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सास-बहू के बीच मधुर संबंध कैसे बने ?

in-lawsवैवाहिक परंपरा के अनुसार शादी के बाद हर लड़की अपने पिता के घर को छोड़ अपने पति के घर चली जाती है, जहां उसे अपने पति के परिवार को अपना परिवार समझ कर रहना पड़ता है. फिर चाहे ससुराल वाले कैसे भी हों, उन्हें अपनाना उसकी नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है. वैसे तो एक आदर्श विवाहित जीवन में ससुराल वाले लोग जैसे कि सास, ससुर आदि माता-पिता के जैसे ही व्यवहार करते हैं. लेकिन ऐसे आदर्श जीवन की कल्पना करना खुद को भ्रम में रखने के समान है क्योंकि सदियों से विवाहित युवती और उसके ससुराल वालों के बीच के संबंध हाशिए पर खड़े नजर आते रहे हैं.


विशेषकर सास-बहू के रिश्तों के तो क्या कहने. एक-दूसरे को ताने मारना, छोटी-छोटी बात पर बहस करना उनकी दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है. हालांकि विवाह के पश्चात पुरुष के संबंध भी पत्नी के परिवार से जुड़ जाते हैं लेकिन अलग रहने के कारण उसके जीवन में ससुराल वालों का हस्तक्षेप कम ही होता है. अगर फिर भी छोटी-मोटी नोक-झोंक होती है तो उसे मनोरंजक मान कर हंसी में उड़ा दिया जाता है. लेकिन महिलाओं के जीवन में सास की टोका-टाकी और हस्तक्षेप निश्चित रूप से उन्हें मानसिक रूप से बहुत प्रताड़ित करता है.


हाल ही में हुआ एक शोध यह साफ प्रमाणित करता है कि महिलाओं को हर छोटी बात पर अपनी सास की बातें सुननी पड़ती हैं. उनके द्वारा किया कोई भी कार्य उनकी सास को पसंद नहीं आता.


सर्वेक्षण में आए नतीजों की मानें तो दस में से सात महिलाएं सास के रोज-रोज के तानों से तंग आ चुकी हैं लेकिन फिर भी अपने जीवन में सास की उपस्थिति को सहन करने के लिए विवश हैं. उनकी सास कभी बच्चों की परवरिश को लेकर तो कभी खाना बनाने के तरीके और स्वाद को लेकर उन पर फब्तियां कसती ही रहती हैं.


गर्गल डॉट कॉम द्वारा कराए गए इस सर्वेक्षण में 1,000 महिलाओं ने हिस्सा लिया, जिनमें से अधिकांश ने यह माना है कि वह अपने पति की मां को सहन नहीं कर सकतीं. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 39% महिलाएं बच्चों की परवरिश को लेकर सास के तानों से तंग आ चुकी हैं. वहीं 20 % महिलाओं की शिकायत है कि उनकी सास उनके जीवन में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करती हैं, इसके अलावा वह उनके पति को आत्मनिर्भर नहीं बनने देतीं. माना जाता है कि दादा-दादी अपने पोता-पोती से बहुत लाड़ प्यार करते हैं, लेकिन कभी-कभार यही लाड़ प्यार बच्चों को बिगाड़ने का काम करता है. 18% प्रतिशत महिलाओं की यही शिकायत है कि उनकी सास बच्चों को ज्यादा दुलार देने के चक्कर में बिगाड़ रही हैं. लेकिन कुछ महिलाएं तो सिर्फ इसीलिए परेशान हैं कि उनकी सास बिना बुलाए उनके घर रहने आ गई हैं.


शोधकर्ताओं का मानना है कि सास ऐसा व्यवहार इसीलिए नहीं करतीं कि वह आपके प्रति कोई दुर्भावना रखती है या आप जो कर रही हैं उन्हें वो पसंद नहीं आता बल्कि वह सिर्फ आपके नए प्रयोगों और तरीकों को समझ नहीं पातीं और जैसे उन्होंने अपना घर परिवार संभाला है वह चाहती हैं कि आप भी वैसे ही संभालें. लेकिन आपको उनकी बात बुरी इसीलिए लगती है क्योंकि आप भले ही अपनी मां की राय और उनके आदेश को ना मानें, लेकिन आपको अपनी सास के आदेश का पालन करना ही पड़ता है.


इस सर्वेक्षण को भारतीय परिदृश्य में देखा जाए तो इस बात को कतई नकारा नहीं जा सकता कि भारतीय महिलाओं के जीवन में सास की उपस्थिति का क्षेत्र बहुत अधिक होता है. विदेशों में तो एकल परिवारों की प्रमुखता की वजह से सास का घर में आगमन एक मेहमान की ही तरह होता है जो सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही घर पर रहने आते हैं. लेकिन भारतीय परिवारों में माता-पिता अपने बच्चों के साथ ही रहते हैं. ऐसे में संभव है महिलाओं खासतौर पर गृहणियों की मानसिक स्थिति काफी हद तक तनाव ग्रस्त हो जाती है. हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है कि सास का काम बहू को ताने मारना ही होता है. आज के समय में जब महिलाएं भी बाहर जाकर कार्य करती हैं तो उनके पीछे सास ही उनके बच्चों और परिवार की पूरी जिम्मेदारी उठाती हैं. इसके विपरीत कई बहुएं भी अपने गलत व्यवहार से अनपेक्षित रूप से अपने ससुराल वालों का जीवन असहनीय बना देती हैं.


उपरोक्त के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सास-बहू का संबंध एक बेहद नाजुक और महीन धागे से बंधा हुआ होता है, जो उन्हें एक-दूसरे से जोड़ कर रखता है. परिवार में शांति और जीवन को सुखद बनाए रखने के लिए जरूरी है कि प्रेमपूर्वक रहा जाए. अगर बहू के साथ बेटी जैसा व्यवहार करें तो उसकी गलतियों को माफ करना आसान हो जाता है. वहीं अगर महिलाएं भी अपने ससुराल वालों को अपने माता-पिता का दर्जा देती हैं, तो उन्हें कभी उनकी उपस्थिति बोझ नहीं लगेगी और अगर वह कुछ कहते भी हैं तो उनकी डांट में भी प्यार नजर आएगा.


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