राजनीति और धर्म का रिश्ता सदियों पुराना है. राजनीति हमेशा ही अपने स्वार्थ के लिए धर्म को सीढ़ी बनाती रही है. अधार्मिक लोग राजनीतिज्ञ बनते रहे और धर्म के नाम पर अनाचार-अत्याचार करते रहे. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि क्या वाकई राजनीति से धर्म को अलग किया जाय या राजनीति हमेशा धर्मयुक्त रहनी चाहिए.
सबसे पहले तो बात धर्म की. आखिर धर्म है क्या? धर्म किसी मत या किसी भगवान की उपासना कर उसके नक्शे कदम पर चलना नहीं है. जब तक हम धर्म का मतलब भगवान या अल्लाह की उपासना समझेंगे तब तक हम धर्मनिरपेक्षता को हासिल ही नहीं कर सकते. धर्म एक बहुत ही सरल सी चीज है जिसे हासिल करना जरुर मुश्किल हो गया है. धर्म वह कृत्य या कार्य है जिनसे मानवजाति का कल्याण हो सके. ऐसा काम जिससे संपूर्ण मानवजाति का कल्याण हो और साथ ही किसी दूसरे के हितों को ठेस भी न पहुंचे.
भारत के साक्षेप में अगर कहें तो हम ही हैं जो धर्म को सही और विस्तृत तौर पर परिभाषित कर पाएं हैं. दुनिया के कई हिस्सों में धर्म की व्याख्या करने की कोशिश की गई लेकिन कहीं न कहीं वह भटकते हुए साबित हुए है पर भारत में धर्म की सही तस्वीर देखने को मिलती है जिसमें मानवकल्याण की बात की जाती है. चाहे हिन्दू जाति के लोगों का गरीबों को प्रसाद बांटना हो या साईं बाबा द्वारा मानवजाति को सर्वोपरि बताना या सिक्खों द्वारा सामूहिक भोज करवाना सबकी एक ही मंजिल है और वह है मानवजाति का कल्याण करना.
आप किसी भी धर्म ग्रंथ को उठा कर देख लें, सब यही कहते हैं कि मानवजाति का कल्याण करो आदि आदि. लेकिन आज के समय में राजनीतिक तत्व धर्म को एक हथियार की तौर पर इस्तेमाल करते हैं और वह भी बिना उसकी सही परिभाषा जाने. किसी भी नेता से पूछ लो भई धर्म क्या है? वह यहीं कहेगा हिंदू, मुसलमान या सिख.
राजनीति में यों तो धर्म का स्थान ही नहीं बनता लेकिन फिर भी अगर राजनीति होनी चाहिए तो हम कहते हैं वह धार्मिक होनी चाहिए यानि सबके कल्याण की सोच के साथ. जब तक नेताओं को धर्म का सही अर्थ नहीं पता होगा तब तक वह इसी तरह तथाकथित धर्म के अनुयायी बने हुए राजनीति की राह पर उन्मुक्त घूमते रहेंगे.
आज कोई कहता है कि मैं मुसलमानों को सहयोग देता हूं तो कोई दलितों का नेता बनता है लेकिन क्या कोई इंसानियत का नेता है जिसके लिए सभी धर्मों के लोग सिर्फ मानव हैं और उनकी पूजा पद्धति कुछ मायने नहीं रखती? आज जाति और धर्म कर्म से ऊपर हो चुका है.
संविधान ने हमें धर्मनिरपेक्ष तो घोषित कर दिया लेकिन आज की स्थिति में हमें धर्मनिरपेक्ष होने की बजाय धार्मिक होते हुए राजनीति में कार्यरत होना चाहिए था पर इसके लिए धर्म का सही मतलब पता होना चाहिए.
अंत में हम तो बस यहीं कहना चाहेंगे कि धर्म सिर्फ वह कार्य और कदम है जिससे मानवजाति का कल्याण हो और उससे किसी के हितों को भी नुकसान न पहुंचे.
Read Comments