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ये लो भारत इंडिया हो गया जी


आजादी मिली तो भारत अंग्रेजो से आजाद हुआ. देखते ही देखते भारत प्रगति की राह पर चल पड़ा. धीमी ही सही विकास की गाड़ी चल पडी मंजिल की ओर. गांवो और शहरों ने एक साथ चलना शुरु किया लेकिन न जानें क्यों इस तेज रफ्तार दौड़ में गांव शहरों से पिछड़ गए. आज हालात यह बन गए कि भारत और इंडिया एक होते हुए भी अलग अलग बन गए है जैसे कि रेल की पटरियां को हमेशा चलती तो साथ साथ है लेकिन कभी आपस में मिलती नही. आज का इंडिया मेट्रो में बसता है और यहां के लोग विकासशील देशों की सोच वाले हैं जबकि भारत ग्रामीण इलाकों में बसता है जहां के लोग परंपरावादी हैं. भारत और इंडिया का फर्क कदम कदम पर हम देखते है जैसे हाल ही में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान देखने में आया था.
सभी प्रयासों के बावजूद आजादी के छह दशक बाद भी देश के आश्चार्यजनक पहलुओं में एक है सुवि‍धाओं के दृष्टिद‍ से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़ा अंतर. वैसे तो आजादी के बाद से अमीर और अमीर और गरीब और गरीब हो गए लेकिन राजनीति के हर महासंग्राम ने यही मुद्दा उठाया कि गांवो का विकास होगा.
भारत और इंडिया का अंतर सबसे अधिक देखने में आता शिक्षा के स्तर में. जहां एक आम ग्रामीण दसवीं बारहवीं पास करके ही खुश है तो वहीं शहरी बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरुकता अधिक है. गांवों में तो दसवीं बारहवीं भी कुछ ही कर पाते है क्योंकि ज्यादातर को लगता है पैसा कमाना और मेहनत करना पढ़ने से बेहतर है. बचपन से ही बच्चों को मेहनत और काम सिखाने वाले ग्रामीण यह बात भूल जाते है कि मेहनत तो जानवर भी करते है और बिना शिक्षा के उनके बच्चें भी उन्हीं जानवरों जैसे होंगे जो मेहनत तो करते है लेकिन दिमाग से नहीं सिर्फ ताकत से. वहीं शहरी बच्चों में शिक्षा और जागरुकता इतनी ज्यादा होते है कि वह समय से पहले ही बडें हो जाते है.
इसी तरह भौतिक सुविधाओं में भी ग्रामीण और शहरी भारत में इतना अतंर है जो भारत को इंडिया बना देता है. अधिकतर गांवों में आज भी बिजली, पानी और अन्य भौतिक सुविधाओं की कमी है. वहीं इंडिया यानि शहरों में यह चीजें इतनी बडी मात्रा में है कि इनका दोहन होता है. बिजली, पानी और अन्य चीजों की बर्बादी से ही तो पता चलता है कि इंडिया बड़ा हो रहा है.

rual-house-of-india[1]वैसे आजकल इंडिया और भारत के बीच की खाई को बढ़ाने का सबसे अधिक काम किया है डिजिटल डिवाइड ने. मोबाइल और आधुनिक तकनीकों का जिस तेजी से इंडिया इस्तेमाल कर रहा है उस तेजी की बराबरी बारत नही कर पा रहा नतीजन एक डिजिटल डिवाइड की स्थिति सी बन गई है. मोबाइल, कैमरे, टेलीविजन आदि के नए मॉड्ल्स जो शहरी भारत यानि इंडिया में जब पूरी तरह घिस जाते है तब जाकर उनका प्रचार प्रसार गांवो में होता है. सबसे आसान है मोबाइल को ही देख लो. आज शहर में अमुमन हर आदमी के पास मोबाइल है , गांवों में भी यह है लेकिन उतनी तीव्रता से नही फैल रहा.

लेकिन भारत में ही दो भारत बनाने के पीछे का सबसे महत्वपूर्ण कारक है सरकारी तंत्र की दूरदृष्टि की कमी और नेताओं की सुस्त चाल. ऐसा नही है कि हमारे गांव सपंन्न नही है बल्कि संपन्न होने के बावजूद अफसरशाही और अमीरों की चाल में दबे गरीब और गरीब होते जा रहे है.

वैसे गांवों में सरकारी कामकाज को सही करने के लिए पंचायती राज की शुरुआत हुई जिसकी सफलता से सभी परिचित है. अगर कुछेक मसलों को छोड़ दे तो पंचायतों से गांवो को फायदा ही हुआ है. पर यह फायदा भी गांव में सही ढ़ंग से नही पहुचं पाता.

शहरी भारत और ग्रामीण भारत के इस खाई की वजह से ही आज भारत का पूर्न विकास नही हो पा रहा. आज भी विदेशी संस्थानों को भारत में गरीबी ही दिखती है. आज भारत के अधिकतर धनवान विश्व के सबसे अमीर इंसानों मे से एक गिने जाते है तो वही उन लोगों का देश सबसे गरीब देशों के नाम से जाना जाता है.
भारत सरकार और देश के नेताओं को भारत और इंडिया के बीच बढ़ती इस खाई को कम करने के लिए विशेष कदम उठाने चाहिए ताकि देश का सर्वागींण विकास हो सकें.

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