“आर्थिक भ्रष्टाचार तात्कालिक रूप से तो विकास के नए अवसर, नए संसाधन मुहैया कराता है और अचानक विकास की गति और जीडीपी की वृद्धिदर में तेज़ी लाता है. किन्तु जब यही आर्थिक भ्रष्टाचार स्थायी रूप से अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ बना लेता है तो लंबे समय में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में प्रभावी कमी आने लगती है.”
देश की उन्नति और विकास सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और प्रौद्योगिकीय ढांचे पर आधारित होती है. भारत ने 1991 में उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण को अपनाया जिसके बाद हमारी विकासदर में अप्रत्याशित वृद्धि आयी. iइससे हमारा बुनियादी ढांचा मज़बूत तो हुआ ही इसके साथ-साथ सर्वांगीण विकास का रास्ता भी प्रशस्त हुआ.
इस आर्थिक उन्नति का सबसे ज़्यादा फायदा महत्वाकांक्षियों ने उठाया. लखपति करोड़पति बनने लगे और करोड़पति अरबपति. आज फोर्ब्स की 50 सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में पांच भारतीय हैं.
अर्थशास्त्र में “ला आफ डिमांड” के अनुसार व्यक्ति तभी कोई चीज़ खरीदता है जब उसके पास “खरीदने की क्षमता हो.” 1991 के विकास से पूर्व भारतीयों में समृद्धि वस्तुओं को खरीदने की इच्छा तो थी परन्तु उनके पास खरीदने की क्षमता नहीं थी. परन्तु क्रय शक्ति में वृद्धि के बाद उसके पास यह क्षमता भी आ गई और अब भारतीय भी बेहतरीन संसाधनों का समानता से भोग करते हैं. लेकिन महत्वाकांक्षी व्यक्तियों में यह ललक कुछ ज़्यादा थी जिसके कारण हम दुगनी तरक्की के पथ पर अग्रसर हो गए. लेकिन इस विकास के लिए जिम्मेदार एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू पर किसी का ध्यान नहीं जाता है.
अमूमन यह माना जाता है कि भ्रष्टाचार किसी भी देश की समृद्धि और विकास में बाधक है. अर्थव्यवस्था सबसे ज़्यादा बुरे दौर में तभी गुज़रती है जब कि प्रशासन, राजनीति और समाज तीनो में भ्रष्ट आचरण की पैठ हो. सभी प्रकार के भ्रष्टाचार के लिए तो यह बात ठीक है किन्तु जब हम आर्थिक भ्रष्टाचार के बारे में एक अलग दृष्टिकोण से विचार करते हैं तो बात कुछ और ही नज़र आती है. अगर हम तेज़ी से बढ़ते हुए विकासशील देशों की हालिया घटनाओं पर नज़र डालें तो एक बात तथ्य के रूप में साफ़-साफ़ नज़र आती है कि इन देशों में आर्थिक भ्रष्टाचार की गति जितनी तेज़ हुई विकास की गति भी साथ ही साथ बढ़ती चली गई. यह तथ्य जाहिर करता है की कई बार विकास के लिए नकारात्मक समझा जाने वाला आर्थिक भ्रष्टाचार अर्थव्यवस्था के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है. लेकिन अगर हम एलडीसी यानी अल्प विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के नज़रिए से देखें तो यही आर्थिक भ्रष्टाचार उनके लिए खात्मे का सबब होता है.
आइए देखते हैं कि कैसे आर्थिक भ्रष्टाचार विकासशील देशों के लिए एक बेहतरी का स्त्रोत बनता है. जैसे महँगी लक्जरी गाड़ीयाँ खरीदने की हैसियत अमूमन उन्हीं के पास होती है जिनके पास अनाप-सनाप ढंग से कमाया गया धन होता है. हालांकि ऐसी गाडियां उद्योगपति भी खरीदते हैं लेकिन ज़्यादातर देखने में यही आता है कि नवधनाढ्य वर्ग विलासिता की चीजों को ज़्यादा खरीदता है. चाहे वह महंगी गाडियों की बात हो या प्लाज्मा टीवी जैसे महंगे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की बात हो यह सभी आम जनता की पहुंच से दूर होते हैं इसलिए यदि भ्रष्टाचार से अर्जित धन से संपन्न हुए नवधनाढ्य वर्ग की उपस्थिति ना हो तो तेज़ आर्थिक संचलन नामुमकिन होगा और अर्थव्यवस्था की गति जो आज दिख रही है उसमें कमी आ जाएगी.
लेकिन यह स्थिति दीर्घकालिक विकास के लिए विनाशकारी है. आर्थिक भ्रष्टाचार तात्कालिक रूप से तो विकास के नए अवसर, नए संसाधन मुहैया करता है और अचानक विकास की गति और जीडीपी की वृद्धिदर में तेज़ी लाता है. किन्तु जब यही आर्थिक भ्रष्टाचार स्थायी रूप से अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ बना लेता है तो लंबे समय में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में प्रभावी कमी आने लगती है.
जैसे आज अगर हम भारत की बात करें तो उदारीकरण के बाद आर्थिक भ्रष्टाचार के कई रास्ते खुले और भारत विकास की राह पर चल पड़ा. इस विकास में यदि हम एफडीआई और एफआईआई की बात करें या देश में नए औद्योगिक गतिविधियों के आरंभ की बात करें तो इन सभी में अप्रत्यक्ष रूप से धन का गलत रूप से लेन-देन सम्पन्न हुआ. इसके अलावा कई छोटे और बड़े कांट्रैक्ट में होने वाली करोड़ों की दलाली ने बहुत तेज़ी से एक नया सम्पन्न वर्ग खड़ा कर दिया. इंडिया शाइनिंग का नारा सार्थक लगने लगा.
अभी हम देख रहे हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन पर भ्रष्टाचार ने अपने पंख ऐसे पसारे कि कार्य अभी तक चल रहा है और बजट 17 गुना बढ़ कर दो हज़ार करोड़ को पार कर गया. लेकिन इन सब के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ हुआ आज सेंसेक्स के बीस हज़ार को पार करने का यही कारण है.
खेलों के चलते जो कार्य किए गए उससे बहुत लोगों को फायदा मिला. जहां एक तरफ़ रोजगार के नए साधन खुले तो दूसरी तरफ़ खेलों के नाम पर विकास कार्य का सहारा लेकर लोगों ने बहुत पैसा पीटा. कुछ लोग तो रात भर में करोड़पति बन गए. यह वही लोग थे जिनके पास अमीर बनने की महत्वाकांक्षा थी.
किन्तु ऐसी स्थिति में अंतिम रूप से अर्थव्यवस्था में अराजकता और अव्यवस्था बहुत गहराई तक जड़ जमा लेती है. अर्थव्यवस्था का सुचारु रूप से संचालन कठिन होने लगता है. असमान वितरण और संसाधनों के एक विशेष वर्ग में सीमित होते जाने की वजह से सामान्य जन की आर्थिक स्थिति खराब होती चली जाती है. ऊपर से देखने में ऐसा लगता है कि चारो ओर चमक-दमक और समृद्धि है. नवधनाढ्य वर्ग की देखा-देखी सामान्य जन में भी खर्च की प्रवृत्ति बढ़ती है और बचत शून्य हो जाता है. खर्च, बचत और निवेश में यह एक बड़ा अंतर लाता है. और इसका परिणाम दीर्घकाल में दिखाई देने लगता है.
स्थिति साफ है कि जो आर्थिक भ्रष्टाचार कम समय में बड़े बदलाव का वाहक बनता है वही लंबी अवधि में विनाशकारी परिणाम भी उत्पन्न कर देने में सक्षम है इसलिए जिस किसी भी देश को आर्थिक महाशक्ति के रूप में अपना नाम दर्ज कराना हो उसे भ्रष्टाचार खासकर आर्थिक भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की कोशिश करनी ही होगी.
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