शुरु से औरत का गहना होती है इज्जत. इज्जत महिला के अस्तित्व से भी ज्यादा मायने रखती है. इसकी कीमत सिर्फ एक महिला को ही पता होती है. इज्जत एक शब्द जिस पर महिलाओं का संसार टिका है. अब जरा सोचिए, आपके पुरुखों की सम्पति या आपका सबसे कीमती सामान कोई चुरा कर ले जाए जिसकी वजह से आप समाज में तुच्छ निगाहों से देखे जाएं तो आप क्या करेंगे. इस पीड़ा का अनुभव तो मात्र एक प्रतिशत भी नहीं उस पीड़ा की जो उस लड़की को होती है जिसके साथ बलात्कार हुआ हो.
बलात्कार किसी भी लड़की के लिए मौत से पहले मौत होती है. अब रानी(बदला हुआ नाम) के साथ जो हुआ वह मौत से कम नहीं था. पहले तो रानी के साथ उसके शरीर का कुछ वासना के भोगियों ने बलात्कार किया, उसके बाद उस असहाय को उसके खुद के माता-पिता ने कलंकिनी, कलमुंही जैसे अलंकारिक नाम दिए. कानून के रक्षकों ने उसे इंसाफ दिलाने की बजाय उसे ही दोषी माना और अंत में समाज की चुभती आखों से बचने के लिए उसने आत्महत्या को बेहतर माना.
आखिर बलात्कार बला क्या है
बलात्कार जैसे शब्द से ही अनुमान लगता है बलपूर्वक किया गया काम. अक्सर बलात्कार का प्रयोग उस जगह किया जाता है जहां 18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ जबरदस्ती उसकी इज्जत लूटी जाती है. हालांकि यही शब्द 18 वर्ष से ऊपर की लडकियों के लिए भी लागू होता है. रेप या बलात्कार एक ऐसा अपराध है जो एक स्त्री के साथ जबरदस्ती या उसकी इजाजत के बिना या कभी इजाजत के बाद भी किया जाए.
भारत की आईपीसी की धारा 375 के अनुसार जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं. साथ ही अगर किसी भी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं वह बलात्कार ही कहलायेगा. 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा किया गया सम्भोग भी बलात्कार है.
इस संदर्भ में भारतीय सापेक्ष में एक बात सबसे गौर करने की है शादी के बाद जबरदस्ती शारीरिक संबंध, प्रेमिका के साथ डेट के बहाने शारीरिक संबंध बनाने को भी बलात्कार की श्रेणी में रखा जाता है.
बलात्कार की श्रेणियां
हालांकि यह विषय कोई खास महत्व नहीं रखता लेकिन सामाजिक बीमारी की किसी भी श्रेणी को छोड़ना हमें गवारा नहीं.
बलात्कारी एक ऐसा वहशी बीमार होता है जिसे हर नारी में फिर चाहे वह उसकी मां हो या उसकी बहन, वह 6 माह की बच्ची हो या 60 वर्ष की वृद्धा उसे मात्र अपनी हवश पूरी करने का सामान लगती है. और इस जघन्य कुकर्म को करने के लिए कभी-कभी तो वह समूह में स्त्री को अपने हवश का शिकार बनाते हैं जिसे कानून सामूहिक बलात्कार कहता है. अब आप ही सोचिए जब किसी को अपनी बहन, मां, बच्चे और वृद्धा में सिर्फ वासना नजर आए तो उसे क्या कहेंगे.
क्यों लूटी जाती है इज्जत
बाजारवाद और पश्चिमी सभ्यता के फैलाव के कारण आए बदलाव ने पुरुष की भोग और वासना को चरम पर पहुंचा दिया है. खुलेपन के इस दौर में जहां हर चीज बिकने के लिए तैयार है, पुरुष को इज्जत भी बिकाऊ चाहिए.
हालांकि ऐसा नहीं है कि बलात्कार आज ही हो रहे हैं, बल्कि हमारे समाज में यह बहुत पहले से विद्यमान थे. जिसकी सबसे बड़ी वजह है पुरुष का अपने पौरुष को दर्शाने के लिए वासना को दर्शाना कि वह कितना उत्तेजक है. अब पुरुष के दिमाग में यह बात कहां से आई कहा नहीं जा सकता.
बलात्कार के पीछे जिन कुछ खास चीजों को अहम वजह माना जाता है वह निम्न हैं:
1. पश्चिमी सभ्यता का अधिक चलन : पश्चिमी सभ्यता जो खुलेपन और स्वतंत्रता की मांग को सर्वोपरि मानती है, जब यही स्वतंत्रता और खुलापन अपनी सीमा मे ज्यादा होती है तब अराजकता फैल जाती है और उसी अराजकता में यह बीमारी फैलने लगती है.
2. टीवी और इंटरनेट का प्रभाव : जब सेटीवी और इंटरनेट का उपयोग बढ़ा है तब से पुरुषों में वासना अपनी सीमा से कहीं अधिक बढ़ गई है.
3. महिलाओं का उत्तेजक दिखना : हालांकि यह भी पश्चिमी सभ्यता की देन है.
4. मदिरा के नशे में सब भूल जाना : मदिरा का नशा ऐसा होता है कि कई पुरुष इसके नशे में उत्तेजित होकर अपनी बच्ची,बहन या रिश्तेदार को ही वासना शांत करने का साधन समझ बैठते हैं.
बलात्कार क्यों होता है, कैसे होता है , किन परिस्थितियों में होता है यह सब उस महिला या लड़की के लिए कुछ मायने नहीं रखते जिसके साथ यह होता है. क्योंकि ऐसी स्थिति में उस पीड़िता के लिए जीवन कष्टों की गठरी बन जाती है. पहले तो उसका शारीरिक बलात्कार होता है और फिर हर डगर पर उसका मानसिक बलात्कार अपनों द्वारा होता ही रहता है.
चाहे हम कितने भी शब्द लिखें लेकिन सच्चाई यही है कि बलात्कार पीड़िता के दर्द को दर्शाना संभव नही, फिर भी हम इसकी मात्र एक कोशिश कर रहे हैं :
शारीरिक पीड़ा : बलात्कार के बाद यह सबसे पहली पीड़ा होती है. क्योंकि जब कोई जानवर अपनी पूरी ताकत से किसी की इज्जत लूटता है तो उस दर्द की पीड़ा मात्र से ही पीड़िता कई दिनों तक परेशान रहती है. और यह दर्द नाबालिग और कम आयु की लड़कियों में तो और भी ज्यादा होती है जिनके कोमल अंगों को यह जानवर नोच खाते हैं.
अक्सर सामूहिक बलात्कार के बाद पीड़िता को एड्स और गर्भ जैसी समस्या होने का खतरा बना रहता है. सामूहिक बलात्कार, जो आजकल कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं उसमें पीडिता का शरीर कभी-कभी तो इतना थक जाता है कि उससे मृत्यु भी हो जाती है. हालांकि ऐसे समय में पीड़िता को जल्द ही अगर चिकित्सकीय मदद मिल जाए तो हालात काबू में किए जा सकते हैं.
मानसिक पीड़ा
बलात्कार तो शरीर का होता है फिर मन को कैसी पीड़ा? लेकिन यह वह दर्द होता है जो हर दर्द से बढ़ कर होता है. शरीर का दर्द तो एक बार के इलाज से मिट भी जाता है लेकिन जो जख्म दिमाग में बनते हैं उसका अंत ज्यादातर आत्महत्या होती है. हालांकि यह गलत है किसी और की गलती के लिए खुद को दोषी मान कर सजा देना बेवकूफी है.
मानसिक अवसाद और अंधेरे में पीड़िता इस कदर गुम हो जाती है कि उसे अपने अस्तित्व का ख्याल ही नहीं रहता. हर समय मन उस डरावने समय को याद करता है और दिमाग पागलपन की तरफ खिंचता चला जाता है.
समाज के लिए पीड़िता मात्र घृणा और दया की पात्र
जिस चीज से मन सबसे ज्यादा दुखी होता है वह है इतना सब होने के बाद समाज का रवैया. एक ऐसी लड़की जिसकी इज्जत लुट चुकी हो उसे समाज अधिकतर बुरी निगाहों से देखता है खासकर निम्न और मध्यम वर्ग में तो अगर किसी के साथ बलात्कार या रेप हुआ हो तो उसे अछूत से कम नहीं माना जाता.
सबसे ज्यादा दोष तो समाज का है जो बार-बार पीड़िता के अहम और उसके सम्मान का बलात्कार करता है. समाज इस चीज में पीड़िता की ही गलती देखता है, उसे हर जगह नीच भावना से देखता है. ऐसी स्थिति में लड़की का स्कूल, दफ्तर आदि जाना तो मानो पाप हो जाता है जहां हर दूसरी नजर उन्हें रंडी, वेश्या या कलमुंही की नजर से देखती है.
ऐसे में मानसिक पीड़ा और अवसाद होना सामान्य है. इसका परिणाम यह होता है कि एक हंसती-खेलती लड़की गुमनामी के साए में या तो गुम हो जाती है या आत्म हत्या कर लेती है.
किसी पीड़िता को सबसे अधिक दुखद स्थिति का सामना तब करना पड़ता है जब कि उसे ऐसे लोग मिल जाते हैं जो उसे अपना सबसे आसान शिकार समझते हैं. इसी कड़ी में यह भी देखा गया है कि सहानुभूति की आड़ में उनका सबसे ज्यादा शोषण हुआ है.
दुनिया भर में क्या होता है बलात्कारी और पीड़िता के साथ
अगरहम दुनिया की बात करें तो जिस पश्चिमी देशों की वजह से कईयों का मानना है कि बलात्कार बढ़े हैं वहां सजा का ऐसा कड़ा प्रावधान है कि जिससे कोई नहीं बच पाता. विकसित पश्चिमी देशों में बलात्कार जैसे अपराधों की कानूनी कार्यवाही पूरी तरह गोपनीय, नियोजित और तकनीक आधारित(डीएनए आधारित) होती है कि गलती की कहीं गुंजाइश ही नहीं रह जाती. और सजा देने के लिए पुलिस भारत की तरह भेदभाव नहीं करती फिर चाहे वह कोई आम शहरी हो या खुद देश का राष्ट्रपति सब समान होते हैं. काउंसलरों और डॉक्टरों के पूरे इंतजाम होते हैं साथ ही मीडिया को ऐसी खबरें आम करने की एक सीमा होती है ताकि पीड़िता के सामाजिक स्थान पर कोई ठेस न पहुंचे. लेकिन यह भी एक सत्य है कि पश्चिमी देशों में नाबालिग गर्भपात सबसे अधिक होते हैं.
यह तो बात थी पश्चिमी देशों की लेकिन पांचो अंगुलियां एक जैसी तो नहीं होतीं. दुनिया के इस्लामी देश जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान आदि देशों के कानून बलात्कार होने पर महिला को ही दोषी मानते हैं. कई देशों जैसे अफगानिस्तान और खाड़ी देशों में तो अगर किसी लडकी का बलात्कार हो जाए तो सजा आरोपी की जगह पीड़िता को दी जाती है और वह भी सरेआम.
पाकिस्तान जैसे देश में तो अगर आपके पास तीन प्रत्यक्षदर्शी सबूत नहीं हैं तो आप यह साबित नहीं कर सकती कि आपके साथ बलात्कार हुआ है उलटे आपको ही दोषी माना जाएंगा.
लेकिन यह भी सच है कि अगर यह अपराध इस्लामी देशों में साबित हो गया तो सजा इतनी भयानक होती है कि सुनने वाली की रुह भी कांप उठे. आरोपी को सरेआम कोड़े मारे जाते हैं और उसका जननांग काट दिया जाता है. हालांकि इन देशों में ऐसे मामले बहुत ही कम नजर आते हैं जबकि बलात्कारी को सजा मिली हो.
कानून को चाहिए सबूत
कहते है कि कानूनअंधा होता है, उसे सबूतों की बैशाखी चाहिए होती है. बलात्कार की घटना में भी कानून को सबूत चाहिए. बात करें भारत की तो यहां अगर मामला पुलिस तक पहुंचता है और पीडित का पक्ष ज्यादा दबाव बनाता है तब कहीं जाकर आरोपी की धरपकड़ होगी और उसके खिलाफ कोर्ट में मामला चलेगा. अब कोर्ट प्राथमिक मेडिकल जांच के आधार पर केस को देखती है. लेकिन अगर मेडिकल जांच में यह बात साबित नहीं हुई कि पीडिता के साथ बलात्कार हुआ तो सब खत्म, केस बंद. इसलिए मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि अहम है कि बलात्कार हुआ है.
भारत के कानून
भारत में कानून की धारा 375 और धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार और रेप कानूनी अपराध है जिसके लिए सजा का प्रावधान है. इसके साथ बलात्कार को धारा 21 का उल्लंघन भी माना जाता है जो सभी को इज्जत से जीने का हक देती है. इसके साथ ही आईपीसी सीआरपीसी 1973 और साक्ष्य कानून 1872 में भी जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने को गैर-कानूनी और दंडात्मक बताया गया है जिसके लिए दंड का प्रावधान है जो सात वर्ष से कम नही होगी और आजीवन कारावास के मामले में 10 वर्ष भी हो सकती है. साथ ही न्यायालय, विशेष कारणों से जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, सात वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड दे सकेगा. पत्नी के साथ बलात्कार की स्थिति में दंड दो वर्ष के साथ भुगतान का प्रावधान है.
नोट : 24 घंटे के बाद रेप की मेडिकल पुष्टि हो पाना मुश्किल होता है.
इसके साथ कानून के अनुसार पीड़िता को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे :
1. अपने परिवार वालों या दोस्तों को घटना के बारे में बताएं.
2. वह कपड़े जिनमें बलात्कार हुआ है, उन्हें धोएं नहीं और न ही खुद नहाएं. यह सब करने से शरीर या कपड़ों पर होने वाले महत्वपूर्ण सबूत मिट जाएँगे.
3. बलात्कारी का हुलिया याद रखने की कोशिश करें.
4. तुरंत पुलिस में प्रथम सूचना रिपोर्ट(एफ.आई.आर.) लिखवाएं. एफ.आई.आर. लिखवाते वक्त परिवार वालों को साथ ले जाएँ. घटना की जानकारी विस्तार से रिपोर्ट में लिखवाएँ.
5. एफ.आई.आर. में यह बात जरुर लिखवाएँ कि जबरदस्ती(बलात्कार) सम्भोग हुआ है.
6. यदि बलात्कारी का नाम जानती हैं, तो पुलिस को अवश्य बताएं.
7. यह उस स्त्री का अधिकार है कि एफ.आई.आर. की एक कापी उसे मुफ्त दी जाए.
8. यह पुलिस का कर्तव्य है कि वह स्त्री की डॉक्टरी जांच कराए.
9. डॉक्टरी जांच की रिपोर्ट की कापी जरुर लें. कोर्ट में बलात्कार का केस बंद कमरे में चलता है यानि कोर्ट में केवल केस से संबंधित व्यक्ति ही उपस्थित रह सकते हैं.
आखिर क्यों हो रही है संशोधन की मांग
पति द्वारा पत्नी के साथ जबरदस्ती सेक्स संबंध को भी बलात्कार माना जाता है लेकिन इसके लिए कानून में कहीं साफ-साफ उल्लेख नहीं है (बालिग स्थिति में). कानून विवाहित महिलाओं के साथ पतियों द्वारा किये गए बलात्कार को अपराध से मुक्त मानता है. और इससे इस धारणा को बल मिलता है कि महिलाओं के पास अपने पति के साथ सेक्स संबंध से इनकार करने का कोई हक नहीं है और यह स्थिति पतियों को अपनी पत्नियों के साथ बलात्कार का लाइसेंस देती दिखाई पड़ती है. इस मामले में केवल दो तरह की महिलाएं कानून से सुरक्षा पा सकती हैं. एक वे, जिनकी उम्र पंद्रह साल से कम है और दूसरी वे, जो अपने पतियों से अलग रह रही हैं. सरकार इसी संदर्भ में एक बिल लाने पर विचार कर रही है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय(डब्ल्यूसीडी) और राष्ट्रीय महिला आयोग(एनसीडब्ल्यू) की सिफारिशों के बाद कानून मंत्रालय ने प्रस्तावित कानून का एक ड्राफ्ट तैयार किया है. इसमें आईपीसी, सीआरपीसी 1973 और साक्ष्य कानून 1872 के कुछ खंडों में संशोधन कर उन्हें दुष्कृत्य की नयी परिभाषा के अनुसार बदला जा रहा है. इस प्रस्तावित बिल के बाद मैरिटल रेप को एक अपराध माना जाएगा और पत्नी की शिकायत के बाद पति को तीन साल की सजा तक दी जा सकेगी.
बचने की करें पूरी कोशिश
अक्सर देखा जाता है कि इन मामलों में शिकारी या आरोपी कोई जान-पहचान का ही होता है तो ऐसे में माता-पिता को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि कहीं कोई उनकी बच्चियों पर गलत नजर तो नहीं रखता. इसके साथ लड़कियों को भी ज्यादा खुलेपन से परहेज करना चाहिए. साथ ही बचाव के लिए आप अपने साथ लाल मिर्च की पुड़ियां भी रख सकती हैं यह सबसे बेहतरीन उपाय होता है. बंद गलियों और अंधेरी-सुनसान रास्तों के इस्तेमाल से बचें. अगर जरुरी न हो तो रात को सफर करने से परहेज करें. ऑटो के स्थान पर रात के समय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग बेहतर होता है क्योंकि ऐसे अपराधों में इनकी भूमिका हमेशा से संदेह वाली रही हैं.
समाज दे सहयोग
समाज का यह नजरिया की बलात्कार के बाद लडकी की इज्जत नहीं रहती गलत है. बल्कि इसे एक अपराध की तरह देखना चाहिए जैसे कि आप चोरी या दुर्घटना को देखते हैं. परिवार को भी इसे इसी रूप में देखना चाहिए. बलात्कारी को समाज के सामने लाना चाहिए और इंसाफ की आवाज को बुलंद करना चाहिए. समाज को पीड़िता के प्रति उदार रवैया अपनाना चाहिए क्योंकि भावनात्मक सहानुभूति किसी की जिंदगी बना सकती है.
आप सभी से अपील है कि इस तरह के अपराध के खिलाफ आवाज उठाइए और अपराधियों को पकड़वाने में भरपूर सहयोग करें. पीडिता के साथ किसी तरह का गलत दुर्व्यवहार न करें. पीडिता और उसके परिवार को हौसला दें ताकि वह पुलिस और कानून में भरोसा कर सकें. बलात्कार एक बीमारी है जो खत्म तो नहीं मगर कम बहुत कम हो सकती है. आवाज उठाइए और बदलाव लाइए.
Read Comments