आधुनिकता की भेंट चढ़ता भारतीय समाज, पाश्चात्य देशों (Western Countries) की देखा-देखी नए-नए नियमों और व्यवस्थाओं को अपने में शामिल करने की ज़िद करने लगा है. वैश्वीकरण (Globalization), जहां एक ओर भारत जैसे अल्प-विकसित देशों (Under Developed Countries)की अर्थव्यवस्था (Economy) के लिए वरदान साबित हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसके कई गंभीर परिणाम भी समय के साथ सामने आते रहे हैं, जिन्हें न तो नकारा जा सकता है और न ही नजरंदाज किया जा सकता है.
भारत (India) के संदर्भ में बात की जाए तो यह वह राष्ट्र है जो प्रारंभिक काल से ही अपनी परंपराओं और संस्कृति (Culture) की मजबूती के आधार पर विश्व पटल पर अपनी खास पहचान बनाए हुए है. संबंधों (Relationship) का भारतीय समाज में खास महत्व रहा है और अगर यह कहा जाए कि यही पारस्परिक संबंध (Mutual Relationship) इसकी मौलिक पहचान हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
लेकिन अक्सर यह देखा गया है कि जबसे वैश्वीकरण (Globalization), उदारीकरण (Liberalization) जैसी नीतियों के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों (Multinational Companies) का भारत में आगमन हुआ है, हमारा मूलभूत सामाजिक ढांचा (Social Structure) इससे काफी हद तक नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है. विदेशों में तो हमेशा से ही आपसी और पारिवारिक रिश्तों का महत्व न्यूनतम रहा है, जिसके कारण वहां संबंधों का टूटना-बिखरना एक आम बात है, वहीं अब भारत में भी रिश्तों का औचित्य खोने लगा है और व्यक्तिगत (Individual) हित के सामने आपसी रिश्तों का कद दिनोंदिन बौना होता जा रहा है. जिसका नवीनतम उदाहरण है बिना शादी किए साथ रहने की अवधारणा, जो महानगरों (Metro cities) में बढ़ता जा रहा है, जिसे हम लिव–इन-रिलशनशिप (Live-in-Relationship) के नाम से अधिक जानते हैं. इसके अंतर्गत महिला और पुरुष साथ रहते हुए अपने खर्चों को साझा रखते हैं. जैसे घर का किराया, खाना-पीना इत्यादि.
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आर्थिक तौर (Financially) पर देखा जाए तो आज महिलाएं भी पुरुषों की ही तरह सक्षम और सशक्त हैं, इसके अलावा महिला हो या पुरुष दोनों बेहतर कॅरियर विकल्प (Career Option) या आजीविका के लिए एक शहर से दूसरे शहर जाने से भी नहीं हिचकिचाते, तो बढ़ती महंगाई के चलते साझेदारी (Sharing) ही एक अच्छा विकल्प रह जाता है और व्यय (Expense) का उचित बंटवारा दोनों में से किसी को भी बोझ नहीं लगता.
लेकिन हमारा समाज जो रुढ़िवादी (Orthodox) होने के साथ-साथ परंपरावादी भी है, ऐसे किसी भी रिश्ते को जायज (Legal) नहीं ठहराता जो महिला या पुरुष को शादी से पहले साथ रहने की इजाजत दें. और अगर ऐसे संबंधों के प्रभावों की चर्चा की जाए तो यह साफ हो जाता है कि लिव-इन-रिलेशनशिप (Live-in-Relationship) जैसे रिश्ते खासतौर पर महिलाओं के लिए घाटे का सौदा साबित होते हैं.
गौरतलब है कि ऐसे रिश्तों को न तो कानून का कोई विशेष संरक्षण (Security) प्राप्त है और न ही समाज का, इसके उलट हमारा समाज तो ऐसे रिश्ते और इनका निर्वाह कर रहे लोगों को गलत नज़रों से देखता है. हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि महिलाएं आज भी सामाजिक रूप (Socially) से कई बंधनों और सीमाओं में जकड़ी हुई हैं. और बिना शादी किए साथ रहना उनके लिए एक अपराध (Crime) माना जाता है. सामाजिक दायरों (Social Limitations) और सीमाओं की बात छोड़ भी दी जाए तो वैयक्तिक दृष्टिकोण (Individual Aspect) से भी इसके कई दुष्प्रभाव हैं.
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जिन संबंधों को पारिवारिक और सामाजिक तौर पर मान्यता न मिले, यह अक्सर देखा गया है कि ऐसे संबंध स्थायी नहीं होने पाते. और इनके टूटने का खामियाज़ा केवल महिलाओं को ही भुगतना पड़ता हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि एक तो महिलाएं पुरुषों के मुकाबले अधिक संवेदनशील (Sensitive) होती हैं, और दूसरा ऐसी महिला जो बगैर शादी किए किसी पुरुष के साथ रहे उसे हमारा परंपरावादी समाज जो केवल विवाह (Marriage) जैसी संस्था (Institution) को अपनाने के बाद ही इसकी इजाजत देता है, उसे हमेशा गलत नज़रों से देखता है और उसे वह सम्मान (Respect) भी नहीं मिल पाता जिसकी वह अपेक्षा रखती है. यह मानसिक तौर (Mentally) पर तो उसे आघात पहुंचाता ही है, उसके चरित्र (Character) पर उठ रहीं अंगुलियां भी उसे जीने नहीं देतीं.
यद्यपि महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) द्वार लिव-इन-रिलेशनशिप (Live-in-Relationship) को कानून बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया है, लेकिन उसमें भी कई पेंच हैं, जैसे कि एक निर्धारित समय तक साथ रहने के पश्चात ही किसी महिला-पुरुष को पति-पत्नि माना जाएगा, और उनके अलग होने के बाद महिला को उचित मुआवज़ा (Compensation) और सम्मान दिया जाएगा. और इस बीच अगर संतानोत्पत्ति हो तो उसे जायज ठहराते हुए उचित अधिकार दिया जाएगा.
लेकिन इस बात का ज़िक्र कहीं नहीं किया गया कि उस निर्धारित समय सीमा से पहले ही अगर वह अविवाहित युगल अलग हो जाएं तो महिला और उसकी संतान के हितों की रक्षा के लिए क्या प्रावधान हैं?
बढ़ती भौतिकतावादी मानसिकता (Mentality) के कारण लिव-इन- रिलेशनशिप (Live-in-Relationship) का चलन बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण जिम्मेदारियों (Responsibilities) से जुड़े रिश्ते जैसे विवाह और परिवार की पारम्परिक मान्यताएं टूट रही हैं.
पुरुष ही नहीं, कई ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपने कॅरियर को प्राथमिकता देते हुए शादी जैसी बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से बचना चाहती हैं, लेकिन ऐसे में उन महिलाओं के हितों को नहीं नकारा जा सकता जो किसी बहकावे में आकर ऐसे झूठे रिश्तों की भेंट चढ़ जाती हैं. साथ ही इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि ऐसे रिश्तों की बढ़ती लोकप्रियता (Popularity) का बुरा असर खासतौर से हमारी युवा पीढ़ी (Youth) पर पड़ रहा है, और यदि कानून द्वारा लिव-इन-रिलेशन (Live-in-Relationship) जैसे रिश्तों को मान्यता (Recognition) मिल गई तो यह हमारी संस्कृति (Culture) और परंपराओं को नष्ट (Ruin) करते हुए, संभवत: हमारे समाज पर भी गहरा आघात करेंगे.
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