वेश्यावृत्ति समाज के सबसे पुराने पेशों में से एक है. बेबीलोन के मंदिरों से लेकर भारत के मंदिरों में देवदासी प्रथा वेश्यावृत्ति का ही शुरुआती रूप है. इतिहासकार भी मानते हैं कि वेश्यावृत्ति का यह दलदल प्राचीन काल से चलता आ रहा है. युद्धों के दौरान और गुलाम प्रथा में भी इसकी भनक मिलती है. लेकिन पहले भी समाज में वेश्यावृत्ति को एक बहुत ही गिरा हुआ व्यव्साय माना जाता था और आज भी लोग इसे गिरी नजरों से ही देखते हैं.
वेश्यावृत्ति के प्रति समाज का दोहरा रवैया है. समाज में दिखावे के लिए ऊपरी तौर पर तो सब वेश्यावृत्ति के खिलाफ नजर आते हैं लेकिन बंद कमरों के पीछे वेश्यावृत्ति को फैलाने में वही समाज ही सहायक है. समाज में आज वेश्यावृत्ति इस कदर बस चुकी है कि लोग इसे कानूनी जामा पहनाने को तैयार हैं. इस दौड़ में आज भारत भी शामिल है. भारत में भी वेश्यावृत्ति काफी समय से चली आ रही है और समाज में इसकी पकड़ बहुत जबरदस्त बन चुकी है. वेश्यावृत्ति की पकड़ भारत में गांवो से लेकर मेट्रो तक बनी हुई है और इसकी गिरफ्त में हर उम्र के लोग आते हैं. बड़ी-बड़ी पार्टियों में जहां यह एक स्टेटस सिंबल की तरह भोजन के रुप में परोसा जाता है तो वहीं रेड लाइट एरिया में एक बाजार के रुप में बिकता है.
भारत में साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति रोकने में नाकाम सरकार को डांट लगाते हुए एक महत्वपूर्ण बयान दिया था. कोर्ट ने कहा था अगर सरकार और व्यवस्था इसे रोकने (वेश्यावृत्ति)में नाकाम हैं तो सरकार इसे कानूनी मान्यता ही क्यों नहीं दे देता जिससे कम से कम इससे पीड़ितों की सही जानकारी और उनका पुनरुत्थान हो सके.
कोर्ट का यह बयान नाकाम सरकार पर एक वार था जिसमें सरकार और व्यवस्था के अंदर बैठे ठेकेदारों को मलाई नजर आई और उन्होंने सरकार की टिप्पणी पर जोरदार तरीके से काम करना शुरु कर दिया. लगातार पश्चिमी सभ्यता और उनके कदमों पर चलती यह सरकार अब चाहती है कि वेश्यावृत्ति को भी कानूनी मान्यता दे दी जाए. सरकार पहले ही लिव इन और समलैंगिक संबंधो को मान्यता देने का सारा काम कर ही चुकी है और अगर सरकारी ठेकेदारों का दम इसी तरह उफान पर रहा तो जल्द ही हर गली और नुक्कड़ में हमें रेड लाइट एरिया देखने को मिलेगा.
वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने से जहां कुछेक फायदे होंगे वहीं लाखों नई परेशानियां और कानूनी अड़चनें आएंगी. सरकार वेश्यावृत्ति को तो कानूनी रुप दे देगी लेकिन क्या वह जानवरों की भूख को शांत कर पाएगी. मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि जितना उसे मिलता है वह उसे और ज्यादा मात्रा में चाहिए होता है. इसी तरह वेश्यावृत्ति को भी अगर कानूनी मान्यता दे दी जाएगी तो स्थिति और भयावह हो सकती है.
जिस तरह भोजन के बाद कुछ समय बाद दुबारा भूख लग जाती है उसी तरह वासना की भूख भी कुछ समय के बाद दुबारा जाग जाती है. और अगर वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता दे दी गई तो जिस नारी समाज के उत्थान की बात की जा रही है वह और भी गर्त में चला जाएगा. लोग रेप और बलात्कार जैसे पापों के बाद इसका सारा दोष स्त्री पर ही थोप देंगे. इसके साथ ही महिलाओं के साथ जबरदस्ती देह-व्यापार करवाने की घटनाएं ज्यादा सामने आएंगी. समय तो ऐसा भी आ सकता है जब लोग अपने घर की ही बच्चियों को इस दलदल में धकेल दें. पहले ही मानव-तस्कर अपनी हदों से बाहर जाकर पाप कर रहे हैं और अगर वेश्यावृत्ति को कानूनी मान लिया गया तो उनके हौसले और बढ़ जाएंगे.
इसी तरह हमें हर गली और चौराहे समेत पूरे समाज में इसकी छाप देखने को मिल सकती है. युवा वर्ग इसे जल्दी पैसा कमाने का जरिया मान दलदल में फंसने लगेगा और इन सब का असर पड़ेगा हमारी संस्कृति पर. भारतीय समाज और संस्कृति आज विश्व में सबसे सभ्य और विकसित मानी जाती है लेकिन अगर वेश्यावृति को कानूनी मान्यता मिल जाती है तो हमारी संस्कृति भी पश्चिमी सभ्यता की तरह ही निवस्त्र हो जाएगी.
सरकार को वेश्यावृत्ति को कानूनी रुप देने की बजाय यह सोचने पर विचार करना चाहिए कि कैसे वह इससे पीडितों को सुरक्षा दे पाए और इनके पुनरुत्थान का सही कार्य किया जा सके. साथ ही देशभर में फैले रेड लाइट एरिया में होने वाले देह-व्यापार पर लगाम लगाने की एक सफल योजना बनानी चाहिए. कुछ ऐसा उपाय होना चाहिए जिससे देश में वेश्यावृत्ति की फैलती जड़ों पर लगाम लगाई जा सके ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां घर से बाहर निकलने में शर्माएं न और न ही उन्हें समाज में अश्लीलता देखने को मिले.
एक अनजाना भविष्य – स्ट्रीट चाइल्ड
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