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कन्या भ्रूण हत्या के मामले में बदतर हालात – Census of India 2011

जनगणना 2011 के ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश में छह साल तक की आबादी में एक हजार लड़कों के मुकाबले सिर्फ 914 लड़कियां ही हैं. ये तस्वीर चिंताजनक होने के साथ ही विद्रूप सामाजिक स्थिति की गवाह है. ये उस बात की ओर स्पष्ट संकेत करती है जहॉ स्त्री को दोयम दर्जे का समझा जाता है. आखिर गर्भ में ही बच्चियों को मार देने की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं? नारी को जन्म लेने के पहले से लेकर मृत्यु पर्यंत क्यों कष्ट सहने पर मजबूर किया जाता है. स्त्री अधिकार, स्त्री सशक्तिकरण की बात करने तक अपनी वास्तविक जिंदगी में स्त्री के प्रति अनुदार रवैया अपनाते हैं. सही ये होगा कि समाज अपनी मनोदशा में शीघ्र ही परिवर्तन कर ले अन्यथा कहीं ऐसा ना हो कि विकास की दौड़ अधूरी रह जाए.


जनगणना के ताजा आंकड़ों के मुताबिक हिंदुस्तान की आबादी बढ़ कर 121 करोड़ हो गई है. दस साल पहले हुई गणना के मुकाबले यह 17.64 फीसदी ज्यादा है. संतोष की बात यह है कि आबादी बढ़ने की हमारी रफ्तार कम हुई है और आजादी के बाद यह सबसे निचले स्तर पर है. पिछली जनगणना के मुकाबले जनसंख्या दर करीब चार फीसदी कम दर्ज की गई है. इसी तरह महिलाओं की तत्परता के कारण अब हमारी कुल 74 फीसदी आबादी साक्षर हो चुकी है. लेकिन चिंता की बात है कि इस दौरान गर्भ में बच्चियों की हत्या के मामले में हमने सारे रिकार्ड तोड़ दिए. छहसाल तक की आबादी में इस समय एक हजार लड़कों के मुकाबले सिर्फ 914 लड़कियां ही हैं.


ताजा जनगणना के मुताबिक प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का औसत पहले के 933 के मुकाबले बढ़ कर 940 हो गया है. सिर्फ बिहार, गुजरात और जम्मू-कश्मीर ही ऐसे तीन राज्य रहे, जिनमें महिलाओं का औसत कम हुआ है. ताजाआंकड़े साबित करते हैं कि लड़कियों को गर्भ में ही या पैदा होते ही मार देने की घटनाएं बढ़ी हैं. छह साल तक की आबादी में बच्चियों का औसत पिछली जनगणना के 927 से भी घट कर 914 हो गया है. छह साल तक की आबादी में लड़कियों के औसत के मामले में हरियाणा और पंजाब 830 और 846 के औसत के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं.


ममता, साइना नेहवाल, कृष्णा व कल्पना चावला जैसी महिलाओं ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भले ही अपने राज्य की नाक ऊंची की हो, लेकिन पुरुष प्रधान राज्य हरियाणा ने महिला-पुरुष लिंगानुपात में अपनी नाक जरूर कटा ली है. यह जानकारी 2011 की जनगणना के ताजा आंकड़ों में दी गई है. राज्य के झज्जर और महेंद्रगढ़ ने तो हरियाणा को शर्मसार किया है. दोनों जिले राष्ट्रीय सूची में सबसे निचले पायदान पर हैं.


हरियाणा में [0-6 साल की] लड़कियों संख्या के मामले में 2001 के मुकाबले लड़कियों की संख्या में सुधार होने के बावजूद यह राज्य राष्ट्रीय सूची में सबसे नीचे है. यहां प्रति एक हजार बालकों [छह साल तक के] के मुकाबले केवल 830 बालिकाएं हैं. पंजाब में भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. यहां प्रति हजार लड़कों के मुकाबले महज 846 लड़कियां हैं. जनसंख्या नियंत्रण के मामले में हरियाणा व पंजाब ने उल्लेखनीय प्रगति की है. पिछले एक दशक के दौरान आबादी की वृद्धि दर हरियाणा में 28.4 फीसदी से घटकर 19.9 फीसदी और पंजाब में 20.17 से घटकर 13.7 फीसदी रह गई है. दिल्ली के नजदीक होने की वजह से हरियाणा में जनसंख्या का घनत्व पंजाब के मुकाबले अधिक है. हरियाणा की आबादी 2.11 करोड़ से बढ़कर 2.53 करोड़ पहुंच गई है. पंजाब की आबादी 2.43 करोड़ से बढ़कर 2.77 करोड़ हो गई है.


हरियाणा में 2001 में 1000 पुरुषों के मुकाबले 861 महिलाएं थीं, उनकी संख्या 2011 में बढ़कर 877 हो गई. लेकिन यह राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बहुत पीछे है. पंजाब में यह अनुपात 2011 में महिलाओं की संख्या 893 हो गया है. महिलाओं की शिक्षा का स्तर राष्ट्रीय औसत के आसपास 66.8 फीसदी है. जबकि पुरुषों का 76.6 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत 82.14 फीसदी से पीछे है. हरियाणा के झज्जर में प्रति एक हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या केवल 774 और महेंद्रगढ़ में 778 है. यह संख्या देश के किसी भी जिले के मुकाबले सबसे कम है.

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