मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पारिवारिक वातावरण और आसपास की परिस्थितियां मनुष्य के चरित्र निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. बचपन में ही व्यक्ति के आचरण और उसकी आदतें देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यस्क होने के बाद वह समाज में अपनी कैसी पहचान बनाएगा. नकारात्मक परिस्थितियों के कारणवश कई बच्चे अपराध की दुनियां में कदम रख देते हैं, जो उनके संपूर्ण जीवन को अंधकार के गर्त में धकेल देता है. बचपन में किए गए उनके यही अपराध आगे चलकर उन्हें बड़ा अपराधी बना सकते हैं. किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें अपनाई गई आदतों को छोड़ पाना एक कठिन कार्य होता है और अगर किशोर अपरधियों को उनके कृत्यों के लिए कठोर सजा दी जाए तो वह सुधरने से कहीं ज्यादा जिद्दी और खतरनाक हो जाते हैं. बचपन में की गई गलतियों के प्रभाव उनके आने वाले जीवन पर ना पड़ें, इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारत में ऐसे अपराधियों को बाल अपराधियों की श्रेणी में रखा गया है.
कौन होते हैं बाल-अपराधी
भारतीय कानून के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर कोई ऐसा कृत्य करें जो समाज या कानून की नजर में अपराध है तो ऐसे अपराधियों को बाल-अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है. किशोरावस्था में व्यक्तित्व के निर्माण तथा व्यवहार के निर्धारण में वातावरण का बहुत हाथ होता है. हमारा कानून भी यह स्वीकार करता है कि किशोरों द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार के लिये किशोर बालक स्वयं नहीं बल्कि उसकी परिस्थितियां उत्तरदायी होती हैं. इसी वजह से भारत समेत अनेक देशों में किशोर अपराधों के लिए अलग कानून और न्यायालय और न्यायधीशों की नियुक्ति की जाती है. उनके न्यायाधीश और संबंधित वकील बालमनोविज्ञान के अच्छे जानकार होते हैं. किशोर-अपराधियों को दंड नहीं, बल्कि उनकी केस हिस्ट्री को जानने और उनके वातावरण का अध्ययन करने के बाद उन्हें “सुधार गृह” में रखा जाता है जहां उनकी दूषित हो चुकी मानसिकता को सुधारने का प्रयत्न किए जाने के साथ उनके साथ उनके भीतर उपज रही नकारात्मक भावनाओं को भी समाप्त करने की कोशिश की जाती है. ऐसे बच्चों के साथ घृणित बर्ताव ना अपना कर उनके प्रति सहानुभूति, प्रेमपूर्ण व्यवहार किया जाता है.
बाल-अपराध के लिए उत्तरदायी परिस्थितियां
बाल-अपराध की श्रेणी में रखे जाने वाले कृत्य
बाल-अपराधों को हम सामाजिक और पारिवारिक दो भागों में बांट सकते हैं. हालांकि पारिवारिक अपराधों के प्रति दंड देने जैसी कोई व्यवस्था भारतीय कानून में नहीं हैं. लेकिन फिर भी 16 वर्ष से कम आयु वाले बच्चे अगर ऐसा कोई भी काम करते हैं जिसके दुष्प्रभावों का सामना उनके परिवार को करना पड़ता है तो वह बाल-अपराधी ही माने जाते हैं. पारिवारिक बाल अपराधों में निम्नलिखित कृत्य शामिल किए जाते हैं.
परिवार शायद बच्चों के भद्दे और गलत आचरण को एक बार सहन कर सकता है लेकिन अगर बच्चे ऐसी आदतों को अपनाएं जो समाज की नजर में घृणित समझे जाते हैं तो निःसंदेह उसे अनदेखा नहीं किया जाता. बल्कि ऐसे अपराधों को किशोर-अपराध या बाल-अपराध की श्रेणी में रखा जाता है.
अगर कोई भी बच्चा जो उपरोक्त गलत कृत्य करता है तो उसे अपराधी माना जाएगा, जिसके लिए उसे वयस्क अपराधियों से अलग रख सुधरने का एक मौका दिया जाता है.
बाल अपराधियों को दिए जाने वाले दंड
कोर्ट यह मानता है कि इस उम्र के बच्चे अगर जल्दी बिगड़ते हैं और उन्हें अगर सुधारने का प्रयत्न किया जाए तो वह सुधर भी जल्दी जाते हैं. इसीलिए उन्हें किशोर न्याय-सुरक्षा और देखभाल अधिनियम 2000 के तहत सजा दी जाती है. इस अधिनियम के अंतर्गत बाल अपराधियों को कोई भी सख्त या कठोर सजा ना देकर उनके मस्तिष्क को स्वच्छ करने का प्रयत्न किया जाता है. उन्हें तरह तरह की व्यायसायिक परीक्षण देकर आने वाले जीवन के लिए आत्म-निर्भर बनाने की भी कोशिश की जाती है. हालांकि सुधार गृह में भी उनके साथ कड़ा व्यवहार ही किया जाता है, लेकिन सिर्फ उतना जितना माता-पिता अपने बच्चों के साथ करते हैं.
किशोर न्याय-सुरक्षा और देखभाल अधिनियम 2000 में किए गए संशोधन
सन 2006 में बाल-अपराधियों को सुधारने के उद्देश्य से बनाए गए अधिनियम में कुछ संशोधन किए गए जिसके अनुसार किसी भी बाल-अपराधी का नाम, पहचान या उसके निजी जानकारी सार्वजनिक करना एक दंडनीय अपराध माना जाएगा और ऐसा करने वाले को 25,000 रूपए तक का जुर्माना देना पड़ सकता हैं. इसके अलावा खंड 29 के अनुसार बाल-अपराधियों को सजा देने वाले पांच सदस्य समिति में कम से कम एक महिला भी शामिल होनी चाहिए.
हमारे देश में बाल अपराधियों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. खासतौर पर निम्न आर्थिक वर्ग से संबंधित वह बच्चे जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं, वो इन अपराधों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. क्योंकि उनके माता-पिता दोनों ही मजदूरी करते हैं इसीलिए वह अपने बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाते. लेकिन सिर्फ यह समझ लेना कि बाल-अपराध इसी वर्ग तक सीमित है तो यह कदाचित सही नहीं है. आंकड़ों की मानें तो पढ़े-लिखे और अच्छे स्कूल में जाने वाले बच्चे भी गलत क्रिया-कलापों में संलिप्त हो जाते हैं. जिसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह होता है कि उनके माता-पिता उन पर ध्यान ही नहीं देते. वह अपने जीवन में स्वयं इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें बच्चों की सुध-बुध ही नहीं रहती. हमें यह ध्यान रखना चाहिए आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं जिनके कंधों पर हमारे समाज की पूरी जिम्मेदारी है. अगर हमारी अनदेखी की वजह से यह कंधे कमजोर पड़ जाएंगे तो यह हमारे लिए कतई हितकारी नहीं होगा.
Read Comments