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बेस्ट हाफ का फंडा

पति-पत्नी के रिश्ते अब घर के बंद दरवाजों से बाहर निकलकर आम हो गए हैं. आज सब अपनी-अपनी दुकान लेकर चल दिए हैं पति-पत्नी के रिश्तों, दायित्व और उनकी जिम्मेदारियों की विवेचना करने जैसे कि सबने अर्थशास्त्र में पीएचडी ही करनी हो.


husband-and-wife-वैसे पति-पत्नी के रिश्ते निभाने के लिए हजार बातें सोचने की जरुरत नहीं. पति और पत्नी के बीच समझ वक्त के साथ ही पनपने लगती है और अगर दोनों के बीच अच्छा तालमेल है तो सभी शोध फेल हो जाते हैं. आज से कुछ समय पहले तलाक के मामले कम आते थे इसकी वजह लोगों में कानूनी जानकारी का अभाव नहीं बल्कि अधिक आपसी तालमेल का नतीजा था. लोगों के पास साथ बैठकर बात करने का समय होता था. अपनी परेशानियां और जिम्मेदारियां उन्होंने इस कदर बांटी होती थीं कि उस पर कोई आंच आने का सवाल ही नहीं पैदा होता था. लेकिन जब से लोगों ने अधिकारों को कर्तव्य से ज्यादा महत्व देना शुरु किया तब से हालात जटिल होते चले गए. पति और पत्नी के रिश्ते में अहंकार ने घर कर लिया और देखते ही देखते तलाकों और बिड़गते रिश्तों की संख्या बढ़ने लगी.


अब आप नीचे लिखी दो कहानियों को ही ध्यान से देंखे आपको सारा माजरा समझ आने लगेगा.


अंजलि और अनिल दोनों एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं. पति-पत्नी दोनों ही घर से बाहर निकलकर जॉब करते हैं पर उन्होंने घर के कामों को पारंपरिक तरीके से बांट रखा है जैसे खाना बनाना, झाडू पोंछा आदि अंजलि के जिम्मे है और वहीं घर के छोटे-मोटे कामों में अनिल सिर्फ कभी-कभी हाथ बंटाता है. इसी तरह जब अंजलि की तबीयत खराब होती है या उसका मन नहीं करता तो काम अनिल कर लेता है. इस तरह दोनों का दांपत्य जीवन बड़े ही मजे में गुजरता चला जा रहा है. पिछले कई सालों से दोनों में कभी मनमुटाव नहीं हुआ.


तो वहीं सुनीता और अभिषेक हैं. यहां भी कहानी एक समान है फर्क है तो बस इतना कि दोनों में जिम्मेदारियों को लेकर टकराव रहता है. सुनीता नए ख्यालों की होने के साथ अपने अधिकारों का हवाला देकर घर के कामों में हाथ नहीं बंटाना चाहती और वहीं अभिषेक भी घर के काम करने को मर्दों की शान के खिलाफ समझता है. दोनों में रोज सुबह छोटी-छोटी बात को लेकर झगड़ा होता है. हालात यह है कि दोनों अब एक साथ रहना भी नहीं चाहते.


उपरोक्त उदाहरणों से साफ होता है कि किस तरह अधिकार और कर्तव्यों में द्वंद रिश्तों में टकराव की वजह बनते हैं. आज सब अपने-अपने अधिकारों की दुहाई देने में लगे हैं. सबको अपनी आजादी चाहिए. और शायद यही वजह है कि युवा आज शादी से भी डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है इससे उनकी आजादी छिन जाएगी. सबको अधिकार तो याद रहते हैं लेकिन कर्तव्य कोई भी याद नहीं रखना चाहता. आज के युवाओं को वास्तविक रुप में पति और पत्नी के कर्तव्यों का जरा भी ज्ञान नहीं होता. उन्हें लगता है जैसे वह पहले आजाद जीते थे वैसे ही जीवन भर जिएं और यह सब होता है पश्चिमी सभ्यता को देखकर. भारतीय समाज में जिस तरह पाश्चात्य जीवन का रस आने लगा है उससे युवाओं में यह गलतफहमी पैदा हो गई है कि वहां का जीवन ज्यादा आसान और आजादी भरा है. वह आज के फायदों को तो देख  पा रहे हैं लेकिन बाद के परिणामों से अनभिज्ञ हैं. वह पश्चिमी जीवन के उस पहलू से रुबरु नहीं हैं जहां तलाक, अधेड़ अवस्था में अकेलापन और गिरती नैतिकता का फैलाव है.


एक उम्र के बाद हर किसी को सहारा चाहिए होता है. परिवार चाहिए होता है. अगर जवानी में ही रिश्तों की बुनियाद कमजोर रखी जाएगी तो उम्र के एक पड़ाव पर उनसे किस मदद की आस की जा सकती है.


अगर रिश्तों को बनाए रखना है तो सबसे पहले कर्तव्य और अधिकारों को समझना होगा. समझना होगा कि पति और पत्नी द्वारा पारंपरिक जिम्मेदारियों को निभाने में ही संपूर्ण आजादी है जहां नारी खुद को परिवार की अन्नपूर्णा समझती है और पति घर का पालक होता है. ऐसे रिश्तों में नारी सशक्तिकरण भी आड़े नहीं आता क्योंकि जब नारी में स्वाभिमान की भावना जगेगी तभी नारी सशक्त और समृद्ध हो सकती है. इसमें कोई दो राय नहीं कि नारी अकेले बल पर चाहे तो दुनिया हिला सकती है. पर नारी किसी भी परिवार की नींव भी होती है. बाहर काम करने के साथ-साथ अगर वह घर के काम भी संभालती है और पति इसमें उसका पूरा हाथ बंटाता है तो यह दोनों के रिश्तों को और मधुर बनाएगा.

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