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पुरुष वर्चस्व के लिए महिलाओं का शोषण नई बात नहीं

violence against womenपुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के सम्मान के साथ खिलवाड़ होना कोई नई बात नहीं है. अगर आप यह सोचते हैं कि वर्तमान हालात और आधुनिकता की बयार इन अपराधों के प्रति उत्तरदायी है, तो आपको यह जानकर आश्चर्य जरूर हो सकता है कि कई सदियों पूर्व, जब महिलाएं घर के भीतर ही रहा करती थीं, उनका अकेले कहीं भी बाहर आना-जाना किसी भी रूप में मान्य नहीं था, तब भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई प्रयास किए जाते रहे हैं. इन्हीं प्रयासों में से एक है 1740 ईसवी की ब्रिटेन में लिखी गई सेल्फ हेल्प बुक. जी हां, जिसके विषय में आप यह सोचते हैं कि यह महिलाओं को सशक्त और हर प्रकार की परिस्थिति से निपटने योग्य बनाने का आधुनिक तरीका है.


द लेडीज कंपेनियन नाम की इस किताब में यह साफतौर पर लिखा गया है कि कुंवारी, विवाहित और विधवा सभी महिलाओं के लिए इसे पढ़ना बहुत आवश्यक है. इस किताब में “महिलाएं अपनी सुरक्षा कैसे कर सकती हैं”, के साथ ही उनके कुछ मुख्य उत्तरदायित्वों का भी उल्लेख किया गया है. जैसे कुंवारी लड़कियों को अपने विचार कैसे रखने चाहिए, पत्नी किस प्रकार अपने पति को खुश रख सकती है आदि. इस किताब के अनुसार पत्नी की सबसे पहली जिम्मेदारी पति की खुशियों का और उसके बाद उसकी प्रतिष्ठा और सम्मान का ध्यान रखना है. किताब में दिए गए निर्देशों के अनुसार अगर आप किसी पुरुष की नीयत पर संदेह रखती हैं या आपको लगता है कि फलां पुरुष का आचरण और चरित्र ठीक नहीं है तो उससे नजरें मिला कर बात करना नुकसानदेह साबित हो सकता है.


यह किताब ब्रिटेन के एक लेखक के निजी संग्रह में से प्राप्त हुई है, जिसकी कीमत ड़ेढ़ लाख रूपए रखी गई है.


अठारहवीं शताब्दी में लिखी गई यह किताब इस बात को स्पष्ट कर देती है कि पुरुष हमेशा से ही महिलाओं के दमन-शोषण को अपना अधिकार समझते आए हैं. पुरुष वर्चस्व को बचाने के लिए महिलाओं के सम्मान की बलि लेना हमारे समाज का एक सदियों पुराना रिवाज है. लेकिन एक और बात जो गौर करने वाली है वो यह कि भले ही इस किताब का नाम लेडीस कंपेनियन रखा गया हो, लेकिन परोक्ष रूप से यह किताब महिलाओं को पुरुषों के अधीन रहने के लिए भी प्रेरित करती है. इस किताब में महिलाओं को यह समझाया गया है कि पति की खुशी के लिए कार्य करना उनका पहला उत्तरदायित्व है. इसके बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि पहले के समय में महिलाओं की खुशी, अपेक्षाएं कोई मायने नहीं रखती थीं.


यह बात तो सदियों पुरानी है. उस समय तो महिलाओं को किसी प्रकार की कोई स्वतंत्रता नहीं थी साथ ही वह पूर्ण रूप से पुरुष पर ही आश्रित थीं, इसीलिए पुरुष उसको आश्रय देने और उसकी जरूरतों को पूरा करने के एवज में उसका दमन अपना अधिकार समझते थे. लेकिन वर्तमान समय में महिलाएं भले ही आर्थिक तौर पर आत्म-निर्भर बन गई हैं, लेकिन समाज की नजरों में उसकी स्थिति परिवर्तित नहीं हुई है. आज भी हमारा समाज अकेली महिला के जीवन को दूभर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता. इसके अलावा घर के भीतर पति और बाहर अन्य पुरुषों की हैवानियत का शिकार होना भी महिलाओं के लिए कोई नई बात नहीं हैं. सशक्त और स्वावलंबी होने के बावजूद किसी भी रूप में वह अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं रह सकतीं.


आज हम महिला सशक्तिकरण का बखान करते नहीं थकते. लेकिन वास्तविकता यही है कि आज भी सामाजिक और पारिवारिक हालात बदले नहीं हैं. घर के भीतर हो या बाहर महिलाओं को यह जता ही दिया जाता है कि वह पुरुष के सहारे के बिना दो कदम नहीं चल सकतीं. शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण, पुरुषों को आज भी महिलाओं से ऊपर ही समझा जाता है. जहां महिलाएं आत्म-निर्भर बन स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हैं, वहां तो फिर भी थोड़ा बहुत फेरबदल हुआ है. लेकिन गृहणियों को तो अभी भी पराश्रित से ज्यादा और कुछ नहीं समझा जाता. गृहणियों पर घर और परिवार को संभालने की पूरी जिम्मेदारी होती है, लेकिन फिर भी उनके प्रयासों को तरजीह नहीं दी जाती.


crimes against womenपुरुषों के ऐसे बर्ताव के पीछे हकीकत यह नहीं है कि महिलाएं सक्षम या योग्य नहीं हैं, या फिर बिना किसी पुरुष के वो अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकतीं. बल्कि पुरुष महिलाओं के साथ ऐसा दोयम दर्जे का व्यवहार कर अपने पुरुषत्व को संतुष्ट कर लेना चाहते हैं. प्रकृति ने महिलाओं को शारीरिक तौर पर पुरुषों से कमजोर भले ही बनाया हो, लेकिन पुरुष शायद यह बात नहीं जानते कि महिलाएं मानसिक और भावनात्मक तौर पर उनसे कहीं ज्यादा सशक्त हैं. महिलाएं आज अपने अधिकारों और अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगी हैं. क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह समझ चुकी हैं कि पुरुष के अधीन रहने का साफ अर्थ उसे अपनी मनमर्जी करने देने की छूट प्रदान करना होता है. आज की महिलाएं शिक्षित और स्वावलंबी है वह समानता के अधिकार को केवल किताबों में पढ़कर संतुष्ट नहीं रहना चाहती. वह जानती हैं कि जब तक स्वयं अपने अधिकारों और अपने अस्तित्व के महत्व को नहीं समझा जाएगा, तब तक कुछ हासिल होने वाला नहीं है.


आज हमारा समाज आधुनिकता की राह पर चल पड़ा है. मॉडर्न विचारधाराओं का अनुसरण करते हुए भले ही वह अपने भेद-भाव पूर्ण रवैये से जुड़े तथ्यों को नकारने लगा हो लेकिन जब तक समाज में महिलाओं के अस्तित्व और उनकी स्वतंत्रता को सम्मानपूर्वक स्वीकार नहीं किया जाएगा तब तक स्थिति जस की तस बनी रहेगी. महिलाओं को अपनी सुरक्षा और अपने स्वाभिमान की लड़ाई को अपने बल पर ही लड़ना पड़ेगा. नहीं तो उसे अत्याचारों को सहन करने के लिए बाध्य किया जाता रहेगा.


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