारों का वर्णन किया गया है जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है विवाह संस्कार. क्योंकि विवाह ही एक ऐसा पड़ाव है जो जीवन के शेष सभी संस्कारों को आधार प्रदान करता है. जीवन में विवाह की महत्ता इस बात से भी आंकी जा सकती है कि हमारी मान्यताओं के अनुसार विवाह को व्यक्ति का दूसरा जन्म कहा जाता है. यह ना सिर्फ वर-वधू के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाता है, बल्कि उन दोनों के परिवारों को भी समान रूप से प्रभावित करता है. हमारी परंपराओं के अनुसार विवाह के पश्चात युवती अपने पति के घर चली जाती है और पूरी तन्मयता से उसके परिवार को अपना लेती है. इसके अलावा पुरुष भी विवाहोपरांत अपनी पत्नी के लिए पूर्ण समर्पित हो जाता है, उसके परिवार का ध्यान रखना भी अपना कर्तव्य समझता है.
विवाह की इसी महत्ता और उपयोगिता को समझते हुए माता-पिता विवाह संबंधी सभी निर्णय बड़ी सोच-विचार और सावधानी से करते हैं. चाहे परिवार संबंधी जानकारी हो या फिर विवाह संबंधी युवक के बारे में कुछ सूचनाओं से अभिभावक पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही विवाह के लिए अपनी रजामंदी देते हैं. विवाह के बाद परिवारों के बीच किसी भी प्रकार का मतभेद उत्पन्न ना होने पाए इसके लिए आवश्यक है कि परिवारिक सदस्यों के सभी पक्षों, उनके स्वभाव के बारे में जानकारी रखना भी आवश्यक है. प्रेम-विवाह करने वाले जोड़े एक-दूसरे को भली प्रकार जानते हैं और एक-दूसरे की पारिवारिक परिस्थितियों से भी परिचित होते हैं, इसीलिए ऐसे संबंधों में अभिभावकों की भूमिका न्यूनतम रह जाती है. लेकिन परंपरागत तौर पर जो विवाह होते हैं, उनमें अभिभावकों का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व होता है अपने बच्चों के लिए एक अच्छा और उपयुक्त जीवनसाथी तलाशना.
विवाह के पश्चात वर-वधू का जीवन खुशहाल बना रहे इसके लिए अभिभावक उन दोनों की कुंडली मिलाना भी जरूरी समझते हैं. वह किसी ज्योतिषी के पास जाकर संबंधित युवक-युवती की कुंडली दिखाते हैं और अगर वह ज्योतिष विशेषज्ञ उन्हें एक सफल वैवाहिक जीवन का आश्वासन देता है तो वे इस रिश्ते के लिए अपनी रजामंदी देते हैं. लेकिन अगर कुंडली के आधार पर ज्योतिष विशेषज्ञ यह प्रमाणित कर दे कि युवक-युवती के ग्रह-नक्षत्र एक-दूसरे से मेल नहीं खाते, जिसके परिणामस्वरूप उनके दांपत्य जीवन में तनाव हो सकता है, तो ऐसी परिस्थितियों में अभिभावक संबंध को आगे बढ़ाने का विचार त्याग देते हैं. चाहे परिवार कितना ही भला और शिष्ट क्यों ना हो, युवक और युवती के परिवार वाले इस ओर ध्यान ही नहीं देते. अपनी पसंद, सूझबूझ और प्राथमिकताओं को नजरअंदाज कर वह मात्र ज्योतिषीय रजामंदी को ही सफल जीवन के लिए जरूरी समझते हैं. उनकी इसी मानसिकता के कारण अच्छे-अच्छे रिश्ते उनके हाथ से निकल जाते हैं. हालात गंभीर तब बन जाते हैं जब किसी मांगलिक व्यक्ति के लिए जीवनसाथी का चुनाव किया जाता है. क्योंकि ज्योतिष विद्या के अनुसार अगर किसी मांगलिक व्यक्ति का गैर मांगलिक व्यक्ति से विवाह संपन्न होता है तो वर-वधू समेत पूरे परिवार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अकसर देखा जाता है कि पढ़े-लिखे और स्वभाव कुशल संतानों के अभिभावक भी अपने बच्चों के लिए जीवनसाथी के विषय में चिंतित रहते हैं. यह सब निराधार मानसिकता का ही परिणाम है. मनुष्य जीवन में कुछ भी कभी भी घटित हो सकता है, जिसके बारे में पूर्व जानकारी रखना असंभव है. अगर कुछ गलत होता है तो उसे कुंडली का दोष कहना अपरिपक्वता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.
क्योंकि परंपरागत विवाह शैली में विवाह करवाना अभिभावकों के हाथ में होता है इसीलिए ऐसी मानसिकता ऐसे संबंधों में प्रमुख रूप से विद्यमान रहती है. संबंध ना होने पर यह युवक और युवती को भावनात्मक या फिर मानसिक तौर पर आहत नहीं करता. लेकिन परिवार की रजामंदी से जब प्रेम विवाह होता है, तो उसमें भी कुंडली मिलवाई जाती है. अगर कहीं ज्योतिष के आधार पर कुंडली मेल ना खाए तो परिवार वाले संबंध को नकारना ही बेहतर समझते हैं. अगर बच्चे उनकी आज्ञा को मान लें, तो उन्हें भावनात्मक चोट पहुंचती है वहीं अगर उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर विवाह करते हैं तो परिवार वालों को ठेस पहुंचती है. इतना ही नहीं विवाह के पश्चात उन्हें किसी भी प्रकार के नकारात्मक हालातों से जूझना पड़ता है तो पढ़े-लिखे और समझदार होने के बावजूद उन्हें यही लगता है कि यह सब कुंडली ना मिलने के कारण हो रहा हैं. परिणामस्वरूप संबंध में खटास पैदा होने लगती है.
कंप्यूटर और इंटरनेट आने के बाद यह समस्या और अधिक विस्तृत हो चुकी है. आज जब हर घर में इंटरनेट लगा हुआ है तो अभिभावक बजाए अपने अनुभव और विचार क्षमता के कुंडली सॉफ्टवेयर पर भरोसा करते हैं. विवाह संबंधी युवक-युवती की मुख्य सूचनाओं का मेल कर वह अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं.
ज्योतिष विद्या पर निर्भर रह कर संबंधों की नियति प्रमाणित नहीं की जा सकती. कितने ही ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं जिनका विवाह बिना कुंडली मिलवाए हुआ है और वह एक खुशहाल जीवन यापन कर रहे हैं. इसके विपरीत पूरी तरह से आश्वस्त होने और कुंडली मिलान के बाद किए हुए विवाह भी सफलता की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते.
व्यक्ति की इसी संकीर्ण मानसिकता के कारण ज्योतिष विद्या का दुरुपयोग होने लगा है. हर गली-नुक्कड़ पर ऐसे ज्योतिष के नाम पर धोखाधड़ी करने वाले मिल सकते हैं. विवाह एक ऐसा संबंध है जिसकी सफलता और असफलता का अंदाजा पहले से लगाना नासमझी होगी. साथ रहने के बाद ही आपसी मेल-जोल के स्तर की संभावना व्यक्त की जा सकती है. जो होना है उसे टाला नहीं जा सकता और ना ही उसे बदला जा सकता है. अभिभावकों को चाहिए कि पुरानी और जड़ हो चुकी मान्यताओं पर ध्यान दिए बिना, कुंडली और ज्योतिषीय ग्रह-नक्षत्र को अपने निर्णय का आधार ना बनाएं. अपने बच्चों का विवाह एक अच्छे परिवार में और सभ्य व्यक्ति के साथ करें ताकि वे अपना वैवाहिक जीवन प्रसन्नता से व्यतीत करें.
Read Comments