शादी के बंधन में बंधने के लिए जवान पुरुष तो आगे रहते ही हैं. लेकिन अगर पुरुष 45-50 की उम्र का हो या तलाकशुदा भी हो तो वह भी इस बंधन में बंधने के लिए तैयार रहता है. हो भी क्यों न जब दुल्हन कुंवारी और कम उम्र मिल रही है. हाल ही में वेबसाइट जीवनसाथी डॉट कॉम द्वारा कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि भारत में अधिकतर तलाकशुदा पुरुष शादी के लिए कुंवारी लड़कियों को प्राथमिकता देते हैं.
भारत में आदि काल से ही समाज पर पुरुषों का वर्चस्व रहा है. इस पुरुष आधारित समाज ने महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं रखा. इस समाज में पुरुषों को कई-कई शादियां करने का अधिकार है. हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रन्थ रामायण, जिसे कई लोग अपने जीवन का प्रमुख अंग मानते हैं, में श्री राम के पिता दशरत की भी तीन पत्निया थीं. प्रमुख वेदों और उपनिषदों में भी इसके और प्रमाण मिल सकते हैं. इसके अलावा कई राजा महाराजा भी हुए जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में कई शादियां की. यह बात केवल एक धर्म की नहीं है कई नारियों को रखने की प्रथा अन्य धर्मो में भी देखी जा सकती है. मुस्लिम समाज में तो एक पुरुष को चार-चार शादियां करने का अधिकार है. आधुनिक काल में ऐसी प्रथाओं का चलन बदस्तूर जारी है . आज भी पुरुष घर के स्वाद को छोड़कर बाहर के स्वाद को चखने जाते हैं. पुरुषों ने इसे घर वाली, बाहर वाली का भी नाम दे रखा है.
टीम में जगह पाना अब तो दूर की कौड़ी है
इस तरह के सर्वे भारत के लिए पूरी तरह से खरे उतरते हैं जहां पर बड़ी मात्रा में तलाकशुदा पुरुष और विधुर कुंवारी लडकियों से शादी करते हैं जबकि उनकी सूची में विधवा महिलाओं की वरीयता काफी कम है. भारत में कहीं आपने सुना है कि तलाकशुदा पुरुष या शादीशुदा पुरुष जिसकी पत्नी मर गई हो वह किसी विधवा महिला से शादी कर रहा है. क्योंकि समाज के ठेकेदारों ने विधवा महिलाओं को अशुभ का दर्जा दिया है. उल्लेखनीय है कि भारत के पुनर्जागरण काल के दौरान ईश्वर चन्द्र विद्या सागर, राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों विधवा महिलाओं की पुनर्विवाह कराने का काफी प्रयास किया जिसमें वह कुछ हद तक सफल भी हुए लेकिन ज्यादा दिनों उनका यह प्रयास नहीं चल पाया. समाज द्वारा अपनायी गयी यह प्रथा भारतीय फिल्मों में भी दिखाई गयी है जिससे पुरुषों के कुंवारी लड़कियों से शादी करने की प्राथमिकता का अंदाजा होता है.
सर्वे से यह भी पता चला है कि शादी के मामले में लडकियों की सोच पुरुषों के मुताबिक काफी लचीली और अलग है. महिलाओं ने हालांकि दोबारा शादी की सूरत में अविवाहित पुरूषों के साथ-साथ तलाकशुदा पुरूषों को भी अपनी वरीयता सूची में रखा. भारतीय समाज में परिवार का बहुत बड़ा और गहरा महत्व है. यहां पर एक पुरुष अपने परिवार के खिलाफ काम कर सकता है लेकिन जब हम महिला की बात करते हैं तो उसे यह अधिकार नहीं है. परिवार के दबाव से उसे किसी भी पुरुष के हवाले कर दिया जाता है चाहे वह पुरुष बूढ़ा या फिर अपराधी हो जिससे लड़की को परिवार की आकांक्षाओं के आगे अपनी आकांक्षाओं को दबाना पड़ जाता है उसके अलावा उनकी निजी सोच की मानें तो उनका कहना है कि यदि वे किसी भी धनी तलाकशुदा पुरुष से शादी करती हैं तो उनका जीवन खुशहाल होगा और यह खुशी उन्हें कुंवारे गरीब पुरुष से शादी करने से नहीं मिलेगी.
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समाज की विडंबना देखिए कि यहॉ पुरुष किसी को भी तलाक दे सकता है और किसी कम उम्र वाली कुंवारी लड़की से शादी भी कर सकता है. यहां आज भी भारत के दूर दराज इलाके और कुछ शहरों में 18 वर्ष की कम उम्र की लडकियों की शादी बड़े बुजुर्ग से कर दी जाती है और यदि दुर्भाग्यवश उसके पति की मृत्यु हो जाए तो उस लड़की को दूसरी शादी का हक नहीं दिया जाता. और यदि कोई विधवा महिला दुबारा शादी करना भी चाहे तो उसे तलाकशुदा या विधुर पुरुष से ही विवाह करना पड़ता है. इसलिए यह सर्वे भारत के लिए पूरी तरह प्रासंगिक है. जरुरत है लोगों की मानसिकता को बदलना जो शायद कई पीढियों से चली आ रही है. हमें यह सोचना पडेगा कि इतनी जागरूकता के बाद भी परिवार के दबाव पर कम उम्र की लडकियों की शादियां क्यों की जा रही हैं वह भी एक तलाकशुदा और विधुर पुरुष के साथ.
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