Menu
blogid : 316 postid : 651

स्त्री समाज के प्रति गैर-संवेदी नजरिया

बदलते समय के अनुसार जीने के मूल्य भी बदलते हैं लेकिन ठीक उसी रफ्तार से समाज के नज़रिए में फर्क नहीं आता है. मध्यकालीन जीवन शैली में जैसे एकाएक बदलाव हुआ और अब आधुनिक जीवन शैली को सभी देशों और समाजों में आसानी से अपना लिया गया क्या ठीक वैसे ही समाज ने अपने जीवन मूल्य में परिवर्तन किया? नहीं बल्कि कहीं कहीं तो उससे भी कठोर जीवन मूल्य अपना लिए गए जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है स्त्री समाज.


ये बात कही जा रही है समाज में स्त्रियों के प्रति बढ़ते हुए अत्याचारों में भारी वृद्धि को देखते हुए. अभी हाल ही में एक ट्रेन में यात्रा कर रही अरुणिमा के साथ हुए हादसे को देखते हुए तो यही लगता है. जिस समाज को स्त्री के प्रति संवेदी रुख अख्तियार करना चाहिए था वही समाज अरुणिमा के साथ हुए हादसे को मूकदर्शक बन कर देखता रहा. जिस बोगी में वह होनहार खिलाड़ी यात्रा कर रही थी क्या वह बोगी संवेदनाहीन लोगों से भरी पड़ी थी. एक अकेली लड़की जो अपने कॅरियर के लिहाज से घर से निकली थी समाज के गैर-संवेदी व्यवहार ने उसे अस्पताल पहुंचा दिया. अब उसके साथ हुए इस दुर्व्यवहार के बाद आप उसकी चाहे कितनी भी मदद कर दें क्या आप उसकी खोई हुई टांग वापस ला सकेंगे.


स्त्री सुरक्षा आज बेहद महत्वपूर्ण मामला बन चुका है. बदलते समय की जरूरतों को देखते हुए स्त्रियों का घर से निकलना जरूरी हो चुका है लेकिन इस असुरक्षापूर्ण माहौल को देखते हुए ना जाने कितनी लड़कियां बेहतर कॅरियर की उम्मीद को अलविदा करके घरों में बैठ जाती हैं जबकि उनके पास योग्यता की कोई कमी नहीं होती. ना जाने कितनी लड़कियां दुर्दांत हत्यारों की आकांक्षाओं की भेंट चढ़ जाती हैं और हम गूंगे-बहरे बन कर उन पर हो रहे अत्याचार को देखते रहते हैं.


हर बात सरकार के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती है बल्कि जरूरत है समाज की मनोदशा में बदलाव की. कोई मसीहा नहीं उतरेगा हमारी रक्षा के लिए बल्कि हमें स्वयं कदम उठाने होंगे अपनी सुरक्षा के लिए. लेकिन ऐसा समाज भी किस काम का जहॉ सुरक्षा की चिंता हो अपितु समाज तो ऐसा होना चाहिए जहॉ हर कोई अपने आप को सुरक्षित महसूस करे. एक ऐसा समाज होना चाहिए जहॉ लोग दूसरों के हितों की खातिर स्वयं के हितों की बलि चढ़ाने में गर्व का अनुभव करें. समाज का चरित्र निर्माण तमाम अन्य बातों से ज्यादा महत्वपूर्ण है. आदर्श नैतिक संहिता की शिक्षा बच्चे-बच्चे में कूट-कूट कर भरी हो ताकि फिर कभी किसी अरुणिमा को अपनी टांग ना गंवानी पड़े. ये अरुणिमा आपके या हमारे किसी के भी घर की हो सकती है इस बात ख्याल रहे तो फिर शायद कुछ बदलाव संभव है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh